सामान्य प्रक्रिया है हिमनद फटना glacial rupture, बांधों की श्रृंखला ने बचाई तबाहीः भूवैज्ञानिक मुकुन्द जोशी
उत्तराखंड के चमोली जिले में सात फरवरी को ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी में जो अचानक बाढ़ आयी उसका वास्तविक कारण क्या था, यह तो वैज्ञानिक अध्ययन से ही पता चलेगा। जो प्रथम अनुमान लगाया गया वह था हिमनद का फटना। स्वाभाविक रूप से ऐसी आपदायें जब आती हैं तो हमारे सामने दो प्रश्न मुख्य रूप से खड़े होते हैं। एक तो आपदा के कारण का पता लगाया जाय और दूसरा वे उपाय किये जाँय कि भविष्य में वैसी आपदा न आये। यदि वर्तमान आपदा का कुछ सम्बन्ध हिमनद के फटने ( glacial rupture)से हैं तो हमें इसके संबंध में कुछ जानकारी हो तो अच्छा है।
आपदायें या तो प्राकृतिक होती हैं या मानव जनित। कई बार प्राकृतिक आपदायें भी मानव के कार्यों के कारण तेज हो जाती हैं। बहुधा हम आम तौर पर जिन्हें आपदा कहते हैं। वे सामान्य प्राकृतिक घटनायें ही होती हैं। भूकंप, भूस्खलन, अतिवृष्टि, सूखा, बाढ़, तूफान, वैश्विक तापमान वृद्धि ( ग्लोबल वार्मिंग ), वैश्विक शीतलन (ग्लोबल कूलिंग ) आदि सभी सामान्य प्राकृतिक क्रियाएँ हैं जो होती ही रहती हैं। पृथ्वी पर मनुष्य के आने के पहले से होती रही हैं। हमारे लिये वे आपदा तब हैं जब हम उनकी चपेट में फँसते हैं और मरते हैं।
हिमनदों का फटना भी एक ऐसी ही सामान्य प्रक्रिया है। हिमनद ( ग्लेशियर ) अर्थात बर्फ की नदी। ध्रुव प्रदेशों में या अत्यन्त ऊँचे पर्वतों पर पानी द्रव रूप में नहीं वरन ठोस बर्फ के रूप में बरसता है। यह जमा हुआ बर्फ अपने ही दबाव के काराण ढाल पर सरकने लगता है। यह बहता हुआ बर्फ ही हिमनद है। थोड़ा नीचे आने पर यह पिघलता है और द्रव पानी की नदी बहने लगती है। कभी कभी यह पानी यदि कोई अवरोध सामने आ जाय तो बहने की बजाय वहीं झील के रूप में जमा होने लगता है।
झील के रूप में जमा होने वाले इस पानी की मात्रा वातावरण के ताप के घटने बढ़ने के अनुसार कम और ज्यादा होती रहती है। इस झील से थोड़ा थोड़ा पानी नदी रूप में निकलता भी रहता है। अब यदि किसी कारण से झील बनाने वाला वह अवरोध टूट जाय या तापमान वृद्धि के कारण बर्फ तेजी से पिघल कर पानी की मात्रा बहुत बढ़ जाय तो अचानक बहुत अधिक पानी बहुत तेजी से नदी में बहने लगेगा और निचले क्षेत्रों में भयंकर बाढ़ आ जायेगी। वैज्ञानिक भाषा में इसे glof (glacial lake outburst flood) कहते हैं।
चमोली जिले में भी ऐसा ही हुआ। उस अचानक बाढ़ से हमारे निर्माण कार्यों का विनाश हो गया। तपोवन और रैणी में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की सुरंगों में लोग फँस गये। हताहत हुए। बड़ी मात्रा में जन धन की हानि हुई और एक प्राकृतिक घटना आपदा बन गई। परन्तु यह भी सच है कि नदियों पर नीचे तक बाँधों की एक श्रृंखला बनी है या बनती जा रही है। इसलिये यह आपदा इससे भी अधिक भयंकर रूप नहीं ले पाई। यदि ये बाँध नहीं होते तो जो होता उसकी कल्पना की जा सकती है। कुछ लोग इस आपदा की तुलना 2013 की केदार घाटी की त्रासदी से करते हैं। परन्तु इन दोनों में सिवाय आपदा होने के और कोई समानता नहीं है। केदारनाथ दुर्घटना के कारण भिन्न थे।
फिर भी ऐसी आपदाओं से भविष्य में बचाव के लिये क्या होना चाहिये? इसका एक ही उत्तर है कि हिमनदों के व्यवहारों का सतत वैज्ञानिक अध्ययन और वैज्ञानिकों के निष्कर्षों के अनुसार योजनाओं का अनुपालन।
ये हुई थी घटना
गौरतलब है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में अचानक ऋषिगंगा और धौलगंगा नदी में पानी का जलजला आने से रैणी गांव में ऋषिगंगा नदी पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का डैम धवस्त हो गया था। इसने भारी तबाही मचाई और पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित धौलीगंगा नदी में एनटीपीसी के बांध को भी चपेट में ले लिया। इससे भारी तबाही मची और 150 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं। 31 लोगों के शव मिल चुके हैं। घटना रविवार की सुबह करीब दस बजे की थी। इससे अलकनंदा नदी में भी पानी बढ़ गया था। प्रशासन ने नदी तटों को खाली कराने के बाद ही श्रीनगर बैराज से पानी कंट्रोल कर लिया। वहीं, टिहरी डाम से भी आगे पानी को बंद कर दिया था। इससे बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई। आपदा से कई छोटे पुल ध्वस्त हो गए। 13 गांवों का आपस में संपर्क कट गया।
लेखक का परिचय
नाम: मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी
शिक्षा: एम.एससी., भूविज्ञान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएचडी. (हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय)
व्यावसायिक कार्य: डीबीएस. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देहरादून में भूविज्ञान अध्यापन।
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