जान को जोखिम में डालकर पिला रहे हैं लोगों को पानी, कोरोना वॉरियर्स तक घोषित नहीं
जिस तेजी से कोरोना का संक्रमण फैल रहा है, उसी तेजी से सुरक्षा को लेकर सरकारें चिंतित हो रही हैं। कभी सरकारी कार्यालय बंद किए जा रहे हैं। तो कभी शहरों में कर्फ्यू लगाया जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में आवश्यक सेवा से जुड़े लोग अपनी जान जोखिम में डालकर अपने कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। इसके बावजूद ऐसे सैकड़ों लोगों को कोरोना वॉरियर्स भी घोषित तक नहीं किया गया है।
खतरे में डाल रहे हैं जान
घरों में रसोई गैस सप्लाई करने वाला हो, लोगों को नियमित बिजली आपूर्ति करने वाले कर्मचारी हों, सभी अपने कार्यों को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। वहीं, आपने कभी सोचा है कि सुबह सुबह आपके नल में जल देने वाले कर्मचारी इस कोरोनाकाल में किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। जल संस्थान के नियमित कर्मचारी हों या फिर कंपनी के माध्यम से कार्य करने वाले कर्मचारी वे 24 घंटे की ड्यूटी निभा रहे हैं। इनमें कई कर्मचारी कोरोना संक्रमित भी हो रहे हैं। जल संस्थान के एक अधिशासी अभियंता की पिथौरागढ़ में कोरोना से मौत तक हो गई। वहीं, रसोई गैस एजेंसियों के घर घर सिलेंडर सप्लाई करने वाले डिलीवरी मैन भी कोरोना संक्रमित हुए, लेकिन लोगों को निरंतर आपूर्ति की जा रही है।
पेयजल आपूर्ति का सिस्टम
उत्तराखंड में पेयजल आपूर्ति दो तरीके से की जाती है। इसमें एक गुरुत्व की योजनाएं हैं। जो देहरादून में उत्तरी जोन में है। साथ ही ऐसी योजनाएं पहाड़ों में है। नदियों, गदेरे से सीधे पानी लेकर टैंक तक पहुंचाया जाता है। टैंक तक पानी ज्यादातर स्थानों में अपने आप चढ़ जाता है। कारण ये है कि जहां से पानी लिया जाता है, वो स्थान ऊंचाई पर होता है। ऐसे में पानी को टैंक तक पहुंचाने में किसी पंप की जरूरत नहीं पड़ती है।
पंपों के माध्यम से
दूसरी योजना ट्यूबवैल के माध्यम से संचालित की जा रही है। इस योजना के तहत नलकूप चलाने के लिए आटोमाइजेशन सिस्टम लगा है। यानी कि अपने समय पर पंप चलते हैं और बंद हो जाते हैं। कई स्थानों पर पंप से पानी की टंकियों को भरा जाता है। फिर सप्लाई के वक्त आपूर्ति की जाती है। वहीं, बार बार बिजली जाने से टैंक तक नहीं भर पा रहे हैं। ऐसे में ज्यादातर स्थानों पर सीधे सप्लाई की जा रही है।
24 घंटे निगाह रखते हैं कर्मचारी
आटोमाइजेशन में भले ही सब कुछ मशीनी है, लेकिन इसको संचालित करने वाली कंपनी के कर्चचारी कंट्रोल रूप में नियमित रूप से बैठे रहते हैं। जहां भी पंप बंद हुआ या सप्लाई बाधित हुई वहां कर्मचारी मौके पर पहुंच जाते हैं। इस समय उत्तराखंड में 900 से अधिक नलकूप संचालित किए जा रहे हैं। इनमें देहरादून और हरिद्वार में ही 500 से अधिक नलकूप हैं। इन नलकूपों के संचालन के लिए कर्मचारी एक नलकूप से दूसरे नलकूप तक तकनीकि दिक्कतों को दूर करने के लिए दौड़ लगाते रहते हैं।
कुंभ में भी निरंतर होती रही जलापूर्ति
उनकी मेहनत का नतीजा है कि कोरोनाकाल में यदि कोई व्यवस्था बिगड़ी, लेकिन पेयजल आपूर्ति सुचारु हो रही है। यही नहीं, जिस हरिद्वार में देहरादून के बाद सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं, वहां भी कुंभ के दौरान ऐसे कर्मियों ने पेयजल आपूर्ति को बाधित होने नहीं दिया।
कर्मियों के हौसले को सलाम
हालांकि पानी की किल्लत कुछ स्थानों पर हो सकती है। इसके कई कारण हो सकते हैं। इसके बावूजद कर्मचारी नलकूप में आने वाली तकनीकी दिक्कतों को दूर करने के बाद अपने कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। कंपनी के प्रबंध निदेशक संदीप जैन के मुताबिक वह कर्मचारियों को उनके हौसले के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। पूरे कोरोनाकाल में सभी को समय से समय से वेतन व अन्य सुविधाएं प्रदान की जा रही है।
ये भी हैं सच्चे कोरोना वॉरियर्स
दिन रात मेहनत करने के दौरान कई कर्मचारी कोरोना से संक्रमित हो गए हैं। ऐसे कर्मचारियों का इलाज कराया जा रहा है। साथ ही उन्हें पूरी तरह से मदद की जा रही है। उन्होंने कहा कि जान जोखिम में डालकर नियमित रूप से लोगों को पानी पहुंचा रहे इन लोगों को भले की कोरोना वॉरियर्स नहीं घोषित किया गया, लेकिन ये सच्चे कोरोना वॉरियर्स हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
ये सब कोरोना वारियर्स हैं पर सरकारों को कहा दिखता है यह सब