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September 29, 2025

गढ़वाली लोकगाथा गंगू रमोला का कथात्मक रूपांतरण, पढ़िए कहानी

सुरलोक से भी अनुपम जिसकी महिमा गाई जाती है, वही पंच बद्री, पंच केदार, गंगोत्री, यमनोत्री, पंचनाम देवों की पावन पवित्र भूमि है ‘गढवाल’। धर्मधाम गढ़वाल का भूःभाग प्राकृतिक सौंदर्य का भी धाम है, जहां स्वर्गारोहिणी, श्रीबद्रीनाथ, श्रीकेदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री की हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलायें, फूलों की घाटी, और हेमकुण्ड साहिब अवस्थित हैं। आदिकाल से ही देवताओं की अनुकरणीय गढ़वाल की लोक संस्कृति अति समृद्ध और अतुलनीय है।
संस्कृति के अतर्गत खानपान, रीति रिवाज, रहन सहन, पर्यावरण, इतिहास, भूगोल, परम्परा सभी समाहित होता है। किसी भी क्षेत्र विशेष की संस्कृति के सच्चे संवाहक और प्राण होते हैं लोकगीत ! जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पूर्वजों से हमें विरासत में मिलते हैं। इनकी एक परम्परा होती है, इसीलिए ये पारम्परिक होते हैं। यह व्याक्ति विशेष के न हो कर जनसामान्य की सामूहिक घरोहर हैं। जो स्वयंभूः हैं। गढ़वाली लोक संगीत परम्परा में अनेक शैलियां हं, जिनमें लोक गाथाओं का अति महत्वपूर्ण स्थान है। लोक गाथाओं को स्थान-स्थान पर लोग अपनी तरह से गाते हैं किन्तु गाथा में ऐतिहासिक भाव एक ही होता है।
लोक गाथा
लोक गाथा एक गीतात्मक या काव्यात्मक कथा आख्यान हैं। लोक गाथाओं में स्थान विशेष की ऐतिहासिक धरोहर उकेरी गई है। किसी भी क्षण को आत्मसात कर व्यक्त करने का सबसे सरल हृदयग्राही माध्यम होता है गीत गायन ! जिसमें मनुष्य अपने मन के भावों की अभिव्यक्ति कम से कम शब्दों में व्यक्त कर सकता है। लोक की अभिव्यक्ति सरलता पूर्ण गीत गायन शैली में उकेरी गई सच्ची ऐतिहासिक अनुभूतियां ही लोक गाथायें कहलाती हैं। जो हर युग में जीवनता प्रदान करती हैं। गढ़वाल में इस मौखिक परम्परा में अनेक लोक गाथायें है। जैसे:-
(1) जागर गाथायें- इनमें देवगाथायें, तंत्रमंत्र या झाड़ो ताड़ो, हंत्या के जागर, महाभारत की गाथायें, आंछरी, सैद्वाळी मुख्य हैं।
(2) पॅवाड़ा या भडै़लो – वीर गाथायें
(3) सम सामयिक घटना प्रधान, ऋतु प्रधान गाथायें और करूण या हास्य रस प्रधान,
(4) प्रणय गाथायें
गंगू रमोला, लोकगाथा का कथात्मक रूपांतरण
उत्तराखंड के बीर भडों की गाथाओं में गंगू रमोला की लोकगाथा गढ़वाल से कुमाऊॅं तक आज भी रमोल गाथाओं के अन्तर्गत गायी जाती हैं। गंगू रमोला की लोकगाथा भक्त और भगवान के पारस्परिक सम्बन्धों को उजागर करती है। लोक गाथा का अंश:-
ताम कि तमोली ताम की तमोली, ताम कि तमोली ताम की तमोली,
