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August 4, 2025

मंगसीर की बग्वाल (देवलांग पर्व) देवताओं को प्रसन्न करने का एक प्रयास, चार दिसंबर को मनेगा ये पर्वः आशिता डोभाल

उत्तराखंड के साथ ही सीमावर्ती राज्य हिमाचल प्रदेश में पौराणिक सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप त्योहारों व उत्सवों को बड़े स्तर पर मनाने के रीति-रिवाज पौराणिक काल से चले आ रहे हैं।

उत्तराखंड के साथ ही सीमावर्ती राज्य हिमाचल प्रदेश में पौराणिक सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप त्योहारों व उत्सवों को बड़े स्तर पर मनाने के रीति-रिवाज पौराणिक काल से चले आ रहे हैं। यही कारण है कि यहां के लोगों द्वारा त्योहारों को अनूठे रूप में मनाए जाने से प्रत्येक त्योहार अपनी अलग ही विशिष्टता प्रदान करते हैं। ऐसे ही विशिष्टता प्रदान करने वाला त्यौहार है देवलांग। यह त्योहार दीपावली के ठीक एक महीने बाद मंगसीर की बग्वाल के रूप में मनाया जाता है। उत्तराखंड के सीमांत जनपद उत्तरकाशी के नौगांव, पुरोहाल, मोरी, टिहरी जिले के थत्युड़, देहरादून के चकराता, कालसी, हिमालचल के कुल्लू, शिमला, सिरमौर में दीपावली के ठीक एक माह हबाद मंगसीर बग्वाल का आयोजन किया जाता है। देवलांग का यह मेला प्रत्येक साल मंगसीर में अमावस्या की रात को मनाया जाता है। इस बार यह पर्व चार दिसंबर की रात को मनाया जाएगा।

अमावस की रात को मनाए जाने वाले देवलांग के इस पर्व को उत्तरकाशी की रवाईं घाटी में प्रमुख रूप से बनाल पट्टी के गैर गांव में मनाया जाता है। इसके साथ ही ठकराल पट्टी के गंगटाड़ी तथा वजरी पट्टी के कुथनौर गांव में भी मनाया जाता है। इस त्योहार की ग्रामीण एक माह से ही तैयारी शुरू कर देते हैं। उनमें इसे लेकर खासा उत्साह रहता है।
मंगशीर की बग्वाल यानी देवलांग को लेकर कहते हैं कि भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर पहाड़ की कन्दराओं में एक माह बाद मिली थी। दूसरा पहलु कि बीर माधो सिंह जब युद्व कर लौटे थे। उसकी भी सूचना देरी से मिली थी। यमुनाघाटी में राजा रघुनाथ को ईष्ट मानने वाले श्रद्वालुगण उत्साह के तौर पर देवलांग को प्राचीन काल से मनाते आ रहे है। देवलांग पर्व के लिए ग्रामीण जंगल से देवदार का विशालकाय पेड़ लाते है और 65 गांव के ग्रामीण शाटी और पानसाई तोक में विभाजित होकर हरे पेड़ पर सुखी लकडियों के टुकड़े लगाने को बाद उसे डण्डों के बल पर खड़ा करते है और उसे आग के हवाले करते हुए अंधेरे से उजाले की ओर मनाये जाने वाले पर्व देवलांग को पूजा अर्चना शंखनाद और ढोल नगाड़ो के बीच नृत्य करते हुए धुमधाम से मनाते है।
उत्तरकाशी जिले के बड़कोट तहसील मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बनाल पट्टी के गैर गांव में देवलांग का पर्व मनाया जाता है। देवलांग के इस पर्व की तैयारी बनाल पट्टी क्षेत्र में साठी और पानशाही तोक के ग्रामीण एक महीने पहले ही शुरू कर देते हैं। तैयारियों के सभी कार्य प्राचीन काल से चली आ रही सभ्यता के अनुरूप बंटे हुए हैं। यहां देवलांग के लिए पहले ही छिलके तैयार किए जाते हैं, जो निश्चित गांव के लोग तैयार करते हैं। अमावस्या के दिन गांव के लोग व्रत रखकर बड़ी श्रद्धा के साथ देवदार के लंबे साबुत पेड़ को मंदिर प्रांगण में लाते हैं तथा विशेष पूजा-अर्चना के साथ पेड़ के बाहर छिलके बांधकर उसे तैयार करते हैं।

रात्रि में गांव-गांव से ग्रामीण ढोल-नगाड़ों के साथ अलग-अलग समूह में नाच गाकर गैर गांव पहुंचते हैं। जहां पूरी रात ढोल नगाड़ों की थाप पर नाच-गानों के साथ बिताई जाती है और रात को देवदार के इस पेड़ पर आग लगा कर इसे खड़ा करते हैं। यह पेड़ सुबह होने तक जलता रहता है। बनाल पट्टी के गांव दो तोक में बंटे हैं। एक साठी और दूसरा पानशाही। साठी और पांसाई तोक के लोग इस पेड़ को खड़ा करते हैं। जिसे देवलांग कहते हैं। देवलांग अर्थात देवता के लिए लाया गया देवदार का लंबा वृक्ष। देवलांग नीचे से ऊपर की ओर जलती चली जाती है। जिसे देख कर आभास होता है कि एक सुंदर सा दीपस्तंभ जल रहा हो। यह दृश्य देखने लायक होता है, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं।
देवलांग देवताओं को प्रसन्न करने का एक प्रयास है तथा इसे प्रभु की ज्योति के रूप में अज्ञान व अंधकार को हरने वाले उजाले के रूप में भी देखा जाता है। गैर गांव में लगने वाले देवलांग का यह पर्व अनादिकाल से चलता आ रहा है तथा यह मंगसीर के महीने की अमावस की रात को ही मनाया जाता है। यह त्योहार एक प्रकार से सूक्ष्म मृत्यु का स्वरूप है और दिन जीवित हो जाने का समय है। ह्यअसतो मां ज्योतिर्गमयह्ण अर्थात हे प्रभु हमें अंधेरी से उजाले की ओर ले चल। अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने वाला यह पर्व देवलांग है।

लेखिका का परिचय
आशिता डोभाल
सामाजिक कार्यकत्री
ग्राम और पोस्ट कोटियालगांव नौगांव उत्तरकाशी।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “मंगसीर की बग्वाल (देवलांग पर्व) देवताओं को प्रसन्न करने का एक प्रयास, चार दिसंबर को मनेगा ये पर्वः आशिता डोभाल

  1. बहुत ही सुंदर और जानकारी से भरपूर लेख है।देवलांग सच मे एक अदभुत पर्व है जिसे इतने शानदार तरीके सेबारीकी से समझाया गया हैं।बहुत बहुत बधाई इस खूबसूरत लेख के लिए

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