एलियंस के लिए नासा ने बृहस्पति के चंद्रमा में भेजा जूस, शनि के चंद्रमा में सांप करेगा जीवन की खोज
एक सवाल बार बार ये उठता है कि क्या पृथ्वी के बाहर भी जीवन है। बीते कई दशकों से वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश में जुटे हुए हैं। नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) लगातार इस बारे में रिसर्च कर रहा है। वैज्ञानिक हमेशा से इस सवाल का जवाब खोज रहे हैं कि क्या इस संसार में हम अकेले हैं या पृथ्वी से बाहर कहीं और भी जीवन है? हमारे सौर मंडल में अगर जीवन खोजने की बात कहें तो वैज्ञानिकों का सबसे पहला टार्गेट मंगल ग्रह है। वहीं, दूसरे नंबर पर वैज्ञानिक बृहस्पति और शनि के बर्फीले चंद्रमाओं को जीवन के लिए सबसे उपयुक्त मानते हैं। ऐसे में बृहस्पति और शनि के चंद्रमा में जीवन की तलाश के लिए अभियान जारी है। बृहस्पति के चंद्रमा में जीवन की तलाश के लिए जूस भेजा जा चुका है। वहीं, शनि के चंद्रमा के लिए सर्पिले आकार का रोबोट तैयार किया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
रवाना हो चुका है जूस
जीवन की खोज के लिए ही एक यूरोपीय अंतरिक्ष यान शुक्रवार 14 अप्रैल 2023 को हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति और उसके तीन बर्फीले चंद्रमाओं का पता लगाने के लिए एक दशक लंबे खोजी अभियान पर सफलतापूर्वक रवाना हो चुका है। दरअसल, इसके जरिए यह पता लगाया जाएगा कि कहीं और जीवन मौजूद है या नहीं। ये अंतरिक्ष यान बृहस्पति ग्रह के चंद्रमा के लिए आठ साल की कठिन यात्रा करेगा। इस स्पेसक्राफ्ट का नाम जूस (Jupiter Icy Moons Explorer-Juice) है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जीवन की संभावनाओं का लगाएगा पता
जूस सैटेलाइट का लॉन्च यूरोप के सबसे बड़े मिशन में से एक हैं। यह अंतरिक्ष यान बृहस्पति और इसके तीन बड़े महासागर वाले चंद्रमाओं कैलिस्टो, गेनीमेड और यूरोपा के करीब से गुजरेगा। जब यह रहस्यमयी दुनिया के करीब पहुंचेगा तो बृहस्पति की भी अपने उपकरण से जांच करेगा। इसके अलावा यह बृहस्पति के चंद्रमाओं पर जीवन होने की संभावना का भी पता लगाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बता दें कि फ्रेंच गुयाना से शुक्रवार आठ अप्रैल की सुबह एरियन रॉकेट को लॉन्च किया गया था। बृहस्पति तक पहुंचने में रोबोटिक एक्सप्लोरर ‘जूस’ को आठ साल लगेंगे, जहां यह न केवल सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह, बल्कि यूरोपा, कैलिस्टो और गेनीमेड को भी देखेगा। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के परियोजना वैज्ञानिक ओलीवर वितासे ने जोर देकर कहा कि हम जूस पर जीवन का पता लगाने नहीं जा रहे हैं। हालांकि, चंद्रमाओं और उनके संभावित समुद्रों के बारे में अधिक जानने से वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब तलाशने के करीब पहुंचेंगे कि क्या कहीं और भी जीवन है? उन्होंने कहा कि यह इस मिशन का सबसे रोचक पहलू होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
6.6 अरब किमी की करेगा यात्रा
इसके बाद यह स्पेसक्राफ्ट साढ़े आठ साल का समय अपने गंतव्य तक पहुंचने में लगाएगा। यह स्पेसक्राफ्ट 6.6 अरब किमी की यात्रा करेगा और 2031 तक बृहस्पति के करीब पहुंचेगा। आम लोग इस स्पेसक्राफ्ट का लॉन्च अंतरिक्ष एजेंसी के यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी देख सकते हैं। यह सैटेलाइट 2034 के अंतर में चंद्रमा गेनीमेड की स्थाई कक्षा में प्रवेश करने से पहले तीन चंद्रमाओं के करीब से 35 बार गुजरेगा। यह एक हेयर ड्रायर के बराबर ऊर्जा पर भी चल सकेगा। अपने इलेक्ट्रॉनिक उपरकण को सुरक्षित रखने के लिए इसके पास परमाणु बंकर है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यूरोपा का वातावरण है कठोर