चित लाई मन तेरी बॉकी रमोली। चित लाई मन तेरी बॉकी रमोली ।
हे गंगू रमोला तेरी बॉकी रमोली। हे गंगू रमोला तेरी बॉकी रमोली ।
हे गंगू रमोला मि जगा दियाल, हे गंगू रमोला मि जगा दियाल।
ऑंदा जॉंदा बटोई मै जगा नी देंदू, ऑंदा जॉंदा बटोई मै जगा नी देंदू,
नौ छमी नारैण मि जगा नी देंदू। नौ छमी नारैण मि जगा नी देंदू।
चॉंदू भैस पर रमोला कू भाग। चॉंदू भैस पर रमोला कू भाग।
बाजी जालु भॉंणु, हे गंगू रमोला, बाजी जालु भांणु
तेरी रमोली पर भूसू होया खाणु। तेरी रमोली पर भूसू होया खाणु।
लोकगाथा के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण ने स्वप्न में गंगू रमोला का गढ़, ‘रमोली गढ़’ देखा। स्वप्न क्या था जैसे जागृत अवस्था ही थी, भगवान कृष्ण ने शैया पर लेटे-लेटे रमोली गढ़ अति सुन्दर रमणीक, विशाल स्वर्ण पर्वत जैसा पाया। उन्हें लगा कि रमोली गढ़ द्वारिका से भी सुन्दर है, जिसके पाश्र्व में श्वेत कमल की भॉंति गगनचुंबी पर्वत श्रृंखलायें चमक रही हैं। गढ़ के पास हरे भरे पर्वत एवं दूध के समान श्वेत जल वाली नदियां परिक्रमा कर रही हैं। सूदूर क्षेत्र जहां योजनों तक हरे भरे मखमली घास के बुग्याल हैं। शीतल जल के झरने और मधुर गीत गुनगुनाते पशु पक्षी ठंडी-ठंडी पवन के साथ मधुर रस घोल रहे हैं।
गंगू रमोला की भेड़- बकरियां, गाय-भैंसों के दल के दल, रसीले फल, पर्वतीय अनाजों से भरे खेत-खलिहान उन्हें परस्पर अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण सोये-सोये में बड़बड़ा रहे थे। उसी समय उनके कक्ष में रानी रूकमणी उनका यह रूप देखकर अचंभित होने लगी और अपने हाथों से उन्हे जगाने लगी, हाथ लगते ही उनकी आंख खुल गई और उन्होने सपने में देखी स्वर्णिम आनन्द की बात रुकमणी को बताई और कहा- ‘रमोली के लिए अगर मुझे बैकुंठ भी छोड़ना पडे़ तो मैं उसे भी छोड़ दूंगा। रमोली के सामने अब मुझे द्वारिका अच्छी नहीं लग रही’।
लोकगाथा का अंश
मैल देखी राणी आज बद्रीनाथ देस,
मैल देखी राणी आज बद्रीनाथ देस।
रमोली को गढ़, बूढ़ो गंगू की छड़्याली सेरी।
रमोली को गढ़, बूढ़ो गंगू की छड़्याली सेरी।
जब भगवान द्वारिका नारायण राज दरबार में पहुंचे तो उन्होंने अपने राजदूत पवनवेग को निर्देशित किया-‘पवनवेग ! तुम शीघ्र ही उत्तर दिशा में हिमालय की पावन भूमि उत्तराखंड की रमोली गढ़ नामक सुन्दर नगरी में जाओ और वहां के राजा गंगू रमोला को मेरा पत्र सौंपकर उनसे विनय करना कि मैं उनके क्षेत्र में निवास करना चाहता हूं, क्योंकि मेरा मन रमोली में रम गया है, इसलिए वो मुझे अपनी रमोली मैं ढ़ाई गज ज़मीन दे दें।’ यह आज्ञा सुनकर पवनवेग भगवान कृष्ण द्वारा दिये गये आदेश को लेकर उत्तराखंड की ओर उड़ गया।
लोकगाथा:-
भक्तों ध्यान द्यावा लो धरती द्वाया निवास,
