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April 13, 2025

पानी की शुद्धता को पानी में बह रहा है लाखों रुपया, देहरादून में 97 पेयजल के नमूनों में 92 नमूने पीने योग्य नहीं, स्पेक्स ने किया दावा

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में जहां जल संस्थान पानी की शुद्धता को लेकर ठेकेदारों के माध्यम से पानी की तरह पैसा बहा रहा है। वहीं, इसकी गुणवत्ता को लेकर फिर से सवाल खड़े कर दिए गए हैं।

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में जहां जल संस्थान पानी की शुद्धता को लेकर ठेकेदारों के माध्यम से पानी की तरह पैसा बहा रहा है। वहीं, इसकी गुणवत्ता को लेकर फिर से सवाल खड़े कर दिए गए हैं। सामाजिक संस्था स्पेक्स ने दावा किया है कि देहरादून में शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो रहा है। संस्था की ओर विभिन्न इलाकों में लिए गए पानी के 97 नमूनों में से 92 नमूने ऐसे हैं, जो पीने लायक नहीं हैं।
पिछले कई साल से चलाया जा रहा है अभियान
स्पैक्स की ओर से गत 32 वर्षो से माह मई से माह सितम्बर तक देहरादून में जन-जन को शुद्ध जल अभियान जल प्रहरियों के मदद से चलाया जाता रहा है। इस अभियान के तहत स्पैक्स व्याख्यान, प्रदर्शन, बच्चों के लिए कार्यशाला तथा देहरादून के विभिन्न क्षेत्रों में जल गुणवत्ता परीक्षण अभियान चला रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की हाल ही में जारी एक चेतावनी के अनुसार, रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) पानी के फिल्टर स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं हैं। आरओ फिल्टर न केवल बैक्टीरिया को मारता है, बल्कि सभी लवण और आवश्यक पोषक तत्व जैसे कैल्शियम और मैग्नीशियम को हटा देता है।

इस बार भी लिए गए नमूने
संस्था के सचिव डॉ. बृजमोहन शर्मा ने पत्रकार वार्ता में बताया कि गत वर्षो की भाँति इस बार भी मई- जून 2022 से देहरादून नगर निगम क्षेत्र के सत्तर वार्डो तथा उसमें सम्मिलित मलिन बस्तीयों में जल के नमूने एकत्रित कर परीक्षण प्रारम्भ किया गया। इस अभियान में जल प्रहरियों का सम्पूर्ण योगदान रहा है। इस वर्ष 70 वार्डो में 97 स्थानों से पेयजल के नमूने जल प्रहरियों की मदद से लिए गए। इनमें से पेयजल के 92 नमूने पीने लायक ही नहीं हैं।
कहीं ज्यादा मिली क्लोरीन की मात्रा, तो कहीं नहीं मिला क्लोरीन
उन्होने बताया कि कई वीआइपी व्यक्तियों के यहाँ से भी पेयजल के नमूने लिए गए। कई नमूनों में सबसे अधिक क्लोरीन पाया गया जो स्वास्थ्य के लिए अति घातक है। इसकी मात्रा पेयजल में गंतवय स्थान तक पहुंचने पर 0.2 mg/l होनी चाहिए, जबकी कई माननीयों के यहां कई गुना अवशेषित क्लोरीन पाया गया। इसमें सचिवालय में 1.0, जिलाधिकारी आवास 1.2, गणेश जोशी 1.0, खजानदास 1.0, विनय गोयल 0.4, धारा चौकी 0.8, जिला जज 0.6, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के आवास में 1.0, धर्मपुर विधायक विनोद चमोली के आवास में 0.4 mg/l मात्रा पायी गई। इसके कारण यह पानी तुरन्त पीने योग्य नहीं है।

50 स्थानों पर नहीं मिला क्लोरीन
कई इलाकों में क्लोरीन की मात्रा शून्य मिली। इनमें कृष्णनगर, प्रेमनगर, भूड गाँव पंडितवाडी, इन्दिरानगर, बसंत विहार, ईदगाह, तिलक रोड़, मित्रलोक कॉलोनी, विजय पार्क, राजीव कालोनी, कुम्हार मंडी, यमुना कॉलोनी, शिव कालोनी, सैय्यद मौहल्ला, बंगाली लाईब्रेरी रोड़, करनपुर, नई बस्ती, नव विहार कॉलोनी, सिरमौर मार्ग, राजेन्द्र नगर, गढ़ी कैंट रोड़, हाथी बड़कला, कारगी ग्रांट, अशोक विहार, रेस्ट कैम्प, न्यू रोड़, संजय कॉलोनी, जोहड़ी बांव, किशनपुर , भंडारी बाग, कालिन्दी इन्क्लेव, विवेक विहार, निरंजनपुर, ट्रांसपोर्ट नगर, इन्दिरा कॉलोनी, क्लेमनटाऊन, चन्द्रमणी, नया गांव सेवला खुर्द , शिमला बाईपास, बंजारा बस्ती, केवल विहार, कालीदास रोड़, सहस्त्रधारा रोड़ आदि है।
सिर्फ पांच स्थानों में मानकों के अनुरूप मिला क्लोरीन
पेयजल नमूनों में सिर्फ पांच स्थानों पर क्लोरीन की मात्रा मानको के अनुरूप पाई गई। इन स्थानों में
इन्द्रर रोड़, मद्रासी कॉलोनी, टपकेश्वर मार्ग, पूर्व पटेलनगर, तथा कैनाल रोड़ हैं। क्लोरीन का मानक 0.2 mg/l होता है।