जूस में 10 उपकरण लगे हैं। इनमें से एक उपकरण को ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने बनाया है। यूके स्पेस एजेंसी में अंतरिक्ष विज्ञान की प्रमुख डॉ कैरोलिन हार्पर ने कहा, ‘जूस हमें सौर मंडल के उस हिस्से में ले जाएगा, जिसके बारे में हम अभी बेहद कम जानते हैं। बृहस्पति के बर्फीले चंद्रमाओं पर पानी हो सकता है।’ बृहस्पति के चंद्रमाओं में यूरोपा ही ऐसा है, जिस पर जीवन होने की सबसे ज्यादा संभावना है। हालांकि जूस इसकी सिर्फ छोटी सी झलक पा सकेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्रमा के चारों ओर का वातावरण इतना कठोर है कि वह अंतरिक्ष यान को कुछ ही महीनों बर्बाद कर देगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बृहस्पति पर पहले पहुंचेगा नासा का स्पेसक्राफ्ट
जूस से करीब डेढ़ साल बाद लॉन्च किए जाने के बावजूद नासा का स्पेसक्राफ्ट बृहस्पति पर एक साल पहले ही पहुंच जाएगा, क्योंकि इसे स्पेसएक्स के शक्तिशाली रॉकेट पर लॉन्च होगा। ऐसे में सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह पर एक साथ दो अंतरिक्ष यान मौजूद होंगे। नासा 70 के दशक से बृहस्पति का अन्वेषण कर रहा है। हालांकि, इस दौरान बृहस्पति पर मात्र एक ही एयरक्राफ्ट मौजूद रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आसान नहीं होगी जूस की यात्रा
पृथ्वी से लेकर बृहस्पति तक यूरोपीय एयरक्राफ्ट जूस की यात्रा आसान नहीं होने वाली है। बता दें कि जूस एक लंबे और गोलाकार मार्ग से बृहस्पति तक जाएगा, जो 6.6 अरब किलोमीटर की दूरी तय करेगा। बता दें कि नासा के अंतरिक्ष यान का सुरक्षा आवरण जूस से भी ज्यादा मजबूत है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
शनि के चंद्रमा में जीवन की तलाश में सांप की आकृति का रोबोट
इसी कड़ी में अब नासा पृथ्वी से दूर जीवन की मौजूदगी को तलाशने के लिए एक सांप जैसा रोबोट विकसित कर रहा है। उनका कहना है कि यह रोबोट विभिन्न इलाकों में अपनी विविध अनुकूलन क्षमता के माध्यम से अंतरिक्ष अन्वेषण को बढ़ावा दे सकता है। इस रोबोट को विशेष रूप से डिजाइन किया गया है, जिसका खास फोकस शनि के छठे सबसे बड़े चंद्रमा ‘एन्सेलेडस’ (Enceladus) पर है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बर्फीले पिंड से बनी है खोज की आशा
एन्सेलेडस शनि के 83 चंद्रमाओं में से एक है। यह 1789 में खोजा गया एक छोटा बर्फीला पिंड है, जिसे वैज्ञानिक रूप से सौर मंडल के सबसे दिलचस्प स्थलों में से एक माना गया है। एन्सेलेडस अपने वैश्विक महासागर और आंतरिक गर्मी के कारण नासा के लिए जीवन की खोज में एक आशाजनक पिंड बन गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जीवन के साक्ष्यों की तलाश करने में करेगा मदद
इस खास रोबोट को ईईएलएस यानी ‘एक्सोबायोलॉजी एक्सटेंट लाइफ सर्वेयर’ नाम दिया गया है, जो एन्सेलेडस की बर्फीली सतह पर पानी और जीवन के लिए अन्य जरूरी तत्वों के साक्ष्य की तलाश करने में मदद करेगा। नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के मुताबिक-ईईएलएस सिस्टम असल में एक मोबाइल इंस्ट्रूमेंट प्लेटफॉर्म है, जो आंतरिक इलाकों की संरचनाओं का पता लगाने और जीवन के साक्ष्यों का पता लगाने में मदद करेगा। इसे खासतौर पर समुद्री दुनिया, भूलभुलैया जैसे कठिन वातावरण और तरल पदार्थों के अनुकूल डिजाइन किया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारी मात्रा में पानी की संभावना
एन्सेलेडस की बर्फीली सतह अपेक्षाकृत काफी चिकनी बताई जा है, जहां तापमान माइनस 300 डिग्री फारेनहाइट से भी अधिक रहता है। आशंका जताई जा रही है कि बर्फीली सतह के नीचे भारी मात्रा में पानी मौजूद हो सकता है। कैसिनी अंतरिक्ष यान द्वारा मिले आंकड़ों की मानें तो सतह से निकलने वाले प्लम (एक प्रकार का धुंआ) सीधे पानी में जाते हैं, जिसकी वजह से यह संभावित रूप से रहने योग्य तरल महासागर जैसा बन जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
16 फुट लंबा है रोबोट
अभी तक नासा ने ईईएलएस प्रोजेक्ट लॉन्च के लिए कोई निश्चित तारीख निर्धारित नहीं की है। इससे जुड़े किसी भी मिशन के शुरू होने में अभी काफी समय लग सकता है। अगर 16 फुट लंबा यह सांप जैसा रोबोट सफल होता है, तो इससे अन्य आकाशीय ग्रहों और संरचनाओं के गहन खोज का द्वार खुल सकता है, जहां अब तक पहुंचना बेहद मुश्किल था।
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