मकर संक्रांतिः कौन असली और कौन नकली सनातनी, राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक आधार पर भी बंटी खिचड़ी, पढ़िए एक व्यंग्य
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भारत में वैसे देखा जाए तो साल भर कहीं ना कहीं चुनाव जरूर होते हैं। कभी किसी राज्य में उप चुनाव, तो कभी किसी राज्य में विधानसभा चुनाव। कभी पंचायतों के चुनाव तो कभी स्थानीय निकायों के चुनाव। इन दिनों दिल्ली में विधानसभा चुनाव में विभिन्न दलों ने जोर आजमाइश शुरू कर दी है। वहीं, उत्तराखंड में स्थानीय निकाय चुनाव का प्रचार भी जोर पकड़ चुका है। अब आप कहोगे कि इस लेख की हैडिंग तो धर्म, सनातन, मकर संक्रांति, खिचड़ी को फोकस कर रही है, लेकिन हम चुनावों की बात कर रहे हैं। ये तो पाठकों के साथ अन्याय है। ऐसा नहीं है, अब धार्मिक आयोजन भी राजनीतिक दलों के हिसाब से आयोजित होने लगे हैं। फिर भी सच यै है कि सारी खिचड़ी का रंग एक जैसा ही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
असल मुद्दे दरकिनार, कौन कितना बड़ा सनातनी इसमें मची होड़
चुनावों में असल राजनीतिक मुद्दे दरकिनार होने लगे हैं। गरीबी, महंगाई, देश में बढ़ता कर्ज, बेरोजगार, सबको फ्री स्वास्थ्य सेवा, फ्री शिक्षा सहित तमाम मुद्दे अब हाशिये पर जा रहे हैं। राजनीतिक दलों का एक ही काम ये रह गया है कि कौन कितना भ्रष्ट है, इसे साबित करना। साथ ही खुद को विशेष जाति, धर्म का सबसे बड़ा शुभचिंतक साबित करना। इन दिनों तो राजनीतिक दलों में भी खुद को असली सनातनी और दूसरे को सनातन का विरोधी घोषित करने की होड मच गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सत्ताधारी अपने पिछले काम नहीं गिनाते हैं और सत्ता हासिल करने का प्रयास करने वाले अपनी प्राथमिकताएं गिनाने की बजाय खुद को असली सनातनी बताने का प्रयास कर रहे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी और आम आदमी पार्टी में तो इसकी प्रतिस्पर्धा चल रही है। दोनों के साथ ही अन्य दल के लोग भी अपनी अपनी खिचड़ी पकाने में लगे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मकर संक्रांति में खिचड़ी खाने की परंपरा
आज मकर संक्रांति का त्यौहार है। यह त्योगार हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे उत्तरायण भी कहा जाता है। यह त्योहार पूरे भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। वहीं, उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी खाने की परंपरा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसलिए खाई जाती है खिचड़ी
मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने और खाने की पंरपरा का उल्लेख कई प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, खिचड़ी भगवान सूर्य और शनि देव से जुड़ी है। मान्यता है कि मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने और खाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खिचड़ी खाने का वैज्ञानिक आधार
दाल, चावल और हरी सब्जियों को मिलाकर खिचड़ी बनाई जाती है। इसलिए खिचड़ी को पौष्टिक आहार माना जाता है। खिचड़ी खाने से सर्दियों में एनर्जी मिलती है। साथ ही शरीर गर्म रहता है। मकर संक्रांति से सर्दी कम होने लगती है और भारत के कई राज्यों में धीरे धीरे गर्मी का आगमन होता है। बदलते मौसम में पेट संबंधी बीमारी के साथ ही शरीर में अन्य विकार भी पैदा होने लगते हैं। ऐसे में खिचड़ी एक ऐसा व्यंजन है, जो दाल, चावल और सब्जियों से तैयार किया जाता है। इसे न केवल स्वादिष्ट, बल्कि सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद माना जाता है। यह हल्का और पौष्टिक भोजन है, जिसे आसानी से पचाया जा सकता है। वहीं, वैज्ञानिक रूप से ठंड के मौसम में हल्का और पौष्टिक भोजन शरीर को ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खिचड़ी खाने का धार्मिक आधार
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खिचड़ी के चावल, काली दाल, हल्दी और हरी सब्जियों का विशेष महत्व है। मान्यता है कि खिचड़ी के चावल का चंद्रमा और शुक्र की शांति से महत्व है। काली दाल से शनि राहू और केतु का महत्व बताया जाता है। खिचड़ी में पड़ने वाली हल्दी का संबंध गुरु बृहस्पति से है। इसमें पड़ने वाली हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं। वहीं खिचड़ी के पक जाने पर उससे जो गर्माहट निकलती है, उसका संबध भगवान सूर्य और ग्रहों के सेनापति मंगल से बताया जाता है। इस तरह सभी नवग्रहों से खिचड़ी का संबंध है। इसलिए इस दिन खिचड़ी के दान का बहुत महत्व माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से इसे शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये है मान्यता
