नई बहसः ध्यानचंद से नाम पर वर्ष 2002 से खिलाड़ियों को खेल का सर्वोत्तम खेल पुरस्कार, फिर पीएम की घोषणा के मायने?
पीएम मोदी की घोषणा
अब सवाल उठता है कि हम खेलों को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं या फिर खेल को लेकर राजनीति हो रही है। भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम के प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार ‘खेल रत्न’ को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का नाम देने क ऐलान किया है। पीएम ने एक ट्वीट करके यह जानकारी दी। उन्होंने ट्वीट में लिखा कि-मेजर ध्यानचंद भारत के उन अग्रणी खिलाड़ियों में से थे, जिन्होंने भारत के लिए सम्मान और गौरव लाया। लोगों की भावनाओं को देखते हुए, इसका नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार किया जा रहा है। गौरतलब है के खेल रत्न पुरस्कार पहले ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ के नाम से जाना जाता था।
अब ध्यानचंद विकिपिडिया को देखें
गूगल में ध्यानचंद पुरस्कार, को सर्च करने पर जो जानकारी मिलती है ये इस प्रकार है। ध्यानचंद पुरस्कार, भारत का सर्वोत्त्म खेल पुरस्कार है जो किसी खिलाडी के जीवन भर के कार्य को गौरवान्वित करता है। आधिकारिक रूप से इसका नाम ‘खेलों में जीवनगौरव ध्यानचंद पुरस्कार’ है। इस पुरस्कार का नाम भारत के प्रसिद्ध मैदानी हॉकी के खिलाडी ध्यानचंद सिंह (1905-1979) के नाम पर रखा गया है। खेल एवं युवा मंत्रालय सन 2002 से ये पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रदान करता है। प्राप्तकर्ताओं का चयन मंत्रालय द्वारा गठित एक समिति द्वारा किया जाता है और उनके सक्रिय खेल कार्यकाल के दौरान और सेवानिवृत्ति के बाद दोनों के लिए उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है। 2016 के अनुसार इस पुरस्कार में एक प्रतिमा, प्रमाण पत्र, औपचारिक पोशाक और पांच लाख का नकद पुरस्कार शामिल है।
इनको मिल चुका है वर्ष 2017 तक ‘खेलों में जीवनगौरव ध्यानचंद पुरस्कार’ पुरस्कार
मटोरा स्टेडियम का नाम बदलकर किया था नरेंद्र मोदी स्टेडियम
गौरतलब है कि फरवरी 2020 में अहमदाबाद के सरदार पटेल स्टेडिययम को मोटेरा स्टेडियम के नाम से भी जाना जाता है। इसका नामकरण पीएम मोदी पर किया गया था। मोदी गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। नरेंद्र मोदी स्टेडियम को दुनिया के सबसे विशाल क्रिेकेट स्टेडियम होने का रुतबा हासिल है। अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खेल रत्न अवार्ड का नाम हाकी खिलाड़ी के नाम से करने की घोषणा की तो लोग सोशल मीडिया में मटोरा स्टेडियम का नाम बदलकर इसे खिलाड़ी के नाम से करने की मांग कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि जब जनभावनाओं को लेकर पीएम फैसला लेते हैं तो वे इसका नाम भी बदलें। खेल रत्न अवार्ड के नए नामकरण का स्वागत करते हुए क्रिकेटर इरफान पठान ने कहा कि- उम्मीद है भविष्य में खेल स्टेडियमों के नाम प्लेयर्स पर भी रखे जाएंगे।
भारतीय हॉकी के शानदार सफर में ओडिया का योगदान
हॉकी टीमों को बेहतरीन प्रदर्शन के लिए देशभर से बधाई तो मिल रही है, इसे लेकर ओडिशा सरकार की भी तारीफ हो रही है। यहां हम आपको बताते हैं कि आखिर भारतीय हॉकी टीम के बेहतरीन प्रदर्शन के बाद यह राज्य चर्चा में क्यों है।
कई खिलाड़ी दिए इस राज्य ने
ओडिशा के कई खिलाड़ी भारतीय हॉकी टीम के या तो हिस्सा रहे हैं या नेतृत्व किया है। चाहे पूर्व कैप्टन प्रबोधन टिर्की हो, वेटरन खिलाड़ी दिलीप टिर्की हो या फिर वर्तमान में तोक्यो ओलिंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम के उपकप्तान बीरेंद्र लकड़ा हों या महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी दीप ग्रेस एक्का, इन सभी ने हॉकी में राज्य और देश का नाम रोशन किया है।
हॉकी को आगे बढ़ाने में मदद
ओडिशा का भारतीय हॉकी को आगे बढ़ाने में योगदान यहीं तक सीमित नहीं है। ओडिशा सरकार भारतीय हॉकी के गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है। ओडिशा सरकार के हॉकी प्रेम और उसे आगे बढ़ाने की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि यह राज्य भारत की महिला, पुरुष और जूनियर हॉकी टीमों का 2018 से आधिकारिक स्पॉन्सर है। पिछले कुछ सालों में हॉकी के कई बड़े टूर्नमेंट जैसे पुरुष हॉकी वर्ल्ड कप, वर्ल्ड लीग, प्रो लीग और ओलिंपिक क्वॉलीफायर्स का आदि के मैच राजधानी भुवनेश्वर में हुए हैं। ओडिशा लगातार हॉकी टीमों की विभिन्न तरीके से मदद करता रहता है।
भारत का गौरव वापस लाने में जुटी है ओडिसा सरकार
ओडिशा सरकार भारतीय हॉकी का गौरव वापस लाने के लिए 2018 से ही सभी देश की सभी राष्ट्रीय हॉकी टीमों (महिला, पुरुष और जूनियर ) की मदद कर रही है। ये देश का इकलौता राज्य हैं जो किसी भी नैशनल हॉकी टीम के आधिकारिक पार्टनर हैं। लगातार सपोर्ट मिलने से भारतीय टीमों के प्रदर्शन में स्थिरता आई है। ये सब प्रयास ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की ओर से किए जा रहे हैं।