श्रवण द्वारिका मां लैगे रटघट की सभा।
तेरी सभा बैठीगे ऋषि, मुनि, ज्ञानी,
तेरी सभा बैठीगे भगवान लो भईया बलिराम।
तेरी सभा बैठीगे सुरज ब्रह्मी कौंळ,
तेरी सभा बैठीगे भगवान लो नौ बैणी ऑंछरी।
तेरी सभा बैठीगे भगवान लो राणी रूकमणी,
तेरी सभा बैठीगे भगवान लो नौ बैणी नागीण ।
रमोली पहुंच कर दूत पवनवेग ने देखा कि रमोली वास्तव में स्वर्ग से भी सुन्दर है। पवनवेग गंगू रमोला की राजसभा में पहुंच गया। द्वारपाल द्धारा गंगू को पवनवेग के आने की सूचना देने के उपरान्त राजा ने पवनवेग को आदर सहित राजसभा में बुलाया। सभागार मे राजा ने दूत से आने का कारण पूछा। दूत ने अपने आने का कारण बता कर पत्र राजा को सौंप दिया। महामन्त्री द्वारा पत्र पढ़े जाने के बाद द्वारिकाधीश का इच्छा जानने पर गंगू रमोला बहुत क्रोधित हो गया और क्रोध से कांॅपता हुआ बोला- ‘महामंत्री जी ! वह कृष्ण बहुत बड़ा छलिया है, आज वह ढ़ाई गज भूमि मांग रहा है, कल पूरा राज्य हड़प लेगा। मैं उस छद्मी को सुई की नोक के बराबर भी ज़मीन नहीं दूंगा।’ दूत से भी यही कहकर दूत पवनवेग को वापस कर दिया।
पवनवेग कांपता हुआ वेग से द्वारिका वापस आ गया। द्वारिका आकर उसने श्रीकृष्ण को गंगू रमोला द्वारा दिया गया संदेश और व्यवहार सुना दिया। पवनवेग की बात सुनकर भगवान ने गंगू रमोला के गर्व को चूर-चूर करने का निश्चय कर मन ही मन ब्राह्मण का वेष धारण कर रमोली जाने का निर्णय ले लिया। तब भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धारण कर रमोली गढ़ के लिए प्रस्थान किया। गंगू रमोला अपने राज दरबार में दोनों रानियों के साथ विराजमान था। भगवान श्रीकृष्ण उसके दरबार में पहुंचे और उन्होंने कहा – ‘हे गंगू रमोला मुझे ढाई गज भूमि अपनी कुटिया बनाने के लिए दे दो मुझे तुम्हारी रमोली बहुत अच्छी लगी।’-
तॉम की तमोली तॉम की तमोली। तॉम की तमोली तॉम की तमोली।
चित लायी मन तेरी बॉकी रमोली। चित लायी मन तेरी बॉकी रमोली
हे गंगू रमोला तेरी बॉकी रमोली। हे गंगू रमोला तेरी बॉकी रमोली।
हे गंगू रमोला मी जगा दियाल। हे गंगू रमोला मी जगा दियाल।
औदा जॉंदा बटोई मी जगा नि देंदू। औदा जॉंदा बटोई मी जगा नि देंदू।
नौछमी नारेण मी जगा नि देंदू। नौ छमी नारेण मी जगा नि देंदू ।
जब ब्राह्मण वेष भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- ‘महाराज में एक गरीब ब्राह्मण हूं मुझे अपनी कुटिया बनाने के लिए ढ़ाई गज जमीन चाहिए।’ यह सुनते ही गंगू बहुत क्रोधित हो गया और बोला कि- ‘हे नौछमी नारेण द्वारिका के कृष्ण ! मैं तुम्हे सुई की नोक के बराबर भी ज़मीन नहीं दूंगा। छद्म वेष धारण करके आज ढ़ाई गज जमीन मांगने आये हो, कल पूरी जमीन हतिया लोगे, मैं तेरा सिर काट के बद्रीनाथ चढ़ाऊंगा।’ यह कहकर गंगू रमोला भगवान कृष्ण के पीछे खुखरी ले कर दौड़ता है। भगवान कृष्ण तो इसी ताक में थे, वे शीघ्र ही भौंरे का रूप धारण करके उड़ गये और गंगू के अन्न-धन के भन्डार के उपर से घूमकर गाय ,भैंस, और बकरियों के झुंड की ओर घूमकर जंगल में उड़ गये।
