ललित मोहन गहतोड़ी की कविता-सौदा कुर्सी का

सौदा कुर्सी का
कुर्सी आगे, कुर्सी पीछे…
सुन लो किस्सा, कुर्सी का…
कल परसों नहीं, वर्षों से है…
झगड़ा कुर्सी, कुर्सी का…
कुर्सी के लिए, मारा मारी
लेकर कुर्सी, दोड़ा भागी
कुर्सी के लिए, की बरबादी
बनता किस्सा, कुर्सी का
आवत जावत, है लगी रहती
तिगड़़म कुर्सी, कुर्सी का
कौन बैठेगा, कौन उठेगा
करमा कुर्सी, कुर्सी का
बात बदलते, देर ना लगती
बनता किस्सा, कुर्सी का
सोच समझकर, कुर्सी ताको
हिस्सा कुर्सी, कुर्सी का
कुर्सी खींचे, अपनी ओर
जैसे दूर, पतंग की डोर
आती कुर्सी, जाती कुर्सी
बहाना कुर्सी, कुर्सी का
कुर्सी पाकर, मत इतराना
वादा कुर्सी, कुर्सी का
बीते दौर से, चल रहा देखो
सौदा कुर्सी, कुर्सी का
लेखक का परिचय
उत्तराखंड में चंपावत जिले के जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट निवासी ललित मोहन गहतोड़ी स्नातक, प्रशिक्षित स्टेनोग्राफर, प्रशिक्षित व्यायाम शिक्षक हैं। ललित वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता के साथ फाल्गुनी फुहारें नाम से एक वार्षिक सांस्कृतिक पुस्तक का प्रकाशन कर रहे हैं। इसके अब तक चार भाग प्रकाशित कर चुके हैं। उनका कहना है कि फुहारें पुस्तक का आगामी अंक पांच वसंत फुहारें विशेषांक भी वह जल्द ही प्रकाशित करने जा रहे हैं।
Bhanu Bangwal
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।