कॉरपोरेट नहीं, सरकार आइ आगे
दरअसल, आमतौर पर ओलंपिक जैसे बड़े खेलों में टीमों को कॉरपोरेट स्पॉन्सर करता है, लेकिन भारतीय हॉकी की कहानी कुछ दूसरी है। पुरुष और महिला हॉकी टीम को कोई कॉरपोरेट नहीं, बल्कि ओडिशा की सरकार कर रही है। इसको लेकर आम लोगों से लेकर सोशल मीडिया तक ओडिशा और उसके मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की काफी चर्चा हो रही है।
मदद के नाम पर अपनी फोटो तक सीमित नेता
खेलों को बढ़ावा देने के लिए भले ही केंद्र सरकार ने कुछ विशेष प्रयास नहीं किए हों। खेल के संशोधित बजट में कटौती तक कर दी। वहीं, एक बात तो है कि ओलंपिक में गए खिलाड़ियों को बधाई देने वाले नेताओं की फोटो के विज्ञापन हर जगह दिख जाएंगे। खिलाड़ियों की फोटो की बजाय पीएम हों या खेल मंत्री, उनकी फोटो ऐसे विज्ञापनों में दिख जाएंगी। इसी तरह खिलाड़ी की जीत पर बधाई देने की होड़ सिर्फ ओलंपिक के दौरान ही रहती है। खेल खत्म होने के बाद सब कुछ भुला दिया जाता है। वहीं, ओडिशा सरकार का योगदान अहम है।
जरूरत पड़ी तो साथ दिखे पटनायक
भारतीय हॉकी टीम को जब वित्तीय सहायता की जरूरत थी, तब कोई और नहीं, बल्कि नवीन पटनायक ही साथ खड़े हुए। उनकी सरकार ने दोनों टीमों को स्पॉन्सर किया और आज वह समय है, जब टोक्यो ओलंपिक में सबसे ज्यादा चर्चा वाली टीमों में भारतीय हॉकी टीम भी शामिल हो गई है। दरअसल, नवीन पटनायक खुद भी स्कूल के दिनोंमें गोलकीपर रह चुके हैं। पहली बार ओडिशा ने राष्ट्रीय पुरुष और महिला हॉकी को स्पॉन्सर करने का फैसला किया, जिसके बाद वह इस तरह का पहला राज्य बन गया।
भारत सरकार ने बजट में की कटौती
संसद में पेश किये गये आम बजट में केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए खेलों के बजट में कटौती की है। इस बजट में खेल के लिए कुल 2,596.14 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है जो पिछले साल के बजट से 230.78 करोड़ रुपए कम है। हालांकि खेल प्राधिकरण (साई) को 660.41 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तावित किया गया है जो पिछले साल 500 करोड़ रुपए ही था। खेल मंत्रालय के प्रमुख आयोजन खेलो इंडिया के बजट में भी कटौती की गई है। इस बार 657.71 करोड़ रुपए का ही आवंटन किया गया है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 में इस आयोजन के लिए 890.42 करोड़ रुपए देने की घोषणा हुई थी। खेल के लिए आवंटित कुल बजट की बात करें तो यह पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान से 795.99 करोड़ रुपए अधिक है। वर्ष 2020-21 में खेल के लिए पहले 2826.92 करोड़ रुपए देने की घोषणा हुई थी जिसे बाद में घटाकर 1800.15 करोड़ कर दिया गया था।
ध्यानचंद को भारत रत्न के लिए गंभीर नहीं हुई कोई भी सरकार
अपने जीवन काल में ही एक मिथकीय हीरो बन चुके हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिए जाने की मांग और चर्चा अक्सर होती रही है, लेकिन उन्हें यह सम्मान आज तक नहीं दिया जा सका है। 2014 में मेजर ध्यानचंद के नाम की सिफ़ारिश को ठुकराते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार ने क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को ‘भारत रत्न’ दे दिया था।
मिली जानकारियों के मुताबिक मेजर ध्यानचंद का बायोडेटा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय में सचिन से कई महीने पहले ही पहुंच चुका था। उस पर पीएम की स्वीकृति भी मिल चुकी थी, लेकिन बाद में अचानक क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के नाम पर मुहर लगा दी गई। 11 अप्रैल 2011 को भाजपा सांसद मधुसूदन यादव ने केंद्र सरकार से सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिए जाने के लिए नियमों में बदलाव का आग्रह किया था। तब तक यह सम्मान साहित्य, कला, विज्ञान और जनसेवा के क्षेत्र में दिया जाता था, खिलाड़ियों के लिए भारत का शीर्ष सम्मान अर्जुन अवार्ड है।
हॉकी फेडरेशन ने की थी मांग, पलट गया पासा
इसके बाद सरकार ने भारत रत्न सम्मान के नियमों में बदलाव करते हुए उल्लेखनीय कार्य करने वाले सभी भारतीयों को अवार्ड के योग्य माना जिसमें खेलकूद भी शामिल हो गया। 22 दिसंबर 2011 को इंडियन हॉकी फ़ेडरेशन ने ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की सिफारिश की। पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने 12 जुलाई 2013 को तत्कालीन खेल मंत्री जितेंद्र सिंह से मिल कर भारत रत्न ध्यानचंद को दिए जाने की मांग के साथ ध्यानचंद जी का एक बायोडेटा सौंपा, जिस पर खेल मंत्री से लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक की सहमति रही। बाद में पासा ही पलट गया।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।