41 स्थानों पर मानकों के ज्यादा मिला क्लोरीन
शहर भर में लिए गए नमूनों में 41 स्थानों में क्लोरीन की मात्रा मानकों से कई गुना अधिक पाई गई। इनमें जिलाधिकारी आवास पर 1.2, सचिवालय उत्तराखण्ड में 1.0, कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी के आवास में 1.0, विधायक के आवास में खजान दास 1.0, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के आवास पर 1.0 पाई गई। श्रीरामपुरम में 0.8, झण्डा मौहल्ला 0.8, विजय कॉलोनी 0.8, रेसकोर्स 0.8, राजपुर 0.8, सुभाषरोड़ 0.8, माजरा 0.8, धारा चौकी 0.8 mg/l पाई गई। न्यू पटेलनगर, यमुना कॉलोनी, पार्क रोड़, सेवक आश्रम रोड़, तिलक रोड़, न्यू मार्केट, त्यागी रोड़, कैनाल रोड़, केशव रोड़, जिलाअध्यक्ष, लक्ष्मी रोड़ आदि में 0.6 Mg/l पाई गई।
इन स्थानों पर पाई गई क्लोरीन की मात्रा 0.4 Mg/l 
गोविन्दगढ़, चुक्खुवाला, आकाशदीप कॉलोनी, नैशविला रोड़, टैगोरविला, कौलागढ़, अजबपुर कलां, चन्दर नगर, आराघर, अजबपुर खुर्द, जाखन, लक्खीबाग, इन्द्रेश नगर, कांवली गांव, विनय गोयल, विनोद चमोली, आदि।

सबसे अधिक टोटकल कालीफॉर्म वाले स्थान
बंजारा बस्ती-42, केवल विहार-24, सहस्त्रधारा रोड़-52, भंडारीबाग-24, संजय कॉलोनी-22, पटेलनगर-24, चमनपुरी-20, MNP/100 ml पाया गया। पंडितवाडी-18, प्रेमनगर-12, बसंत विहार-12, प्रकाश नगर-14, शिव कॉलोनी-14, राजीव कॉलोनी-14, विजय पार्क-18, अशोक विहार-16, कारगी ग्रांट -14, कालिंदी एन्क्लेव-18, ट्रांसपोर्ट नगर-22, शिमला बाईपास-14, इन्दिरा कॉलोनी-12, निरंजनपुर-14, जोहडी गांव-12, किशनपुर-12, हाथी बड़कला व सिरमौर मार्ग-12 MNP/100 ml पाया तथा नर्मदा एन्क्लेव व नव विहार में 10 पाया गया। टोटल कालीफॉर्म का मानक 10 MNP/L होता है।
इन स्थानों पर मिला फीकल कालीफॉर्म
बंजारा बस्ती-14, केवल विहार-12, सेवला खुर्द व सहस्त्रधारा-10, ट्रांसपोर्ट नगर, गढ़ी कैंट, बंगाली मौहल्ला, चमनपुर में-8 MNP/100 ml पाया गया। जबकि पंडितवाडी, ईदगाह, प्रकाष नगर, अषोक विहार, निरंजनपुर में-6 तथा बसंत विहार, विजय पार्क, सिरमौर मार्ग, संजय कॉलोनी, किशनपुर, कालिंदी एन्कलेव, कालीदास रोड़ में- 4 MNP/100ml पाया गया। प्रेमनगर-2, शिव कॉलोनी-4, राजीव कॉलोनी-4, हाथीबड़कला-2, कारगी ग्रांट-2, जोहड़ी गांव-2, भंडारीबाग-12, इन्दिराकॉलोनी-2, सीमाद्वार-8, ,MNP/100 ml पाया गया। TDS की मात्रा 251 MG/100ml से 470 mg/l तक पायी गई।

