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September 26, 2024

कृषि पारिस्थितिकी की पहल से आजीविका संवर्धन और खाद्य संप्रभुता

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समूचा हिमालय स्वयं में कृषि पारिस्थितिकी का दर्पण है। इस विराट भोजन सभ्यता को जैव विविधता के संरक्षण से ही सफल बनाया जा सकता है। यह सफलता किसानों की आजीविका में सतत वृद्धि के साथ ही भोजन संप्रभुता की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगी। यह कहना था जैवविविधता प्राधिकरण (एनबीए) के पूर्व अध्यक्ष और डब्ल्यूआईआई के निदेशक डॉ. वीबी माथुर का। वह आज गुरुवार 26 सितंबर को देहरादून में सहारनपुर रोड स्थित सब्जी मंडी के समीप होटल पर्ल ग्रैंड में कृषि पारिस्थितिकी पर उत्तराखंड के हितधारकों की बैठक में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस अवसर पर उपस्थित वैज्ञानिकों, प्रशासकों, किसानों और स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने अपने बहुमूल्य अनुभव और विचार साझा किये। डॉ. वी.बी. माथुर ने कहा कि आज असुरक्षा अपने विकराल रूप में सामने आ रही है। इस समस्या का निदान कृषि जैव विविधता को बचाने में है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि हिमालयी कृषि उत्पादों की मांग तो बढ़ रही है, लेकिन उसी अनुपात में यहाँ खेती की जीवटता गिर रही है। इस विडम्बना से निपटने के लिए किसान, वैज्ञानिक, अधिकारी और नीति निर्माताओं को आत्मीयता के साथ आगे आना होगा। साथ ही फसलोत्पादन की लागत को कम करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें नेपाल तथा भूटान जैसे छोटे देशों से से हिमालयी पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के संरक्षण को सीखने की आवश्यकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एनबीपीजीआर आरएस भोवाली के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. ईश्वरी एस. बिष्ट ने उत्तराखंड में खाद्य प्रणालियों का कृषि-पारिस्थितिक परिवर्तन, प्रमुख चुनौतियाँ और अवसर पर बात रखी। उन्होंने कहा कि किसान फसलों के उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण और उपभोग तक सबसे अच्छा ज्ञान रखता है, लेकिन कृषि परिस्थितिकी की इस आवश्यक प्रक्रिया में कई बाधाओं के कारण उत्तराखंड के पहाड़ी आँचल की खेती बड़ी चुनौतियों के गुजर रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने उत्तराखंड मध्य हिमालय के पौड़ी, अल्मोड़ा चम्पावत और बागेश्वर के बंजर होते परिदृश्य पर ध्यान आकर्षण किया। साथ ही कृषि नीति को व्यावहारिक बनाकर प्रयोगशाला से खेत और उत्पादन से बाजार की दूरी को कम करने की आवश्यकता पर बल दिया। अलाइंस ऑफ़ बायोडायवर्सिटी इंटरनेशनल के लिए भारतीय प्रतिनिधि डॉ जेसी राणा ने हिमालयन एग्रो-इकोलॉजिकल इनिशिएटिव (HAI) के बारे में विस्तार से जानकारी दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने बताया कि हिमालयन एग्रोइकोलॉजी इनिशिएटिव (HAI) एक ऐसा रणनीतिक प्रयास है जो सरकारों के साथ मिलकर और हितधारकों के एक व्यापक समूह के समर्थन से काम करता है। ताकि उन बहु-हितधारक प्रक्रियाओं को सम्बल दिया जा सके जो कृषि-पारिस्थितिकी आधारित खाद्य-प्रणालियों के रोडमैप को विकसित, निर्मित और कार्यान्वित करने में सहायता करती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