फिर भगवान कृष्ण ने अपने वास्तविक रूप में आकर बांसुरी का स्वर छेड़ कर वातावरण में अमृत घोल दिया और द्वारिका की ओर प्रस्थान करने लगे, तो बांसुरी के स्वर से मंत्र मुग्ध होकर गंगू रमोला का पशु धन, गंगू की चैसिंगी भेड़ और बकरियां जिनके सींग में गंगू की लक्ष्मी का निवास था, वे सभी द्वारिकाधीश के साथ-साथ द्वारिका स्थानान्तरित हो गये। गंगू का पूरा महल रिक्त हो गया। इस तरह जब गंगू रमोला की धन लक्ष्मी का अपहरण हो गया तो उसके महल में दरिद्रता का निवास हो गया।
अब राजा रंक बन गया और दरिद्र की भांति कंद मूल खा कर जीवन यापन करने लगा। कुछ दिन बाद रानी इजुला और बिजुला राजा से सम्वाद करने लगी तो गंगू बोला – ‘रानी ! द्वारिका नरेश कृष्ण बड़ा कपटी है छद्म वेष धारण करके उसने मुझसे ढ़ाई गज ज़मीन मांगी, मेरे ना देने पर वह भौंरा बन के और बांसुरी के स्वर से मोह कर मेरा सब कुछ हरण करके ले गया’। रानियों ने कहा- ‘यदि आप ज़मीन दे देते तो ऐसा अनर्थ नहीं होता।’ गंगू सोचने लगा कि-‘जिस समय व्यक्ति पर विपत्ति आती है तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, मैं तो कृष्ण को मारने के लिए खुखरी ले के भी दौड़ा था। क्रोध ही इन्सान का सबसे बड़ा शत्रु है’।
आपसी विचार विमर्श करने के बाद उन्होंने भिक्षाटन का विचार बनाया कि -‘हमें द्वारिका जाकर द्वारिकाधीश से भिक्षा मांगनी चाहिए, तब ही हमारा उद्धार हो सकता है’। यह सोचकर कुछ दिनों बाद वे भिक्षाटन हेतु पहले तिब्बत और फिर द्वारिका प्रस्थान कर गये। द्वारिका पहुंचकर गंगू रमोला ने अपनी रानियों के साथ भगवान कृष्ण के द्वार पर भिक्षां देहि की आवाज लगायी। उनकी कारुणिक ध्वनि सुनकर महारानी रुकमणी ने द्वार खोला तो देखा कि एक भद्र पुरूष अपनी दो पत्नियों के साथ भीख मांग रहा है, तो रानी ने उनकी करुण दशा देखकर भोजन के लिए भी आमन्त्रित किया।
जैसे ही रानी ने उनको भोजन कराने के लिए थालियों में भोजन परोसा वैसे ही यह देखकर हतप्रभ रह गयी कि परोसे गये चावल कीड़े और दाल-शाख रक्त बन गये। तब रानी इजूला और बिजुला ने उन्हे भगवान कृष्ण के साथ किये गये दुव्र्यवहार की बात बताई और कहा कि वह उसी अपराध का दंड भुगत रहे हैं।
