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November 8, 2024

मजदूर संगठनों ने दिया धरना, सरकार से की अपील, अपने वादों को पूरा करो, किसी को मत करो बेघर

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में वर्ष 2016 के बाद की मलिन बस्तियों में बुलडोजर चलाने की सुगबुगाहट का विरोध शुरू हो गया है। शनिवार को विभिन्न संगठनों से जुड़े नेताओं के साथ ही बस्ती के लोगों ने देहरादून में दीन दयाल पार्क पर धरना दिया। इस मौके पर तहसीलदार के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया। वहीं, प्रभावित होने वाली जनता की ओर से नगर निगम में नगर आयुक्त के कार्यालय में भी ज्ञापन दिया गया। इस मौके पर आयोजित की गई जनसभा में राज्य के मज़दूर संगठनों एवं राजनेताओं के साथ भारी संख्या में मज़दूर और गरीब लोग एकत्रित हुए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सभा में वक्ताओं ने कहा कि सरकार अदालत के आदेशों का बहाना बना कर देहरादून में मज़दूरों को बेघर करना चाह रही है। यह स्थिति इसलिए बनी, क्योंकि सरकार ने पिछले आठ सालों में अपने ही वादों पर कोई काम नहीं किया। ऐसे मामले में जारी याचिकाओं को लेकर पैरवी में भी घौर लापरवाही बरती गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस मौके पर सवाल उठाया गया कि जब सरकार को पता है कि मज़दूर सिर्फ और सिर्फ बस्ती में रह सकते हैं, तो इसके लिए व्यवस्था न कर उन्हें बार बार उजाड़ना अत्याचार है। बस्तियों के लिए वर्ष 2018 में लाया गया अधिनियम भी जून 2024 में ख़त्म हो रहा है। इसके बाद किसी भी बस्ती को कभी भी उजाड़ा जा सकता है। इसपर भी सरकार खामोश है। वक्ताओं ने यह भी कहा कि सरकार की लापरवाही यहां तक रही कि आखरी सुनवाई में सरकार का पक्ष हाज़िर ही नहीं हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसी प्रकार की जन विरोधी मानसिकता और मुद्दों पर भी दिख रही है। शहर में वेंडिंग जोन को न घोषित कर ठेली वालों को हटाया जा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में वन अधिकार कानून पर अमल न कर लोगों को हटाया जा रहा है। शहरों और ग्रामीण इलाकों में भी बड़े बिल्डर, निजी कंपनी एवं सरकारी विभागों ने अनेक नदियों और नालियों पर अतिक्रमण किये हैं, लेकिन उनपर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। उल्टा दुष्प्रचार किया जाता है कि ये मुद्दे “बाहर” के लोगों के मुद्दे हैं, जबकि राज्य के सारे गरीब और आम लोग इनसे प्रभावित हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

जन सभा में कहा गया कि सरकार को अपने ही वादों के अनुसार तुरंत बेदखली की प्रक्रिया पर रोक लगानी चाहिए। क़ानूनी संशोधन द्वारा या कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की जानी चाहिए। जब तक नियमितीकरण और पुनर्वास की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी, तब तक 2018 का अधिनियम को एक्सटेंड किया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मांग की गई कि दिल्ली सरकार की पुनर्वास नीति को उत्तराखंड में भी लागू किया जाये। राज्य के शहरों में उचित संख्या में वेंडिंग जोन को घोषित किए जाएं। पर्वतीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में वन अधिकार कानून पर अमल युद्धस्तर पर किया जाये। बड़े बिल्डरों एवं सरकारी विभागों के अतिक्रमण पर पहले कार्यवाही की जाये। 12 घंटे का काम करने के कानून, चार नए श्रम संहिता और अन्य मज़दूर विरोधी नीतियों को रद्द किया जाये। न्यूनतम वेतन को 26,000 किया जाये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये रहे मुख्य वक्ता
इस मौके पर मुख्य वक्ताओं में इंटक (INTUC) के राज्य अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री हीरा सिंह बिष्ट, सीटू (CITU) के राज्य अध्यक्ष राजेंद्र नेगी और राज्य सचिव लेखराज, एआईटीयूसी (AITUC) के राज्य उपाध्यक्ष समर भंडारी, राज्य सचिव अशोक शर्मा, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ एसएन सचान, माकपा के जिला सचिव राजेंद्र पुरोहित, कर्मचारी महासंघ के एसएस नेगी, एसएफएफ के राज्य अध्यक्ष नितिन मलेठा, सचिव हिमांशु चौहान, जय कृत कंडवाल, इफ्टा के हरिओम पाली, अर्जुन रावत आदि ने सभा को संबोधित किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कार्यक्रम में भीम आर्मी के महानगर अध्यक्ष आज़म खान, माकपा के अनंत आकाश, कृष्ण गुनियाल, राम सिंह भंडारी, रविन्द्र नौडियाल, भगवंत पयाल, शैलेन्द्र परमार भी शामिल थे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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