ग्राफिक एरा में अमृत महोतसव के तहत व्याख्यान, पर्यावरणविद डॉ. राजेंद्र बोले- राजस्थान से सीखा जा सकता है जल संरक्षण

डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा की युवा जल संरक्षण के पारम्परिक उपाय सीख लें, तो आने वाले समय में पानी की किल्लत से होने वाली विकत परिस्थितियों जा सकता है। उन्होंने कहा की जल संरक्षण के पारम्परिक तरीकों से अलवर ज़िले का पिछले दो दशकों में कायाकल्प हुआ है। सात नदियों को पुनर्जीवित किया गया है। शुष्क मौसम के लिए वर्षा जल एकत्रित करने के लिए, 8006 से ज्यादा जोहड़ व अन्य जल संरक्षण संरचनाओं से हजार से ज्यादा गांवों में पानी वापस लाया गया है। इसके मिले-जुले प्रभाव से क्षेत्र के तापमान में 2 डिग्री की गिरावट भी आई।
उन्होंने कहा कि राजस्थान की इस पारम्परिक विद्या से न सिर्फ भू-जल की समझ मिलती है, बल्कि इसके साथ-साथ नदियों के बहाव, चोटियों और ढलानों की समझ भी विकसित होती हैं। सही जगहों पर बिना सीमेंट, स्टील, और लोहे का इस्तेमाल किये जाने के बिना युवक पर्यावरण में आसानी से मिलने वाली चीज़ें जैसे पत्थर, शिलाएं आदि से बाँध बांये जा सकते हैं। बाँध में जल के ठराव से अन्य स्रोत्रों तक जल पहुँचाया जा सकता है ही भूमिगत बढ़ता है और प्रकितिक हरियाली बढ़ती है।
इस मौके पर ग्राफिक एरा पर्वतीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डॉ जयकुमार ने डॉक्टर राजेंद्र सिंह का स्वागत करते हुए कहा कि उत्तराखंड में कृषि के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का उपयोग करके फसलों और खाद्य उत्पादन में वृद्धि लाने के लिए प्रयोग किए जा रहे हैं। भारतीय हिमालय नदी बेसिन परिषद के अध्यक्ष डॉ इंदिरा खुराना ने उत्तराखंड में चल रहे जल संरक्षण से जुड़े विभिन्न कार्यों के बारे में छात्रों को अवगत कराया। कार्यक्रम में ग्राफ़िक एरा हिल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार कैप्टिन हिमांशु धूलिआ, कार्यक्रम की समन्वयक डॉ. रीमा पंत और पर्यावरण विज्ञानं के विभागाध्यक्ष डॉ. के. के. जोशी उपस्थित रहे।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।