मान्यता है कि ताजा-ताजा धान की कटाई होने के बाद चावल को पकाकर उसे खिचड़ी के रूप में सबसे पहले सूर्य देवता को भोग लगाया जाता है। इससे सूर्य देवता आशीर्वाद देते हैं। इस दिन भगवान सूर्य के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा अर्चना की जाती है। मकर संक्रांति पर सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें गुड, गुलाब की पत्तियां डालकर अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन गुड़, तिल और खिचड़ी का सेवन करना भी शुभ माना जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब खिचड़ी भी राजनीति का हो रही शिकार
पहले खिचड़ी लोग मकर संक्रांति के दिन अपने घरों में बनाते थे और खाते थे। अब समय बदला और इसे भी वोट बैंक की तरह देखा जाने लगा है। हिंदूवादी संगठन, बीजेपी, सामाजिक संगठन हों या फिर कांग्रेस या अन्य राजनीतिक दल। इस त्योहार का प्रदर्शन पिछले 15 साल से कुछ ज्यादा ही होने लगा है। सब खुद को हिंदुओं और सनातनियों का असली हितैषी साबित करने के लिए हर तरह के प्रयास करते हैं। दिल्ली में बीजेपी और आम आदमी पार्टी में इसके लिए होड़ सी मची रहती है। स्थिति ये है कि पहले धार्मिक आयोजन हर व्यक्ति के लिए एक समान होते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी भी राजनीति की शिकार हुई तो इसमें भी बंटवारा हो गया। मसलन कांग्रेस का खिचड़ी का स्टाल, बीजेपी की खिचड़ी, या फिर दूसरे दलों की खिचड़ी। लोग बैनर देखकर ही खिचड़ी खाने पहुंचते हैं या फिर किसी भी स्टाल पर। इसका हमने रिसर्च नहीं किया है। इसलिए हम ऐसे मामले में कोई दावा नहीं कर सकते हैं कि किस स्टाल में ज्यादा लोग पहुंचते हैं। फिर भी अब त्योहारों में राजनीति लाकर एक दूसरे को नकली और खुद को असली कहने की परंपरा शुरू हो चुकी है। वैसे कुछ खिचढ़ियां सब अपनी अपनी पकाते हैं। फिर भी किसकी कौन सी खिचड़ी है, खिचड़ी देखकर फर्क नहीं बताया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हमारा संदेश
हमारा संदेश ये ही है कि त्योहार जरूर मनाओ, लेकिन उसे राजनीतिक दलों के हिसाब से ना बाटों। किसी के घर आन पड़ी है (यानि परिवार में मृत्यु की स्थिति) तो हिंदुओं में ऐसे लोग त्योहार नहीं मनाते हैं। खासकर उत्तराखंड में। ऐसे लोगों के घर आस पड़ोस के लोग ही त्योहार में बनाए गए पकवान भिजवाते रहे हैं। अब यह परंपरा तो लगभग समाप्त होने लगी है और खिचड़ी की परिभाषा भी बदलने लगी है। ये खिचड़ी केजरीवाल की है। ये खिचड़ी बीजेपी की है। ये खिचड़ी कांग्रेस के नेताओं की है। ये खिचड़ी हिंदू धर्म के ठेकेदारों की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अरे भाई खिचड़ी खिचड़ी है। जैसे इंसान का खून होता है। उसमें कोई फर्क नहीं होता। खून का रंग लाल ही होता है। जिस तरह खून देखकर कोई ये नहीं पहचान सकता है कि ये खून किस जाति, धर्म के व्यक्ति का है। इसी तरह खिचड़ी में भी अंतर नहीं बताया जा सकता है कि इसे किसने बनाया है। इसके गुण नहीं बदल सकते हैं। चाहे वे कोई भी दल और संगठन पकाए और लोगों को परोसे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खिचड़ी खाओ, लेकिन देश के असल मुद्दों से ध्यान ना भटकाओ। जो जनता को चाहिए उस पर सवाल जरूर करो। देश में कितने लोगों को रोजगार के लिए प्रयास हो रहे हैं। महंगाई के लिए क्या प्रयास हो रहे हैं। 81 करोड़ लोग मुफ्त का राशन लेने की बजाय कब आत्मनिर्भर बनेंगे। सरकार की ओर से आवास बांटने की बजाय कब निचले स्तर के लोग खुद को इतना सक्षम करेंगे कि वे खुद अपने बूते आवास बनाएंगे। भ्रष्टाचार कब देश से खत्म होगा। कब भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं को उनकी औकात दिखाने के लिए लोग प्रयास करेंगे। कब देश में शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ ही अन्य समस्याओं का समाधान होगा। हो सकता है आप सवाल ना पूछो, लेकिन ये सत्य है कि आज नहीं तो कल, इन सवालों की गूंज जरूर गूंजेगी। धन्यवाद- मैं भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।