तब रूकमणी ने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना की सलाह देकर उनसे भगवान कृष्ण के चरण पकड़कर क्षमा मांगने को कहा। गंगू रमोला और दोनों रानियां श्रीकृष्ण के चरण वंदना करके क्षमा याचना करने लगे कि- ‘हे दीन बन्धु हमें हमारे दुव्र्यवहार के लिए क्षमा करें, हमारे द्वारा किये गये आप की उपेक्षा के कारण आज रमोली गढ़ सूना पड़ गया और हम भिखारी बन गये।’ तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हे क्षमा करते हुए उनका पूरा धन वैभव लौटाने के लिए दो मुट्ठी कौंणी (चावल का प्रकार) उनको दी, दो मुट्ठी कोणी बिजुला के स्पर्ष करते ही वे धन धान्य से पूर्ण हो गये और दो मुठ्ठी कौंणी ग्रहण करते ही रानी बिजुला गर्भवती हो गयी।
रमोली गढ़ पहॅुंचकर गंगू रमोला पूर्व की भांति धन धान्य सुख ऐश्वर्य से परिपूर्ण होकर जीवन यापन करने लगे और द्वारिका जैसी नगरी और श्रीकृष्ण का मंदिर बनाने की योजना करने लगे। रमोली मंदिरों से सजने लगा, अरूड़ी सेम, वरूणी सेम, तला सेम, तलबला सेम, सिद्ध गोरखनाथ आदि मंदिर पूजा पाठ से गूंजने लगे।
कुछ दिन बाद जब रानी बिजुला को अपने गर्भवती को होने का आभास हुआ तो वह शर्म से व्याकुल होने लगी। जब प्रसव काल नजदीक आने लगा तो वह डरती हुई बड़ी रानी इजुला से बोली कि-‘भगवान कृष्ण की दी हुई कौंणी ग्रहण करने के बाद गर्भ धारण करने से मुझे लज्जा का अनुभव हो रहा है’। जग हंॅसायी और कलंक लगने के डर से रानी बिजुमती अर्थात बिजुला कुंजणी पातल रहने लगी और राजा गंगू रमोली में ही रहते थे। बिजुला की स्थिति देखकर इजुला बहुत खुश हुई और उसने बिजुला को महाराज की नजरों से गिराने के लिए, बिजुला को बिना बतायें गंगू रमोला से बिजुला के गर्भ में पल रहे दस माह के शिशु के पलने की बात कह दी।
यह बाात सुनकर गंगू रमोला का विचलित होना स्वाभाविक था। वह कहने लगे- ‘ये कैसे हो सकता है इजुला ! बिजुला की गर्भावस्था ! मेरा बुढ़ापा ! कल सुबह मेरे पास बिजुला को कलेऊ लेकर भेजना’। तब इजुला खुशी-खुशी बिजुला के पास गई और उससे सुबह कलेऊ लेकर राजा के पास जाने की बात कही और उनकी मदद करने में असमर्थता दिखाई। रानी बिजुला डर के मारे कांपने लगी। आधी रात बीतने पर रानी बिजुला को प्रसव पीड़ा प्रारम्भ हुई, उसने यह बात किसी को न बताकर असहनीय दर्द को झेलते हुए दो अलौकिक प्रभाव वाले बालकों को जन्म दिया। अब बिजुला और भी भयभीत हो गयी और लोकलाज के डर से उसने आधी रात में ही दोनों बच्चों को तैड़ू (कन्द मूल फल) के गड्ढों में रखकर घास पत्तों से ढका और वापस आ गयी।
सुबह होते ही दोनों बालक भूख के कारण रोने लगे। उसी समय दैव योग से गुरू गौरखनाथ के चेले गुरू नीलपाल अपने चेलों के साथ भ्रमण पर थे। जब उन्होंने बच्चों के रोने की आवाज सुनी तो उन्होंने उन प्रतिभावान दोनों बच्चों को देखा, उनका दिव्य स्वरूप देखकर वे उन्हें अपने आश्रम में ले आये। उनका लालन-पालन करते हुए, यज्ञोपवीत संस्कार करते हुये सिदुवा और विदुवा नाम सेे उनका नामकरण किया। दोनों बालक सिदुवा और विदुवा गुरू नीलपाल के आश्रम में रहने लगे। धीरे-धीरे गुरूजी ने उन्हे सभी विद्यायें सिखायीं काक भुसुंडी, ह्यूलांस की पोथी, फ्यूलांस की विद्या, कांवर को झाड़ो, कामरूप की धनुली, चेड़ा को छारो-कण धुवां को आगो, महाकाली जाप, बोक्साड़ी विद्या, लिलाट को तोड़ा आदि विद्या दोनों भाईयों ने बचपन में ही सीख ली थी।