पानी में कठोरता का स्वास्थ्य पर असर
1. बालों का समय से पहले सफेद होना और त्वचा पर झुर्रियां पड़ना।
2. किडनी स्टोन के मामले बढ़ते हैं।
3. लीवर, किडनी, आंखों, हड्डियों के जोड़ों और पाचन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
4. इस कठोरता के कारण गीजर, पानी की टंकियां और अन्य पानी की पाइपलाइनें चोक हो जाती हैं।
5. गीजर में पानी गर्म करने में अधिक बिजली की खपत होती है, जहां अक्सर कठोर पानी का उपयोग किया जाता है।
6. घरेलू एलपीजी की खपत भी कठोर पानी से खाना पकाने में अधिक होती है।
पीने के पानी में फीकलकोलिफोम उपस्थिति का प्रभाव
1. पेट में कीड़े
2. पेट के अन्य रोग
3. कुछ मामलों में दस्त, पीलिया, उल्टी और यहां तक कि हेपेटाइटिस भी
4. क्लोरीन की उच्च मात्रा निम्न प्रकार से स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैरू
5. बालों का समय से पहले सफेद होना, त्वचा में सूखापन, अल्सर और पेट की अन्य बीमारियां और यहां तक कि कैंसर के मामले भी।

नतीजा ढाक के तीन पात
जल संस्थान के उत्तरी जोन में दो फिल्टरेशन प्लांट शहनशाही आश्रम और पुरकुल गांव में स्थित हैं। इन दोनों प्लांट में पानी की गुणवत्ता पर हर माह 23 लाख से ज्यादा की राशि पानी की तरह बहाई जा रही है। वहीं, वाटर वर्कस में भी जल शोधन प्लांट है। नतीजा वही ढाक के तीन पात है।
नहीं है पानी की गुणवत्ता पर भरोसा
सवाल ये है कि पानी की गुणवत्ता पर न तो सरकार को ही विश्वास है और न ही किसी सरकारी मशीनरी पर। इसे एक आसान से उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि उत्तराखंड में जल संस्थान शुद्ध पानी की आपूर्ति कर रहा है तो फिर सीएम आवास, राजभवन, मुख्य सचिव आवास, सचिवालय, विधानसभा सहित सारे मंत्रियों और वीआइपी के घरों में वाटर प्यूरीफाई का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है। अब इस उदाहरण से ही साफ है कि किसी को भी शुद्ध पानी पर भरोसा नहीं है। यानी सरकार आमजन को साफ पानी की आपूर्ति नहीं कर पा रही है।
इन स्रोत से होती है सप्लाई
यहां ये बताना जरूरी है कि देहरादून के उत्तरी जोन में पानी की आपूर्ति ग्रेविटी के आधार पर होती है। यानी की पानी की सप्लाई में बिजली पंप की जरूरत तक नहीं पड़ती है। सिर्फ बीजापुर कैनाल से वाटरवर्क्स तक पानी पहुंचाने के लिए पंप लगाए गए हैं। बाकी बादल परियोजना, ग्लोगी परियोजना, मासीपाल सहित अन्य स्रोत से पानी पहुंचाने के लिए ग्रेविटी के माध्यम है। इनमें उत्तरी जोन में ग्लोगी परियोजना से पानी की आपूर्ति के लिए पुरकुल गांव में फिल्टरेशन प्लांट है। वहीं, दूसरा फिल्टरेशन प्लांट शहनशाही आश्रम में है। इसमें मासीफाल स्रोत से पानी की सप्लाई की जाती है। इन दोनों प्लांट से एक बड़े क्षेत्र की आबादी को पानी की आपूर्ति होती है। इसके अलावा शहर में नलकूपों से भी छोटे छोटे क्षेत्र में पानी की आपूर्ति होती है। बरसात के दिनों में तो अक्सर मिट्टी मिला पानी ही लोगों को सप्लाई कर दिया जाता है।

इस तरह बहाया जा रहा है पैसा
सूत्रों के मुताबिक पानी की गुणवत्ता के लिएशहनशाही आश्रम और पुरकुल गांव के फिल्टरेशन प्लांट की जिम्मेदारी निजी ठेकेदारों के हाथ सौंपी गई है। पुरकुल गांव में करीब 15 लाख और शहनशाही आश्रम में करीब साढ़े आठ लाख रुपये हर माह पानी के शुद्धिकरण के लिए खर्च किए जा रहे हैं। इसमें क्लोरीनीकरण से लेकर मजदूरों का वेतन ठेकेदारों के जिम्मे है। इसके बावजूद पानी की कठोरता पर जल संस्थान ने आज तक कोई काम नहीं किया है। पानी इतना हार्ड है कि यदि इसे आरओ (वाटर प्यूरीफाई) के बगैर ही सीधे इस्तेमाल में लाया गया तो चाय तक नहीं बन पाती। यही नहीं, घंटों तक कूकर में चढ़ाने के बाद भी दाल नहीं गलती है। हल्की बारिश हो तो मिट्टीयुक्त पानी की आपूर्ति होने लगती है। सूत्र तो ये बताते हैं कि पानी की शुद्धिकरण के नाम पर हर प्लांट में पांच से सात लेबर लगी है। वहीं, मात्र कुछ बोरी क्लोरीन और फिटकरी पर ही हर माह एक प्लांट में 15 लाख और दूसरे प्लांट में साढ़े आठ लाख रुपये का खर्च दिखाया जा रहा है। इन दिनों बारिश होने पर ऐसे प्लांट के पानी में मिट्टी भी साथ आती है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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