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March 11, 2025

जानिए श्राद्ध का महत्व, कौवे, गाय और कुत्ते को क्यों खिलाया जाता है भोजनः आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी

16 दिवसीय श्राद्ध पक्ष पूर्णमासी से आमावस्या तक अपने अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धापूर्वक किया जाने वाला कार्य अन्यदान, पिंडदान, तर्पणदान, जल दान, वस्त्रदान आदि जो आपके जीवन को सफल बनाता है। इसी को श्राद्ध कहते हैं।

श्राद्ध का अर्थ है पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अपर्ण। यानी श्रदयाइदम श्राद्धम। 16 दिवसीय श्राद्ध पक्ष पूर्णमासी से आमावस्या तक अपने अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धापूर्वक किया जाने वाला कार्य अन्यदान, पिंडदान, तर्पणदान, जल दान, वस्त्रदान आदि जो आपके जीवन को सफल बनाता है। इसी को श्राद्ध कहते हैं। इस वर्ष यह श्राद्ध पक्ष आज यानी 20 सितंबर की प्रातः पांच बजकर 27 मिनट से प्रारंभ हो गया है, जो छह अक्टूबर शाम चार बजकर 33 मिनट तक रहेगा। अर्थात यह 16 दिवसीय कार्य अपने पूर्वजों के प्रति उनकी आत्मा को तृप्ति के लिए माता-पिता, गुरु-देवता और अपने संपूर्ण पूर्वज, जो मृत्यु के उपरांत जिनके प्रति वर्ष भर में यह 16 दिवस हमारी स्मृति के कारक हैं। जब जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं तो प्रायः हम अपने इतिहास को दोहराते हैं। जिनके घरों में इस प्रकार का कार्य होता है, उनके परिवार में सबकी याददाश्त यानी मेमोरी अच्छी होती है। जो अपने पूर्वज पितृों के प्रति श्रद्धा अर्पित नहीं करते, उनको मानसिक बौद्धिक यातनाओं को भुगतना पड़ता है। यहां श्राद्ध पक्ष के महत्व के बारे में बता रहे हैं आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी।
ब्राह्मांड से मिलने वाली ऊर्जा का कारक
पूर्णमासी से लेकर आमावस्या तक ब्रह्मांड की ऊर्जा तथा उस ऊर्जा के साथ संपूर्ण पृथ्वी पर पितृ प्राण अर्थात पितृ शक्ति के साथ व्याप्त हो जाता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के उपरांत आत्मा की स्थिति परमात्मायुक्त ईश्वरीय सत्ता से विद्यमान हो जाती है। वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है कि पंच तत्व युक्त जीवात्मा जब परमात्मा के जुड़ती है और उसका प्रभाव जब धरती पर पड़ता है तो वह आलौकिक ऊर्जा का कारक होता है। मृत्यु के बाद दसगात्र क्रिया की सोढ़सी सपिंडी तक मृत्यु वाली जीवात्मा की प्रेत संज्ञा होती है। पुराणों के अनुसार वह सूक्ष्म शरीर जो आत्मा भौतिक शरीर को छोड़ने पर धारण करती है, वह प्रेत होती है। अपने प्रिय के अतिरेक की अवस्था प्रेत है। क्योंकि आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण करती है, उसके बाद भी उसके अंदर मोह, माया, भूख, प्यास अतिरिक होता है।
पिंडदान और तर्पण से दोषमुक्त हो जाते हैं पितृ
सपिंडी के बाद वह आत्मा (प्रेत) बाद पितृों में शामिल हो जाती है। 16 दिन के संपूर्ण पितृ पक्ष के दिनों में पिंडदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, तर्पण आदि की क्रिया की जाती है। ऐसा कार्य करने से आप अपने पितृ ऋण से मुक्त होते हैं। ऐसा करने पर पितृ कृपा और ब्रह्माणडीय ऊर्जा का आपको सीधा सीधा लाभ मिलता है। प्रायः यह दिन हर व्यक्ति के लिए परम आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने घरों में इन दिनों स्वयं और परिवार के साथ अपने पूर्वजों के प्रति ब्राह्मण बुलाकर भगवान नारायण का ध्यान करते हुए, अपने समस्त पितृों का ध्यान करते हुए, पितृ ब्राह्मण को याद करते हुए पितृों के निवित जौ, तिल, तुलसी, कुशा, श्वेत पुष्प, चंदन, शहद आदि मुट्ठी में बंद कर अंगुष्ठ भाग की तरफ से तर्पण करें। इससे संपूर्ण पितृ दोष मुक्त हो जाते हैं। साथ ही ब्राह्मणों को वस्त्रदान के साथ भोजन कराना चाहिए।
