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November 21, 2024

वाटर क्वालिटी एंड सस्टेनेबिलिटी पर विशेषज्ञों ने दिया ऑनलाइन व्याख्यान, शुद्ध जल के लिए जागरूकता पर जोर

जल शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत यूसर्क की ओर से वाटर क्वालिटी एंड सस्टेनेबिलिटी विषय पर विशेषज्ञों ने ऑनलाइन व्याख्यान दिया। इस दौरान शुद्ध जल के लिए जागरूकता के साथ ही सभी की सहभागिता आवश्यक बताई गई।

जल शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत यूसर्क की ओर से वाटर क्वालिटी एंड सस्टेनेबिलिटी विषय पर विशेषज्ञों ने ऑनलाइन व्याख्यान दिया। इस दौरान शुद्ध जल के लिए जागरूकता के साथ ही सभी की सहभागिता आवश्यक बताई गई। उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवम अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क) देहरादून की ओर से वर्ष 2022 में जल शिक्षा व्याख्यानमाला श्रृंखला (वाटर एजुकेशन लेक्चर सीरीज) के अंतर्गत कार्यशाला में वाटर क्वालिटी एंड सस्टेनेबिलिटी विषय पर चर्चा की गई।
कार्यक्रम में यूसर्क की निदेशक प्रोफेसर (डॉ) अनीता रावत ने अपने संदेश में बताया कि यूसर्क की ओर से जल
संरक्षण, प्रबंधन, गुणवत्ता विषयक कार्यक्रमों को मासिक श्रंखला के आधार पर आयोजित किया जा रहा है। जल की गुणवत्ता के प्रति हर व्यक्ति को जागरूक रहने की जरूरत है। इसी उद्देश्य से ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए यूसर्क के वैज्ञानिक तथा कार्यक्रम समन्वयक डॉ भवतोष शर्मा ने कहा कि
उत्तराखंड राज्य के जल स्रोतों के संवर्धन व प्रबंधन हेतु सहभागिता के साथ कार्य करना होगा। कार्यक्रम में यूसर्क के वैज्ञानिक डॉक्टर ओम प्रकाश नौटियाल ने यूसर्क की विभिन्न गतिविधयों पर विस्तार से बताया। कहा कि यूसर्क पर्यावरण, जल शिक्षा, तकनीकी आधारित शिक्षा, शोध कार्यों को प्रदेश के सीमान्त क्षेत्रों के विद्यार्थयों तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत है।
तकनीकी सत्र में डिफेन्स इंस्टिट्यूट ऑफ फिजियोलॉजी एंड अलाइड साइंसेज (डीआइपीएएस) डीआरडीओ
भारत सरकार की पूर्व एडिशनल डायरेक्टर एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा सेव द एनवायरनमेंट संस्था की अध्यक्ष डॉ शिप्रा मिश्रा ने वाटर क्वालिटी एंड सस्टेनेबिलिटी विषय पर विशेषज्ञ व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने व्याख्यान में जल के महत्व पर बताते हुए कहा कि हमारे पौराणिक ग्रंथों में जल का महत्व स्पष्ट रूप से बताया गया है। उन्होंने बताया कि बहुत सारी मानवीय बीमारियों जैसे डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, मायग्रेन, आर्थराइटिस, कैंसर आदि उपचार में शुद्ध जल का सेवन लाभकारी होता है।
विशेषज्ञ व्याख्यान में उन्होंने भारत में जल संसाधनों की वर्तमान स्थिति, भारत में जल की कमी तथा जल के प्रदूषित होने के प्राकृतिक एवं मानवीय कारकों पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा जल की गुणवत्ता को निर्धारित करने वाले विभिन्न मानकों तथा उनकी सीमाओं के बारे में विस्तार पूर्वक बताया।