एक बार जब उत्तरायणी पर्व पर गुरू नीलपाल गंगा स्नान के लिए हरिद्धार गये तो गुरू जिन्हे सिद्ध अर्थात् सिद्धवा और वृद्धि के नाम से विदुवा पुकारते थे दोनों ही बालकों ने सलाह की और सोचा कि- ‘बारह वर्ष बीत गये हैं, अब हमें अपनी मां से मिलना चाहिए।’ उन्हे अपनी मां की याद आने लगी और उन्होने बारह विद्याओं की पोथी उठाकर रमोली की तरफ प्रस्थान किया। रमोली में वृद्ध राजा गंगू रमोला अपने राज सिंहासन पर बैठे थे, तभी गंगू के समीप जाकर दोनों बालकों ने उन्हे प्रणाम कर उन्हें पिता कहकर सम्बोधित किया। राजा आश्चर्य में थे और बोले-‘अरे रास्ते के बटोही तुम इतने चतुर बालक किस के हो ?’
दोनों बालकों ने उन्हें राजा का पुत्र बताया तब राजा ने कहा-‘मुझे निःसन्तान देखकर तुम्हें किसने मेरी गद्दी छीनने के वास्ते झूठ-मूठ का पुत्र बनाकर मेरे पास भेजकर साजिश रची है?’ दोनों बच्चों ने अपनी दोनों माताओं की ओर देखा तो बिजुला की छाती से दूध की धार फूट पड़ी। बिजुला ने दोनों को अपनी छाती से चिपका लिया और सहलाने लगी। बूढ़े गंगू ने आश्चर्य चकित होकर पुछा, तो रानी ने सारी कथा-व्यथा गंगू को सुना दी और कहा कि -‘महाराज ये आपके ही पुत्र हैं। भगवान द्वारिका नारायण द्वारा दिये गये मंत्रे हुये दो मुट्ठी कौंणी (चावल) को ग्रहण करके ही ये दोनों पुत्र प्रसाद के रूप में प्राप्त हुये हैं’। यह सुनकर राजा ने दोनों पुत्रों का प्रणाम स्वीकार किया और खुशी-खुशी अपने गले लगा लिया। दोनों बालकों का राजतिलक कराकर राज काज का भार सौंप कर गद्दी पर बैठा दिया।
धीरे-धीरे राजकुमार सिदुवा, विदुवा ने भी शक्ति अर्जित करके संसार में प्रसिद्धि पाई। लोकगाथा में पूरा इतिहास वर्णित है। तब से ही सेममुखेम मंदिर में भगवान द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण की पूजा होती है, मेले लगते हैं।

लेखिका का परिचय
नाम-डॉ. माधुरी बड़थ्वाल
डॉ. बड़थ्वाल आकाशवाणी नजीबाबाद, उत्तर प्रदेश से अवकाश प्राप्त वरिष्ठ संगीत कंपोजर हैं उन्होंने गढ़वाली लोकगीतों में रागरागनियों में रिसर्च भी किया है।
निवासी-दूरदर्शन कालोनी, कृष्णा विहार, नथुवावाला रायपुर देहरादून।

Bhanu Bangwal

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मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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