मत्स्य पुराण के अनुसार तीन प्रकार का श्राद्ध होते हैं। वहीं मनु स्मृति में पांच प्रकार के श्राद्ध लिखे हैं। इनके नाम नित्य, नैमितिक, काम्य, वृद्धि, पार्वण यानी पितृों और देवताओं का मिलन।
तीर्थ और धाम में पिंडदान का महत्व
तीर्थ और धाम जैसे स्थानों में जाकर अपने पितृों को पिंडदान और तर्पण काफी महत्व है। ऐसे में इन स्थानों पर जाकर पिंडदान अवश्य कराएं। इससे पितृों को प्रेतत्व से मुक्ति मिलती है। साथ ही परिवार में सुख शांति आती है। जैसे गया, बदरीनाथ।
पितृ पक्ष में कौवे का महत्व
श्राद्ध पक्षों में गो ग्रास, स्वान ग्रास और काक ग्रास महत्वपूर्ण है। प्रायः कौवे को यम का दूत माना जाता है। अभी तक आपके परिवार का जो भी व्यक्ति मृत्यु के उपरांत यमलोक की यात्रा कर रहा हो, उसके लिए संदेशवाहक का काम कौवा कर सकता है। उनके जीवन में युक्ति और मुक्ति प्रदान कर उनकी आत्मा को वह संयम प्रदान करता है। यदि हमारे द्वारभाग में 16 दिन में कौवा प्रसन्न होकर जाता है तो पितृों को प्रसन्नता मिलती है। जिस दिन परिवार के किसी सदस्य का श्राद्ध हो, उस दिन घर के आंगन में कौवा आ जाए तो उसे शुभ माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौवा शांति का वाहक है।
गाय और स्वान का भी महत्व
गाय को भी भोजन अवश्य देना चाहिए। क्योंकि गो माता के अंदर 33 कोटी (प्रकार) के देवता निवास करते हैं। इनमें पितृ भी हैं। इसलिए गाय को ग्रास करना पितृों को भोजन कराना है। स्वान को अदृश्य शक्ति को देखने की क्षमता वाला जीव कहा गया है। यह जीव धरती पर विलक्षण है। आपके घर के आसपास अदृश्य रूप में आने वाले पितृों को यह देख सकता है, महसूस कर सकता है। इसलिए इसको भी ग्रास दिया जाता है। इस संपूर्ण में पितृ पक्ष कीट, पतंग, पशु-पक्षी, किसी की भी जीव हत्या नहीं करनी चाहिए। अर्थात पितृत पक्षों में मांसाहार पूर्ण रूप से वर्जित है। इस दौरान मांसाहार से अनेक प्रकार की बीमारियां और कष्ट को प्रदान करने वाले गुण होते हैं।
श्राद्ध पक्ष के बाद ही आती है मां भगवती
जो इन 16 दिन, पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्मेंद्रियां, पांच प्राण और एक मन की पवित्रता का ध्यान रखते हुए अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पित करता है, वह नवरात्रि के नौ दिनों में अद्भुत शक्ति प्राप्त करता है। इस बार सात अक्टूबर से नवरात्र शुरू हो रहे हैं।
पितृ पक्ष 2021 की श्राद्ध की तिथियां
पहले दिन: पूर्णिमा श्राद्ध: 20 सितंबर (सोमवार) 2021
दूसरे दिन: प्रतिपदा श्राद्ध: 21 सितंबर (मंगलवार) 2021
तीसरे दिन: द्वितीय श्राद्ध: 22 सितंबर (बुधवार) 2021
चौथा दिन: तृतीया श्राद्ध: 23 सितंबर (गुरूवार) 2021
पाँचवां दिन: चतुर्थी श्राद्ध (महाभरणी): 24 सितंबर (शुक्रवार) 2021
छठा दिन: पंचमी श्राद्ध: 25 सितंबर (शनिवार) 2021
सातवां दिन: षष्ठी श्राद्ध: 27 सितंबर (सोमवार) 2021
आठवां दिन: सप्तमी श्राद्ध: 28 सितंबर (मंगलवार) 2021
नौवा दिन: अष्टमी श्राद्ध (पितृ अष्टमी): 29 सितंबर (बुधवार) 2021
दसवां दिन: नवमी श्राद्ध (मातृनवमी): 30 सितंबर (गुरूवार) 2021
ग्यारहवां दिन: दशमी श्राद्ध: 01 अक्टूबर (शुक्रवार) 2021
बारहवां दिन: एकादशी श्राद्ध: 02 अक्टूबर (शनिवार) 2021
तेरहवां दिन: द्वादशी श्राद्ध, संन्यासी, यति, वैष्णवजनों का श्राद्ध: 03 अक्टूबर 2021
चौदहवां दिन: त्रयोदशी श्राद्ध: 04 अक्टूबर (रविवार) 2021
पंद्रहवां दिन: चतुर्दशी श्राद्ध (विष, शस्त्रादि से दुर्मरण वालों का श्राद्ध): 05 अक्टूबर (सोमवार) 2021।
सोलहवां दिन: अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि पितृ श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या समापन- 06 अक्टूबर (मंगलवार) 2021,
आचार्य का परिचय
आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
(धर्मज्ञ, ज्योतिष विभूषण, वास्तु, कथा प्रवक्ता)
चंद्रविहार कारगी चौक, देहरादून, उत्तराखंड।
फोन-9760690069
-9410743100

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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