डॉक्टर मिश्रा ने बताया कि जल में अधिकता में उपस्थित आयरन (लोहा) के कारण मनुष्य में हीमोक्रोमैटोसिस, पौधों की वृद्धि रुकने आदि, पानी में फ्लोराइड के कारण होने वाली फ्लोरोसिस, आर्सेनिक के कारण होने वाली आर्सेनिकोसिस तथा मैग्नीशियम व मैंगनीज आदि की अधिकता के कारण होने वाली समस्याओं पर बताते हुए इनका समाधान भी बताया। डॉक्टर क्षिप्रा मिश्रा ने जल की गुणवत्ता के अध्ययन एवं सतत अनुश्रवण को आवश्यक बताया।
डॉक्टर क्षिप्रा मिश्रा ने जल में आर्सेनिक की उपस्थति पर विशेष रूप से अपना व्याख्यान केंद्रित करते हुए भारत के विभिन्न भूभागों में विशेषतः गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना बेसिन में भूजल में आर्सेनिक की बढ़ती हुई मात्रा पर अपना अध्ययन प्रस्तुत किया। बताया कि यह मानवीय स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। इसके लिए प्राकृतिक भूसंरचनाओं, चट्टानों में उपस्थित विभिन्न खनिज लवणों तथा होने वाली रासायनिक क्रियाओं के साथ साथ विभिन्न मानवीय क्रियाकलाप जैसे बढ़ता हुआ ओद्योगिक अपशिष्ट, कृषि में अधिकता में प्रयोग होने वाले विषैले रसायन आदि उत्तरदायी होते हैं।
उन्होंने बताया कि शरीर में आर्सेनिक विषाक्तता के लक्षण 10 वर्ष बाद आर्सेनिकोसिस के रूप में दिखाई देते हैं। जिसके कारण किराटोसिस, गैंग्रीन, स्किन कैंसर, किडनी कैंसर, ब्लैडर कैंसर, लंग कैंसर आदि बीमारियां हो सकती हैं। डॉक्टर मिश्रा ने बताया कि बहुत सी रासायनिक विश्लेषण तकनीकों द्वारा पानी में उपस्थित हानिकारक धातुओं का पता लगाया जा सकता है । उन्होंने कहा कि पानी से आर्सेनिक के तृतीय तथा पंचम दोनों ऑक्सीकरण अवस्थाओं वाले आर्सेनिक को दूर करना आवश्यक होता है।
इस कार्य के लिए विभिन्न प्रकार के सस्ते एवं उपयोगी भारतीय फिल्टर्स विभिन्न परियोजनाओं के अंतर्गत उनकी टीम द्वारा डीआरडीओ के माध्यम से विकसित किये गए हैं। जिसको डी आर डी ओ, भारत सरकार द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है। तथा ये फिल्टर्स भारत के पश्च्मि बंगाल, बलिया, बिहार आदि विभिन्न स्थानों पर 5000 से अधिक संख्या में प्रयोग किये जा रहे हैं जिनकी क्षमता बीस हजार लीटर जल को फिल्टर करने की है। ये फिल्टर्स पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं तथा इनके बारे में स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया है। इन फिल्टर्स के बनाने एवं विकसित करने से सम्वन्धित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट भी प्राप्त किये गए हैं । यह तकनीकी पूर्णतः भारतीय है जिसकी सस्ते, टिकाऊ, पर्यावरण स्नेही एवं आसानी से उपलब्ध होने के कारण भारत के अलावा विदेशों में भी मांग की जा रही है।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में सेव द एनवायरनमेंट संस्था के माध्यम से विभिन्न प्रकार के पर्यावरण संरक्षण सम्वन्धी कार्य किये जा रहे हैं । कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन यूसर्क वैज्ञानिक डॉ मंजू सुंदरियाल ने किया। कार्यक्रम में यूसर्क के वैज्ञानिक डॉक्टर ओम प्रकाश नौटियाल, डॉ राजेंद्र सिंह राणा, आईसीटी टीम के उमेश चन्द्र, ओम् जोशी, राजदीप जंग सहित विभिन्न शिक्षण संस्थाओं के स्नातक, स्नातकोत्तर स्तर के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों द्वारा प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम में उत्तराखंड के साथ साथ भारत के अन्य राज्यों के विद्यार्थियों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिभाग किया गया। कार्यक्रम में कुल 228 प्रतिभागियों द्वारा ऑनलाइन पंजीकरण किया गया । कार्यक्रम में मुख्य रूप से राष्ट्रीय जल विज्ञान संसथान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर लक्ष्मी नारायण ठकुराल, नमामि गंगे के रोहित जयाड़ा, डॉक्टर संजय मौर्या, डॉक्टर योगेंदर बहुगुणा, डॉ पंकज सैनी, शोभित मैठानी, नवल जोशी, पूर्णिमा जोशी आदि द्वारा प्रश्नोत्तर सत्र में सक्रिय प्रतिभाग किया गया।

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