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April 16, 2025

देहरादून का प्रसिद्ध घंटाघर, जो है एशिया में विरला, जानिए इसका इतिहास

उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून पहुंचने पर यहां घंटाघर भी आकर्षण का केंद्र है। देहरादून से किसी स्थान की दूरी भी घंटाघर से ही नापी जाती रही है। यह घंटाघर षट्कोणीय आकार का है। इसके शीर्ष पर छः मुखों पर छः घड़ियाँ लगी हुई हैं। इसका षट्कोणनुमा ढाँचा अपने प्रकार का एशिया में विरला है।
यह घंटाघर ईंटों और पत्थरों से निर्मित है और इसके षट्कोणीय आकार की हर दीवार पर प्रवेशमार्ग बना हुआ है। इसके मध्य में स्थित सीढ़ियाँ इसके ऊपरी तल तक जाती हैं, जहाँ अर्धवृत्ताकार खिड़कियाँ हैं। उस समय अस्सी फीट ऊँचे इस पूरे देश में अनूठे किस्म का घंटाघर का नाम ‘बलबीर क्लाक टावर’ रखा गया। इसमें प्रवेश के लिये 6 दरवाजे हैं। ऊपर जाने के लिये गोल घुमावदार सीढी है। छह कोनों में छह घड़ियां लगी जो उस समय स्वीटजरजलेंड से भारी-भरकम मशीनों के साथ लायी गई थी।
देहरादून का घंटाघर नगर में सबसे सौन्दर्यपूर्ण संरचना है।यह देहरादून की सबसे व्यस्त राजपुर रोड के मुहाने पर स्थित है। यह इलाका देहरादून की प्रमुख व्यवसायिक गतिविधियों का केन्द्र है। इस घंटाघर को काफी दूरी से भी देखा जा सकता है। पहले इसका घंटानाद देहरादून के दूर-दूर के स्थानों से भी श्रव्य था, लेकिन अब यह शहर का स्थलचिह्न मात्र है। जिसके चारों ओर दुकानें, सिनेमाघर, सरकारी भवन, पर्यटक स्थल इत्यादि बन गये हैं।


इतिहास व निर्माण
अंग्रेजी शासनकाल के प्रसिद्ध न्यायाधीश लाला बलबीर सिंह की स्मृति में घंटाघर का निर्माण उनके सुपुत्र नगर के प्रतिष्ठित कुंवर आनन्द सिंह ने सन् 1948 में कराया था। सामाजिक स्थिति के प्रतीक इस घंटाघर के निर्माण में भी कई समस्यायें सामने आई। कुंवर आनन्द सिंह के समकक्ष नगर के अन्य समृद्धशाली व्यक्ति नहीं चाहते थे कि शहर के मध्य बलबीर सिंह के नाम से घंटाघर का निर्माण हो।
अत: रईसों की इस प्रतिद्वंदिता में निर्माण हेतु भूमि उपलब्ध होने तथा निर्माण की समस्या एक विवाद के रूप में उभरी। उस समय के जिलाधीश ए.डी. पंडित भी रईसों के आपसी झगड़े में पक्ष-विपक्ष का समर्थन न करते हुए तटस्थ हो गये। परिणामस्वरूप घंटाघर निर्माण के लिए संस्तुति प्रक्रिया भी अधर में लटक गई। नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष आनन्द स्वरूप गर्ग इस बात के पक्षधर थे कि शहर की सुन्दरता के लिये घंटाघर का निर्माण हो। अत: उन्होंने अपनी एक युक्ति के तहत, कुंवर आनन्द सिंह को सुझाव दिया कि अगर राज्यपाल सरोजनी नायडू घंटाघर के शिलान्यास की स्वीकृति दे दें तो जिलाधीश व नगरपालिका को कोई आपत्ति न होगी।
परिणामतः श्रीमती नायडू के सुरक्षा सचिव कर्नल सी.एस. भटनागर के सहयोग से राज्यपाल की शिलान्यास के लिए स्वीकृति मिल गयी। इस तरह 24 जुलाई 1948 को प्रात: नौ बजकर दस मिनट पर राज्यपाल सरोजनी नायडू ने इस घंटाघर का विधिवत् शिलान्यास कर विवाद को निर्मूल कर दिया। घंटाघर के निर्माता कुंवर आनन्द सिंह ने स्वाभिमान का परिचय देते हुए, इसके निर्माण में परिवार के इन सदस्यों का सहयोग लिया उनका उल्लेख शिलालेख में बखूबी किया गया।


लाल बहादुर शास्त्री जी ने किया था उद्घाटन
शिलालेख के अनुसार, घंटाघर के निर्माण में पच्चीस हजार रुपये का दान स्वर्गीय लाला बलबीर सिंह की धर्मपलि श्रीमती सनभरी देवी तथा उनके सुपुत्र लाला आनन्द सिंह, हरी सिंह, शेर सिंह तथा अमर सिंह ने संयुक्त रूप से दिया। बलबीर घंटाघर का उद्घाटन 1953 के अक्टूबर माह में लाल बहादुर शास्त्री तत्कालीन रेलवे तथा यातायात मंत्री के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ।
मीनार के झुकने को लेकर उठाया विवाद
घंटाघर के ठेकेदार चौधरी नत्थूलाल, नरेन्द्र देव सिंघल व ईश्वरी प्रसाद ने इसकी ऊंचाई अस्सी फीट निर्धारित कर इसको पूर्ण आकार दिया। इसके वास्तु कलाकार हरिराम मित्तल व रामलाल थे। निर्माण के पश्चात् कुंवर आनसिंह के प्रतिद्वंदियों ने यह प्रचार शुरू कर दिया कि अकुशल वास्तुकलाकारों की देखरेख में बनी घंटाघर की मीना एक ओर को झुकी हुई है। अत: यह कभी भी साधारण भूकम्प में गिर सकती है। वास्तु कलाकारों ने थियोडोलाइट माध्यम से जनता के समक्ष यह सिद्ध करा कि घंटाघर की मोनार टेढ़ी नहीं है तथा इससे जनजीवन को कोई खतरा नहीं है।
इस तरह घंटाघर का निर्माण पूर्ण कर ठाकुर कृष्ण सिंह की संरक्षता में नगर पालिका अध्यक्ष श्री केशव चन्द्र, उपाध्यक्ष श्री महाराज प्रसाद व सदस्य गण श्री बृज लाल भण्डारी, डॉ. दुर्गा प्रसाद, कल्याण दास, मजहर मोहम्मद, मेजर एल.आर. फ्रँकलिन, रामेश्वर दयाल, सिवालुद्दीन, बी.सी.डब्ल्यू हार्वे, सत्यवती प्रभाकर, शांति स्वरूप गुप्त, मोहम्मद इश्त्याक अहमद, रफअत हुसैन आदि की उपस्थिति में इसे नगरपालिका के सुपुर्द किया गया।


लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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