उन्होंने कहा कि इस प्रयास का मुख्य उद्देश्य तीन हिमालयी देशों (भारत, नेपाल और भूटान) की आजीविका और उसकी स्थिरता में सुधार लाने के साथ किसानों, किसान उत्पादक संगठनों एवं अन्य प्रमुख हितधारकों को सशक्त बनाना है, ताकि वे जैविक/ प्राकृतिक कृषि, खाद्य-प्रसंस्करण और उपभोग का समर्थन करने वाली सार्वजनिक नीतियों का बेहतर लाभ उठा सकें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सतत कृषि एवं खाद्य प्रणाली के लिए हिमालयन एग्रोइकोलॉजीइनिशिएटिव के अंतर्गत जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर के प्रोफेसर डॉ. वीर सिंह ने कृषि पारिस्थितिकी से संबंधित नीतियों, प्रमुख चिंताओं और क्षेत्रीय स्थिति पर प्रकाश डालने वाले प्रमुख मुद्दों पर बात रखी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के के पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष एवं प्रो. डॉ. राकेश मैखुरी ने हिमालयी कृषि पारिस्थितिकी और संबंधित पहलुओं पर अनुसंधान एवं विकास के लिए रोडमैप पर बात रखी। उन्होंने कहा कि निशुल्क राशन व्यवस्था भी युवाओं का खेती से मोहभंग का एक बड़ा कारण है। उन्होंने राज्य की नीति को युवा केन्द्रित बनाने पर जोर दिया। साथ ही मानव संसाधनों के विकास से हिमालयी क्षेत्र में कृषि परक रोजगार उत्त्पन्न करने की सलाह दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सुपा बायोटेक की अध्यक्ष बिनीता शाह ने सतत कृषि कार्यक्रम, राज्य में जमीनी स्तर की पहल, कृषि-पारिस्थितिकी के प्रबंधन में प्रमुख बाधाओं और उनसे पड़ने वाले प्रभाव, विषय पर भावपूर्ण बात रखी। उन्होंने कहा कि पहाड़ के लोगों की कर्मठता, सरलता और जीवटता यहाँ की पारिस्थितिकी और उससे प्राप्त श्री अन्न से है। उन्होंने सीमांत गाँवों के बची-खुची कृषि विविधता पर प्रस्तुति दी और उसको बचाने तथा आगे बढाने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों पर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमें अपनी जमीन को वहां की कृषि पारिस्थिकी के अनुसार सदुपयोग करने हेतु नीति निर्मित करनी चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

संयुक्त निदेशक कृषि डॉ. ए.के. उपाध्याय ने उत्तराखंड में जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, कृषि विकास के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं, चुनौतियों और संभावनाओं पर बात रखी। उन्होंने जैविक खेती को आगे बढ़ाने, उसे प्रमाणीकरण से जोड़ने के लिए सरकार की योजनाओं पर जानकारी दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आजीविका कार्यक्रमों से जुड़े कैलाश भट्ट ने क्षेत्र में अनुभव, चुनौती और अवसर और अवसर पर प्रकाश डाला। उन्होंने ग्रामीण उद्यम वेग परियोजना के माध्यम से पहाड़ी उत्पादों के प्रसंस्करण, ब्रांडिंग और मार्केटिंग पर बात रखी। इस तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर एमेरिटस, यूसीओएसटी, डब्ल्यूआईआई के पूर्व निदेशक और डीन डॉ. जीएस रावत ने की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

द्वितीय सत्र सामूहिक चर्चा पर आधारित रहा। तीन समूहों में संवाद के आधार पर यह सत्र संपन्न हुआ। प्रथम समूह का नेतृत्व पतंजलि आर्गेनिक रिसर्च इंस्टिट्यूट, हरिद्वार के सीजीएम पवन कुमार ने किया। उनकी थीम विभिन्न विभागों और संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले सरकारी अधिकारियों पर आधारित रही। द्वितीय समूह में श्रमयोग के अजय जोशी के नेतृत्व में गैर सरकारी संगठन, सीबीओ, उद्योगों के प्रतिनिधि पर आधारित था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

तृतीय समूह का संचालन यूएनडीपी के राज्य प्रमुख डॉ. प्रदीप मेहता के नेतृत्व में फेडरेशन, प्रगतिशील किसान, एफपीओ विषयों पर संपन्न हुआ। समापन सत्र में तीनों समूहों ने अपनी वार्ता का संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया। सीपीपीजी के एसीआईओ डॉ. मनोज कुमार पंत ने उत्तराखंड राज्य कृषि नीतियां और योजनाएं: चुनौतियां और अवसर, पर प्रकाश डाला। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हिमालयन एग्रोइकोलॉजी इनिशिएटिव (HAI) की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में कुल 70 प्रतिभागी उपथित थे। कार्यक्रम कुल तीन सत्रों में संपन्न हुआ। सत्रारंभ में HAI उत्तराखण्ड कंसलटेंट के डॉ. विनोद कुमार भट्ट ने सभी का स्वागत किया। आईआरडी फाउंडेशन के सलाहकार डॉ. अनिल जोशी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम का संचालन मृदा वैज्ञानिक डॉ. हरिराज सिंह ने किया।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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