1949 में शुरू की गई थी टिहरी बाँध के निर्माण की रूपरेखा, एशिया का दूसरा बड़ा बांध
टिहरी की सर्वाधिक चर्चा यहाँ निर्मित ‘काफर बाँध’ को लेकर है। यह बाँध एशिया का दूसरा और विश्व का पांचवां बड़ा बाँध है। टिहरी बाँध टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है, जो उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी जिले में स्थित है। इसे स्वामी रामतीर्थ सागर बांध भी कहते हैं। यह बाँध हिमालय की दो महत्वपूर्ण नदियों पर बना है। जिनमें से एकगंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी तथा दूसरी भीलांगना नदी है। इनके संगम पर इसे बनाया गया है।
भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने शुरू की थी रूपपेखा
नींव के निम्नतम तल से 260.5 मीटर ऊँचे इस बाँध की रूपरेखा भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग द्वारा सन् 1949 में शुरू की गयी थी। 1963 में इस बाँध के सर्वेक्षण से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं को जाँच की गयी। 1972 में इसे योजना आयोग द्वारा स्वीकृत हुई। आरम्भ में इस बाँध से 600 मेगावाट जल विद्युत के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था इस पर खर्च होने वाली अनुमानित राशि 126 करोड़ रूपये थी। आज विद्युत उत्पादन की क्षमता 2400 मेगावाट आँको गयी है। खर्च पाँच हजार करोड़ रूपये को लांघ चुका है। भगीरथी नदी पर जलाशय का आकार 44 किलोमीटर व भिलंगना पर बाँध के जलाशय का आकार लगभग 25 किलोमीटर है।
नदी तलपर बाँध की चौड़ाई 1125 मीटर और लम्बाई 70 मीटर है। बाँध के शीर्ष का तल 839.5 मीटर है। देश के 46 बड़े बाँधों में क्षमता के अनुसार प्रस्तावित टिहरी बाँध का सत्रहवाँ नम्बर है, जबकि ऊँचाई के दृष्टिकोण से पहला है। उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान एवं दिल्ली की 2 लाख सत्तर हजार हेक्टेयर भूमि की इससे सिंचाई होना अपेक्षित है।
इस बाँध के पूरा होने पर टिहरी सहित एक सौ गाँव जलमग्न हुए हैं, इसमें 23 गाँव पूरी तरह से और 72 गाँव आंशिक रूप से जल में समा गये हैं। यह बाँध क्लेकोर रॉकफिल है। क्लेकोर के दोनों ओर फिलर एवं परिष्कृत किया गया मिट्टी-पत्थर का भराव है। बायें तट पर प्रस्तावित भूमिगत विद्युतगृह के प्रथम चरण में आठ मशीनें स्थापित की गयी हैं, जिसमें प्रत्येक मशीन 250 मेगावाट की है। विद्युत गृह की गुहा लगभग 135 मीटर लम्बी, 22.5 मीटर चौड़ी व 50 मीटर ऊँची है। विद्युत गृह की प्रथम चरण की आठ मशीनों के लिए 8.5 मीटर व्यास की दो हेडरेस टनल, जिसकी कुल लम्बाई 1970 मीटर है, द्वारा पानी का निस्तारण किया जाता है। प्रत्येक हेडरेस सुंरग के अन्त में एक 23 मीटर व्यास का सर्ज टैंक है, जहाँ से पतनालों से होकर पानी मशीनों तक पहुँचता है।
विद्युत गृह वातानुकूलित होने के साथ साथ अपनी तरह का अद्वितीय है। जलाशय के अतिरिक्त जल के निस्सरण के लिए एक खुली वाहिका उत्प्लवित बाँध स्थल की दायीं पहाड़ी पर निर्मित हैं। इसकी क्षमता 11,800 क्यूमैक्स है। उत्प्लव मार्ग में चार फाटक 18 बाई 13.65 मीटर आकार के हैं। इस बाँध की जल संचय क्षमता 261 करोड़ घनमीटर है। यह उत्तराखण्ड राज्य के साथ साथ चार अन्य समीपवर्ती राज्यों को विद्युत आपूर्ति के अतिरिक्त सिंचाई के लिए प्रचुर मात्रा में जल भी उपलब्ध कराता है।
आर्थिक व पर्यावरणीय प्रभाव से हुई देरी
इसके निर्माण का कार्य 1978 में शुरू हो गया, लेकिन आर्थिक, पर्यावरणीय आदि प्रभाव के कारण इसमें देरी हुई। इसके निर्माण का कार्य 2006 में पूरा हो गया। पर्यावरणविद मानते हैं की बाँध के टूटने के कारण ऋषिकेश, हरिद्वार, बिजनौर, मेरठ और बुलंदशहर इसमें जलमग्न हो जाएँगे।
पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र
यह बांध पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां पर्यटन विभाग की ओर से जल क्रीड़ा के विभिन्न क्रियाकलापों के साथ ही सहासिक पर्यटन की गतिविधियां भी संचालित की जा रही हैं। इनमें बोटिंग, पेरा ग्लाइडिंग आदि कई रोमांचकारी गतिविधियां संचालित होती हैं।
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लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।