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November 12, 2024

Video: अब बोलेगी कठपुतलीः बच्चों को दिखाएं कठपुतली का खेल, देखें-पर्यावरण की पीड़ा को बयां करती चिड़िया की कहानी

लोकसाक्ष्य के माध्यम से हम आपको सप्ताह में एक दिन कठपुतली का खेल दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। इसे खुद देखने के साथ ही आप छोटे बच्चों को भी दिखाएं। क्योंकि कठपुतली की कहानी में एक सच्चाई जुड़ी है, जो हम समाज में महसूस करते हैं। कठपुतलियां हमेशा से समाज में ज्वलंत मुद्दों को लेकर एक संदेश देने का काम करती आई हैं। यहां हम आपको कठपुतली की कहानी दिखा रहे हैं। इसका नाम है- घर बचाने की कोशिश। ये कोशिश एक चिढ़िया करती है। साथ ही ये कहानी पर्यावरण को बचाने का संदेश देती है। हमारे समाज में भी ऐसी कहानियां हर शहर में कई मिल जाएंगी। हम बड़े शहरों में अपना सुन्दर एवं बड़ा घर बनाते समय कितने ही अन्य प्राणियों के घरों को नुकसान पहुंचा देते हैं। उन्हें उजाड़ देते हैं। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। आप मिलिये सुन्दर सोच वाली पर्यावरणविद् चिड़िया से। देखें वीडियो-

कठपुतली का इतिहास
कठपुतलियां भारत की विरासत है। ये लोककला है। इसमें भारत में मनोरंजन के साथ साथ अब शिक्षा का भी काम किया जा रहा है। कठपुतलियों ने शुरू से ही संदेश देने का काम किया है। कठपुतली के कलाकारों ने राजाओं को समझाने का भी काम किया है। साथ ही सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने का काम किया। ऐसे में कठपुतलियां पहले भी राजाओं की नजरों में रही है। इस पर प्रतिबंध भी लगे हैं। अंग्रेजों के समय में भी ये प्रतिबंध किए गए और राजाओं के समय पर भी कठपुतलियां नचाने वाले कलाकारों को नजरबंद रखा गया है। कहते हैं कि महाभारतकाल में भी कठपुतली का भी जिक्र है। राजस्थान में इसका इतिहास करीब पांच सौ साल पुराना माना गया है। राजस्थान में नागौल जिले के खेड़ी नामक स्थान पर अमर सिंह राठौड़ की कहानी से कठपुतलियां ज्यादा प्रचलित हुई। योद्धा अमर सिंह राठौड़ को जोधपुर किले से बेदखल किया गया था। उन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

रामलाल कर रहे हैं नए प्रयोग
देहरादून के ठाकुरपुर निवासी रामलाल भट्ट 12 साल की उम्र के कठपुतली पर प्रयोग रहे हैं। करीब 40 साल से वह कठपुतली खुद बनाते हैं और नचाते हैं। स्कूलों में प्रोग्राम देते हैं। गांव में, संस्थाओं के लिए, युवाओं के लिए प्रोग्राम देते हैं। उनका कहना है कि कठपुतली शिक्षा में भी सहायक है। कठपुतलियों की मदद से किसी विषय को आसानी पढ़ाया जा सकता है। गणित जैसे मुश्किल विषय को भी खेल खेल में आसानी से समझाया जा सकता है। रामलाल ने पर्यावरण बचाने के लिए भी कठपुतली के माध्यम से कई प्रयोग किए। सोशल मीडिया का जमाना आया तो यू ट्यूब के माध्यम से भी कठपुतली नचा रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पांच तरह की होती हैं कठपुतली
रामलाल भट्ट बताते हैं कि कठपुतलियां पांच तरह की होती हैं। इनके नाम हैं धागेवाली पपेट, शैडो पपैट, रॉड पपेट, मोपेड पपेट और दस्ताना पपेट। मोपेट पपेट को मुंहफट पपेट भी कहते हैं। क्योंकि इसका सिर्फ मुंह ही दिखता है और वह एक्शन में रहता है। कठपुतली के शो में कठपुतली नचाने के साथ ही बेजान कठपुतलियों को आवाज देना भी अहम काम है। अलग अलग कठपुतलियों को अलग अलग आवाज देना कोई आसान काम नहीं है। इस काम में रामलाल के साथ की दूसरी कलाकार धनवीरा देवी बखूबी करती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

कलाकार का परिचय
देहरादून के ठाकुरपुर निवासी रामलाल भट्ट करीब चालीस साल के कठपुतलियों को लेकर प्रयोग कर रहे हैं। वह स्कूलों में शिक्षाप्रद वर्कशॉप भी आयोजित करते हैं। उनके पपेट शो में चार तरह की कठपुतलियों का इस्तेमाल होता है। इनमें वह धागेवाली पपेट, रॉड पपेट, मोपेड पपेट और दस्ताना पपेट के जरिये अपना शो करते हैं। यदि किसी को स्कूलों या संस्थानों में पपेट शो या वर्कशाप करानी हो तो वे इन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। संपर्क सूत्र—9412318880, 7017507160

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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