नासा ने खोजा सौर तूफान का स्रोत, अंतरिक्ष में जाने से मानव शरीर पर पड़ता है प्रतिकूल प्रभाव, पढ़िए विज्ञान का सच
दुनिया भर के वैज्ञानिक ब्रह्मांड के रहस्यों को लेकर अध्ययन कर रहे हैं। साथ ही चंद्रमा, मंगल ग्रह में जीवन की संभावना और मानव को बसाने को लेकर खोज की जा रही है। इसके साथ ही सूर्य के रहस्यों पर भी अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा नजर रख रही है। इस दौरान दो खोज सामने आई हैं। इनमें एक ये है कि नासा ने सूर्य की सतह पर सौर तूफान का स्रोत खोजा है। वहीं, दूसरी खबर ये है कि अंतरिक्ष पर जाने से मानव शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नासा के सोलर प्रोब से मिली अहम जानकारी
सूर्य के रहस्यों को उजागर करने के लिए भेजे गए नासा के पार्कर सोलर प्रोब के हाथ बड़ी सफलता लगी है। इस प्रोब के डेटा ने सूर्य के सतह पर सौर हवा से स्रोत की खोज की है। इस स्रोत से भारी संख्या में आवेशित कण सूर्य की सतह से निकलकर पृथ्वी की ओर बह रहे हैं। पार्कर सोलर प्रोब का नाम दिवंगत खगोल वैज्ञानिक यूजीन पार्कर के नाम पर रखा गया था। इस प्रोब को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 2018 में लॉन्च किया था। इस अभियान का प्रमुख मकसद यह निर्धारित करना था कि सूर्य की सतह पर बनने के वक्त सोलर विंड या सौर हवा कैसी दिखती है और यह सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से कैसे बचती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सूर्य की सतह को पहली बार किया स्पर्श
नासा ने बताया कि पार्कर सोलर प्रोब जैसे सूर्य के सतह के 13 मिलियन मील (20.9 मिलियन किलोमीटर) के भीतर जैसे ही जांच शुरू की। इसके उपकरणों ने सौर हवा की ठीक संरचनाओं का पता लगाया। यह हवा फोटोस्फीयर या सौर सतह के पास उत्पन्न होती है। इस अंतरिक्ष यान को विशेष रूप से सौर सतह के ऊपर 4 मिलियन मील (6.4 मिलियन किलोमीटर) के भीतर उड़ान भरने के लिए डिजाइन किया गया है। इस मिशन ने 2021 के अंत में सूर्य के सतह को पहली बार स्पर्श किया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तूफान की गति 800 किमी प्रति सेकेंड
सौर हवा या सोलर विंड या सौर तूफान के स्रोत की खोज से संबंधित विवरण का अध्ययन बुधवार को नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि सौर हवा प्लाज्मा का एक निरंतर बहाव है, जो सतह से बाहर की ओर होता है। इसमें प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन जैसे आवेशित कण होते हैं। इसमें सौर चुंबकीय क्षेत्र का हिस्सा भी शामिल है जो कोरोना से काफी आगे तक फैली हुई है। यह हवा दो प्रकार की होती है। सूर्य के ध्रुवों पर 497 मील प्रति सेकंड (800 किलोमीटर प्रति सेकंड) की चरम गति से कोरोना के छेद से तेज सौर हवा बहती है। वहीं बाकी हिस्सों में बहने वाली सौर हवा 249 मील प्रति सेकंड (400 किलोमीटर प्रति सेकंड) की शांत गति से बहती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
क्या पृथ्वी को भी है खतरा
अब सवाल ये उठता है कि क्या सौर तूफान से पृथ्वी को भी खतरा है। तेज सौर हवा आमतौर पर पृथ्वी को प्रभावित नहीं करती है, लेकिन अधिकतम सौर चक्र के दौरान सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र पलट जाता है। यह फ्लिप सूर्य की सतह पर कोरोनल छिद्रों को प्रकट करने का कारण बनता है और सौर हवा के फटने को सीधे पृथ्वी की ओर छोड़ता है। सौर हवा के स्रोत को समझने से वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष के मौसम और पृथ्वी को प्रभावित करने वाले सौर तूफानों की बेहतर भविष्यवाणी करने में मदद मिल सकती है। इन सौर हवा के कारण पृथ्वी पर सुंदर अरौरा का नजारा बनता है हालांकि, ये सौर तूफान उपग्रहों और पृथ्वी के विद्युत ग्रिडों को भी प्रभावित कर सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अंतरिक्ष में जाने वाले मानव पर पड़ रहे हैं प्रतिकूल प्रभाव
