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November 11, 2024

पुरानी पेंशन बुढ़ापे की चादर, नई में नहीं है आर्थिक तथा सामाजिक सुरक्षाः डॉ. डीसी पसबोला

आजकल सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा छाया हुआ है। हो भी क्यों ना। क्योंकि पुरानी पेंशन ही वास्तविक रुप से पेंशन कहलाने की हकदार हैं।

आजकल सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा छाया हुआ है। हो भी क्यों ना। क्योंकि पुरानी पेंशन ही वास्तविक रुप से पेंशन कहलाने की हकदार हैं। नई पेंशन‌ तो केवल नाममात्र की ही पेंशन है। इसमें उतनी ही पेंशन है, जितना दालचीनी में दाल और चीनी होती है। इसलिए बुढ़ापे की चादर कहलाने का श्रेय भी पुरानी पेंशन को ही दिया जा सकता है।
पेंशन और पेंशन में भी पुरानी पेंशन को ही बुढ़ापे की चादर कहना ज्यादा उचित रहेगा। क्योंकि ये ही किसी सेवानिवृत्त कर्मचारी को रिटायर होने के बाद आर्थिक तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में पूर्णतया सक्षम है। कहते हैं न की जितनी चादर उतना ही पैर फैलाओ। इस बात को शायद इसलिए कहा गया हो कि बुढ़ापे की चादर पेंशन है, क्योंकि पेंशन बुढ़ापे का सहारा है।इस पेंशन से ही वृद्ध नागरिक अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। जितनी पेंशन उसी में गुजारा।
साथ ही अक्सर देखने में आता है कि बुढ़ापे में रिश्तों की अहमियत नही रह जाती। लोग अपने बूढे माँ बाप को बोझ लगने लगते हैं और उन्हें दो वक्त का भोजन देने से कतराने लगते हैं। ऐसे में अगर उन्हे पेंशन मिलती है तो कुछ सहारा मिल जाता है। पैसे से सारे दुख दूर नही होते। पर जिन्दगी थोड़ी आसान ज़रूर हो जाती है। इसलिए कहा जा सकता है कि पेंशन सिर्फ़ चंद हजार रुपए की ही बात नहीं होती है, बल्कि बुढ़ापे की एक चादर होती है। जिससे रिटायर आदमी अपनी इज्जत को ढंकता है, ताकि उसके बच्चे उसे बोझ न समझें। दुनिया अपनी रफ़्तार से आगे चलती रहती है, बस बूढ़े लोग पीछे छूट जाते हैं।
डॉ. डीसी पसबोला
प्रदेश वरिष्ठ उपाध्यक्ष,
राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा (NOPRUF), उत्तराखंड।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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