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April 17, 2025

मई दिवस: राजधानी देहरादून में निकाली रैली, शहीदों की दी श्रद्धांजलि, जानिए क्यों मनाते हैं ये दिन

मई दिवस के मौके पर आज देशभर में श्रमिक संगठनों ने जुलूस निकालकर इस दिन के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में विभिन्न श्रमिक संगठनों से जुड़े लोगों ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। साथ ही गांधी पार्क से हर साल की तरह शहर में रैली निकली। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड संयुक्त मई दिवस समारोह समिति की ओर से आयोजित मुख्य कार्यक्रम के तहत गांधीपार्क से रैली निकाली गई रैली घंटाघर, पलटन बाजार, धामा वाला, राजा रोड, गांधी रोड, दर्शन लाल चौक से राजपुर रोड की ओर से होते हुए पुनः गांधी पार्क में पहुंची, जहां रैली का समापन किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस मौके पर जनसभा में सीटू के जिला महामंत्री लेखराज ने कहा कि 1886 में शिकागो शहर में पूंजीवादी सरकार की पुलिस द्वारा काम के घंटे व अन्य मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे मजदूरों पर गोलियां चलाई गई। इससे कई मजदूर शहीद हो गए। बडी संख्या में घायल हो गए। श्रमिक लीडरों को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया। ताकि आंदोलन को दबाया जा सके। इसके बाद भी दुनिया मे मजदूरों का संघर्ष जारी रहा। काम के घंटे आठ किये जाने सहित कई श्रम कानूनों को बनाया गया। इससे मजदूरों को कुछ लाभ दिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि अब वही परिस्थिति पैदा कर दी गई, जिसके लिए आंदोलन हुआ था। मोदी सरकार ने काम के घंटे 12 करने के साथ ही 44 श्रम कानूनों में से 29 श्रम कानूनों को समाप्त कर 4 श्रम संहितायें बना दी हैं। ये सब पूर्ण रूप से मालिकों, पुंजीपतियो के हितों में बनाई गई है। इसके लागू होने से मजदूर गुलाम हो जाएगा। इसके लिए संघर्ष का प्रतीक मई दिवस हमेशा प्रेरणा स्रोत रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

इस अवसर सीटू के प्रांतीय अध्यक्ष राजेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि मई दिवस मजदूरों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूर अपने जीवन स्तर को उठाने के लिए संघर्ष करता है। वही पूंजीपति अपनी अकूत सम्पत्ति को मजदूरों का शोषण करके इकट्ठा करेगा। उन्होंने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा मजदूरों पर हमले किये गए। इससे देश मे बेतहाशा बेरोजगारी उतपन्न हो गई है। मजदूरों को लूटने का काम किया है। इसे मजदूर कभी स्वीकार नही करेगा। मजदूरों ने मन बना लिया कि वे मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एटक के प्रांतीय महामन्त्री अशोक शर्मा ने कहा कि मोदी सरकार की नीतियों के कारण देश मे जहाँ एक तरफ मजदूरों का शोषण बदस्तूर जारी है, वहीं सार्वजनिक संस्थानों को बेचने का काम किया जा रहा है। रेल, भेल, बैंक, बीमा, कोल इंडिया, एयर इंडिया, हवाई अड्डे, बंदरगाह, बिजली तक का निजीकरण कर दिया गया है। इससे आम जनता पर इसका बोझ पड़ गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस अवसर पर एटक के उपाध्यक्ष समर भंडारी, अन्य संगठनों से ‌किशन गुनियाल, सुरेन्द्र सजवाण, पूर्व जिलापंचायत अध्यक्ष शिवप्रसाद देवली, अनंत आकाश, एसएस रजवार, जगदीश छिमवाल, हिमांशु चौहान, राजेन्द्र पुरोहित, कृष्ण गुनियाल, लक्ष्मी नारायण, आशा यूनियन की अध्यक्ष शिवा दुबे, सुनीता चौहान, भोजन माता यूनियन की प्रांतीय महामंत्री मोनिका, नितिन मलैठा, हिमांशु चौहान, रविन्द्र नौडियाल,भगवन्त पयाल, दिनेश नौटियाल, ताजवर रावत, सुधीर कुमार, शैलेन्द्र, चित्रा गुप्ता, बुद्धि सिंह चौहान, रामसिंह भण्डारी, जगदीश प्रसाद, विनय मित्तल, एसएस नेगी, मंगल सिंह‌, अनिल उनियाल, अशोक शर्मा, लक्ष्मी नारायण, मंगल बिष्ट, हरिश कुमार, सुनिता चौहान, सुरेंन्द्र बिष्ट, दयाकृष्ण पाठक, देवराज, शंकर, मोहन सिंह गोंसाई, धर्मानन्द भट्ट, देवेंद्र शर्मा, दिनेश उनियाल, नरेशकुमार, देवसिंह, छविलाल, चम्पा, सुनिता, बबिता,आरती, नीरज यादव, सुरेंद्र राणा आदि जुलूस में शामिल रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

इसलिए मनाया जाता है मई दिवस
प्रत्येक वर्ष दुनिया भर के कई हिस्सों में 1 मई को मई दिवस अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस जनसाधारण को नए समाज के निर्माण में श्रमिकों के योगदान और ऐतिहासिक श्रम आंदोलन का स्मरण कराता है। 1 मई, 1886 को शिकागो में हड़ताल का रूप सबसे आक्रामक था। शिकागो उस समय जुझारू वामपंथी मज़दूर आंदोलनों का केंद्र बन गया था। एक मई को शिकागो में मज़दूरों का एक विशाल सैलाब उमड़ा और संगठित मज़दूर आंदोलन के आह्वान पर शहर के सारे औज़ार बंद कर दिये गए और मशीनें रुक गईं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

शिकागो प्रशासन एवं मालिक चुप नहीं बैठे और मज़दूरों को गिरफ्तारी शुरू हो गई। जिसके पश्चात् पुलिस और मज़दूरों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई, जिसमें 4 नागरिकों और 7 पुलिस अधिकारियों की मौत हो गई। कई आंदोलनकारी श्रमिकों के अधिकारों के उल्लंघन का विरोध कर रहे थे। काम के घंटे कम करने और अधिक मज़दूरी की मांग कर रहे थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

19वीं सदी का दूसरा और तीसरा दशक काम के घंटे कम करने के लिये हड़तालों से भरा हुआ है। इसी दौर में कई औद्योगिक केंद्रों ने तो एक दिन में काम के घंटे 10 करने की मांग भी निश्चित कर दी थी। इससे ‘मई दिवस’ का जन्म हुआ। अमेरिका में वर्ष 1884 में काम के घंटे आठ घंटे करने को लेकर आंदोलन से ही शुरू हुआ था। उन्हें गिरफ्तार किया गया और आजीवन कारावास अथवा मौत की सजा दी गई। अब इस दिन को कर्मचारी, श्रमिक अपने अधिकार की लड़ाई के लिए मनाते हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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