एम्स ऋषिकेश में यूरोडायनामिक्स पर राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न, देशभर के यूरोलॉजिस्टों ने किया प्रतिभाग
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश के यूरोलॉजी विभाग द्वारा दो दिवसीय कार्यशाला में देशभर के विभिन्न स्थानों से आए मूत्ररोग विशेषज्ञों ने मूत्ररोग और उसके उपचार के बावत विस्तृत मंथन किया। विशेषज्ञ चिकित्सकों ने सम्मेलन में कहा कि मेडिकल क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों का उपयोग कर जोखिम कम रहता है और इससे मूत्ररोग से सम्बन्धित इलाज को आसान बनाया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि एम्स की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने इस अकादमिक सम्मेलन की सराहना की और कहा कि इस सम्मेलन से विशेषरूप से यूरोलॉजी विभाग के एमसीएच छात्रों को लाभ मिलेगा। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि मरीजों के इलाज में नवीनतम तकनीकों और बेहतर प्रक्रिया को अपनाए जाने से न केवल मरीजों को अपितु सर्जरी करने वाली डॉक्टरों की टीम भी लाभान्वित हो सकेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संस्थान की कार्यकारी निदेशक डॉ. मीनू सिंह ने कहा कि रोगी के उपचार में अनुभव के साथ-साथ चिकित्सक की संवाद शैली भी निर्भर करती है। ऐसे में मरीजों के इलाज के दौरान इलाज की बेहतर तकनीक अपनाने के साथ ही मरीजों के साथ संवेदनशीलता को भी अपनाए जाने की जरूरत है। सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि एम्स के डीन एकेडेमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने इलाज के अलावा समय-समय पर इसके मूल्यांकन की भी आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि इस राष्ट्रीय सम्मेलन से सभी को यूरोडायनामिक्स में मूल अवधारणाओं को समझने में मदद मिलेगी और एक-दूसरे के साथ इलाज व तकनीकों की जानकारी साझा करने से इलाज प्रक्रिया का अनुभव भी हासिल होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एम्स ऋषिकेश के यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अंकुर मित्तल द्वारा देशभर से आए मूत्र रोग विशेषज्ञों को सम्मेलन का उद्देश्य और यूरोडायनामिक्स में नवीनतम प्रगति से अवगत कराया गया। उन्होंने कहा कि यूरोडायनामिक्स कई यूरोलॉजिस्टों के लिए एक मुश्किल क्षेत्र है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि सम्मेलन में व्यापक चर्चा के बाद यूरोडायनामिक परीक्षण से गुजरने वाले रोगियों की व्याख्या और प्रबंधन का हम सभी को लाभ मिलेगा। डॉ. मित्तल ने सम्मेलन के दौरान मूत्ररोग निदान की विभिन्न नवीनतम तकनीकों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि तकनीकों को रोगियों के लाभ के लिए नैदानिक अभ्यास में नियोजित किया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सम्मेलन में पुरुष और महिला मूत्र पथ संबंधी विकारों पर भी व्यापक चर्चा की गई। दो दिन तक चले इस सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों से आए मूत्ररोग विशेषज्ञों ने इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि रोगियों की पीड़ा को कम करने के लिए दुर्लभ मूत्रविज्ञान विकारों का शीघ्र निदान कैसे किया जाए। विशेष रूप से उन रोगियों के इलाज विधि पर भी चर्चा की गई जिन्हें अब तक पर्याप्त उपचार नहीं मिल पाया है। इसके साथ ही संबन्धित विषय पर लाईव वर्कशॉप का आयोजन भी किया गया। जिसमें यूरोलॉजी से संबंधित नवीनतम दवाएं, उपकरण और रोगियों की बेहतर स्वास्थ्य देखभाल के लिए नैदानिक अभ्यास में उपयोग किए जाने हेतु प्रदर्शन किया गया। इस दौरान स्नातकोत्तर और एमसीएच छात्रों के लिए प्रश्नोत्तरी का आयोजन भी किया गया। जिसमें विजेताओं को प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार प्रदान किए गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एम्स ऋषिकेश के यूरोलॉजिस्ट डॉ. अरूप कुमार मंडल तथा डॉ. विकास कुमार पंवार ने भी सम्मेलन को संबोधित किया। इस दौरान पीजीआई चंडीगढ़ के यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर एस.के. सिंह, दिल्ली एम्स से प्रो. अमलेश सेठ, बीएचयू वाराणसी से प्रो. समीर त्रिवेदी, एसएमएस जयपुर से प्रो. शिवम, केजीएमयू लखनऊ से डॉ. सांखवार सहित डॉ. मयंक अग्रवाल, डॉ. अपर्णा हेगड़े, डॉ. संजय सिन्हा और डॉ. ललित शाह सहित विभिन्न क्षेत्रों से आए कई मूत्ररोग विशेषज्ञ शामिल थे।
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।