अंतरिक्ष में जाने से मानव शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसमें माइक्रोगैविटी की स्थिति और अन्य कारक हमारे शरीर को सिर से लेकर पैर तक नुकसान पहुंचा रहे हैं। सबसे ज्यादा चिंता सिर को लेकर सामने आई है। नासा द्वारा वित्त पोषित एक नई स्टडी में इसे लेकर विस्तार से बताया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
शोध में किया खुलासा
शोधकर्ताओं ने गुरुवार को कहा कि छह महीने तक चलने वाले मिशनों पर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) या नासा अंतरिक्ष शटल पर यात्रा करने वाले अंतरिक्ष यात्रियों ने सेरेब्रल वेंट्रिकल्स, मस्तिष्क के बीच में मस्तिष्कमेरु द्रव युक्त स्थान, के महत्वपूर्ण विस्तार का अनुभव किया। यह रंगहीन और पानी जैसा तरल पदार्थ होता है, जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में या उसके आसपास बहता है। यह अपशिष्ट उत्पादों को हटाकर मस्तिष्क की रक्षा करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पूरी तरह ठीक होने में लगे तीन साल
30 अंतरिक्ष यात्रियों के ब्रेन स्कैन के आधार पर, शोधकर्ताओं ने पाया कि इस तरह की यात्राओं के बाद वेंट्रिकल्स को पूरी तरह से ठीक होने में तीन साल लग गए। उन्होंने सुझाव दिया कि लंबे अंतरिक्ष मिशनों के बीच कम से कम तीन साल की अवधि का अंतराल उचित होगा। यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के न्यूरोसाइंटिस्ट हीथर मैकग्रेगर जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित अध्ययन के प्रमुख लेखक हैं। उन्होंने कहा कि यदि वेंट्रिकल्स के पास बैक-टू-बैक मिशनों के बीच ठीक होने के लिए पर्याप्त समय नहीं है तो यह माइक्रोग्रैविटी में तरल परिवर्तन से निपटने के लिए मस्तिष्क की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वेंट्रिकुलर विस्तार के प्रभाव का नहीं चला पता
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में शरीर विज्ञान और काइन्सियोलॉजी के प्रोफेसर और अध्ययन के वरिष्ठ लेखक राचेल सीडलर ने कहा, अंतरिक्ष यात्रियों में वेंट्रिकुलर विस्तार के प्रभाव का अबतक खुलासा नहीं चल पाया है। अधिक दीर्घकालिक स्वास्थ्य अनुवर्ती की आवश्यकता है। यह वेंट्रिकुलर विस्तार संभवतः आसपास के मस्तिष्क के ऊतकों को संकुचित करता है। सिडलर ने कहा कि पृथ्वी पर हमारे संवहनी तंत्र में वाल्व होते हैं जो गुरुत्वाकर्षण के कारण हमारे सभी तरल पदार्थों को हमारे पैरों पर जमा होने से रोकते हैं। माइक्रोग्रैविटी में विपरीत होता है। तरल पदार्थ सिर की ओर शिफ्ट हो जाते हैं। इस हेडवर्ड फ्लुइड शिफ्ट के परिणामस्वरूप वेंट्रिकुलर विस्तार होता है और मस्तिष्क खोपड़ी के भीतर अधिक बैठता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
स्टडी में शामिल हुए 30 अंतरिक्ष यात्री
इस अध्ययन में अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसियों के 23 पुरुष और सात महिला अंतरिक्ष यात्री शामिल थे जिनकी औसत उम्र 47 के आसपास थी। आठ ने लगभग दो सप्ताह के अंतरिक्ष यान मिशन पर यात्रा की। अठारह लगभग छह महीने के आईएसएस मिशन पर थे और चार लगभग एक साल के आईएसएस मिशन पर थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
छोटे मिशनों में नहीं पड़ा कोई प्रभाव
छोटे मिशनों के बाद अंतरिक्ष यात्रियों में वेंट्रिकुलर आयतन में बहुत कम या कोई परिवर्तन नहीं हुआ। छह महीने या उससे अधिक के मिशन के बाद अंतरिक्ष यात्रियों में वेंट्रिकुलर में इजाफ़ा हुआ। हालांकि, छह महीने तक उड़ान भरने वालों की तुलना में एक साल तक उड़ान भरने वालों में कोई अंतर नहीं था। मैकग्रेगर ने कहा कि इससे पता चलता है कि अंतरिक्ष में पहले छह महीनों के दौरान अधिकांश वेंट्रिकल इज़ाफ़ा होता है, फिर एक साल के निशान के आसपास बंद होना शुरू हो जाता है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।