पहाड़ की विलुप्त होती परंपराओं को पेंटिंग के माध्यम से संजोने का प्रयास कर रहे हैं चित्रकार मुकुल बडोनी, देखें तस्वीरें
मुकुल बडोनी मूल रूप से उत्तरकाशी जिले में कांदला बड़ेथी चिन्यालीसौड़ के एक साधारण परिवार में जन्मे हैं। उनके पिता एक निजी स्कूल में प्रधानाचार्य के पद पर हैं और माता कुशल गृहणी है। विद्यार्थी जीवन में हमेशा अव्वल रहने वाला मुकुल हमेशा अध्यापकों के चहेते विद्यार्थियों में रहे। स्नातकोत्तर चित्रकला से करने के बाद बीएड किया व तत्पश्चात पिट्स बीएड कॉलेज उत्तरकाशी में चित्रकला प्रशिक्षक के रूप में तैनात हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुकुल बताते है अपनी थाती और माटी से जो उन्हे लगाव हुआ। उसमे उनके परिवार का विशेष सहयोग रहा। घर में दादी और बड़ी मां (ताई जी) के स्नेह और मार्गदर्शन ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और आज मुकुल पहाड़ की विलुप्त होती हुई चीजों को अपनी पेंटिंग के माध्यम से संजोने का प्रयास कर रहे है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुकुल ने पेटिंग की शुरुआत अपनी दादी के कैनवास से शुरू की। इसे बहुत लोगों ने पसंद किया और आज भी जब जब किसी की नजर दादी वाली पेंटिंग पर पड़ती है तो उनकी नजरें उस कैनवास पर ही ठहर जाती है। राजधानी देहरादून के बहुत सारे होमस्टे को चार चांद लगानी वाली यही पेंटिंग, आज उन जगहों पर सेल्फी प्वाइंट भी बनी हुई है। इसके अलावा उत्तरकाशी शहर में जगह जगह पर बनी पेंटिंग काशी नाम को सुशोभित करती हुई बनाई गई हैं। साथ ही हर्षिल में उत्तराखंड संस्कृति पर आधारित चित्रकारी देश विदेश से आए सैलानियों को अपनी और आकर्षित करती हैं। उन पेंटिंग के जरिये वो यहां की संस्कृति को समझते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मुकुल ने योग नगरी ऋषिकेश में भगवान शिव और गंगा मां के संरक्षण और संवर्धन पर भी पेंटिंग बनाई हैं। साहसिक खेलों को बढ़ावा देने पर भी अपनी चित्रकारी के माध्यम से संदेश देने की पुरजोर कोशिश की और साथ ही हमारे महापुरुषों की याद की भी एक श्रृंखला बनाई। इससे आने वाली पीढ़ी उनके त्याग और बलिदान को समझ सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भविष्य में मुकुल उत्तराखंड के मंदिरों की एक श्रृंखला बनाने जा रहे हैं। जनजाति रिति रिवाजो को बढ़ावा देने के का काम कर रहे हैं। आज मुकुल पहाड़ के युवा वर्ग के लिए आइकॉन बन चुके हैं। उन्होंने साबित कर दिया कि सिर्फ नौकरी से ही आजीविका नहीं चलती है, बल्कि अपने अंदर के हुनर को निखार कर उससे अपने सामाजिक और आर्थिक स्तर को पहचान दिलाई जा सकती है। इससे रोजगार बढ़ेगा और पलायन पर अंकुश भी लगेगा। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
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प्रस्तुतिः आशिता डोभाल
सामाजिक कार्यकत्री
ग्राम और पोस्ट कोटियालगांव नौगांव उत्तरकाशी।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।