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February 4, 2025

ना सड़क, ना संचार सुविधा, ना मनुष्य, ऐसे वीरान गांव में फंसे मुख्य चुनाव आयुक्त, आग तापकर बिताई रात, देख ली विकास के दावों की हकीकत

ना सड़क, ना संचार, ना ही बिजली, ना ही कोई मनुष्य। गांव पूरा खाली। ऐसे में इस गांव में कोई फंस जाए तो उसके लिए तो कुछ पल बिताना भी मुश्किल हो जाएगा। ऐसे गांव की झलक मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी देख ली होगी। वह भी जान गए होंगे कि विकास के दावे सिर्फ कागजों और भाषणों में होते हैं। ऐसा तब हआ जब उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के मुनस्यारी क्षेत्र के वीरान गांव रालम में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के हेलीकॉप्टर की इमरजेंसी लैंडिंग कराई गई। कारण ये था कि मौसम खराब हो गया। इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा सर्दी होने के कारण लोग निचले स्थानों की तरफ पलायन कर जाते हैं। ऐसे में मुख्य चुनाव आयक्त को ना तो समय से मदद मिली और ना ही रात को वह गांव की कैद से बाहर निकल पाए। बताया तो ये जा रहा है कि रात के समय वहां का तापमान चार से पांच डिग्री के करीब था। ऐसे में एक बंद घर का ताला तोड़कर उन्होंने और उनके साथ के लोगों ने सर्दी के बचने के लिए आग जलाकर पूरी रात काटी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बुधवार को केंद्रीय चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और प्रदेश के उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. विजय कुमार जोगदंडे देहरादून से हेलीकॉप्टर से ट्रेकिंग के लिए मुनस्यारी के मिलम के लिए निकले थे। रास्ते में मौसम खराब होने पर उसकी इमरजेंसी लैडिंग करानी पड़ी। हिमालयी क्षेत्र मिलम में मौसम में खराबी के चलते पॉयलट के लिए हेलिकॉप्टर को आगे ले जाना मुश्किल हुआ। ऐसे में हेलिकॉप्टर की मिलम से पहले रालम गांव में इमरजेंसी लैडिंग करानी पड़ी। एक खेत में हेलिकॉप्टर को सफलतापूर्वक उतारा गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

नहीं पहुंच पाई समय से राहत
रालम नाम के वीरान गांव में मुख्य चुनाव आयुक्त को देर रात तक भी प्रशासन की ओर से राहत नहीं पहुंचाई जा सकी। हिमालयी क्षेत्र के इस गांव के लोग निचले इलाकों में पलायन कर चुके हैं। ऐसे हालात में मुख्य चुनाव आयुक्त को बिजली, सड़क और संचार विहीन उस वीरान गांव के एक घर में रात गुजारनी पड़ी। उस वक्त गांव में तेज बारिश हो रही थी। गांव का तापमान चार-पांच डिग्री सेल्सियस था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बताया जा रहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने वीरान गांव के एक घर में आग तापकर पूरी रात गुजारी। हालांकि, इस अनुभव से उन्हें ये भी पता चल गया होगा कि विकास की गंगा सिर्फ कागजों में बह रही है। हकीकत कोसों दूर है। गांव के हालात देख वह दंग रह गए। आज सुबह उन्हें मुनस्यारी पहुंचाया गया है। अब जाकर प्रशासन ने राहत की सांस ली है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

तड़के पहुंची मदद
मुख्य चुनाव आयुक्त के रालम में फंसे होने की सूचना से प्रशासन में खलबली मच गई थी। गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी। लिहाजा आसपास के ग्रामीणों के साथ रेस्क्यू टीम करीब 25 किमी पैदल दूरी तय कर गुरुवार की तड़के करीब तीन बजे रालम पहुंची। उसके बाद उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रहने के लिए गांव में व्यवस्था की गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

खोखले विकास से हुए रूबरू
रालम गांव में रात भर फंसकर मुख्य चनाव आयुक्त विकास के उस खोखले दावे से भी परिचित हो गए होंगे, जो अक्सर केंद्र या राज्य सरकार करती है। ना ही गांव में सड़क और ना ही संचार की सुविधा। ये स्थिति तब है जब मोदी सरकार में सीमावर्ती गांवों को अंतिम नहीं कहकर पहले गांव के नाम से संबोधित किया जाने लगा है। बावजूद इसके देश के यह पहले गांव केवल नाम तक के लिए ही पहले हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हर साल सर्दियों में पलायन कर जाते हैं ग्रामीण
रालम भी उन पहले गांवों में से एक हैं, जो चीन सीमा के नजदीक बसा है। इस गांव में प्रतिवर्ष अप्रैल से अक्तूबर प्रथम सप्ताह तक तीन हजार से अधिक लोग माइग्रेट होकर पहुंचते हैं। करीब साढ़े चार माह तक ग्रामीण रालम में ही रहते हैं। चीन सीमा से सटा यह गांव मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहा है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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