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April 12, 2025

बार बार बिकता रहा दून के एस्लेहॉल का भूखंड, फिर बना व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र, जानिए रोचक इतिहास

देहरादून में घंटाघर से करीब सात सौ मीटर की दूरी पर स्थित एस्लेहाल लगभग 50 बीघा क्षेत्र में विकसित एक सम्पूर्ण बाजार है। एस्लेखल जो कि प्रारम्भ में लगभग 52 बीघा भूखण्ड के रूप में था। इस भूखंड की खासियत यह रही कि ये एक हाथ से दूसरे हाथ में बिकता रहा। बाद में यह एक संपूर्ण बाजार के रूप में अस्तित्व में आया। आइए जानते हैं एस्लेहाल की कहानी।

एस्लेहाल को 1840 में पहाड़ी किंग विल्सन से कैप्टन जॉन ने खरीदा। कैप्टन जॉन फिशर ने इस सम्पत्ति को 1844 में धूमसिंह और मोहर सिंह को बेच दिया। 1847 में लाला धूमसिंह और मोहर सिंह ने लेफ्टिनेंट विलियम अल्वर्ट को यह भू-भाग बेचा। 1847 में ही अल्बर्ट ने यह स्काट को बेचा। 1850 में इस सम्पत्ति को श्रीमती और श्री दवे ने खरीदा । 1863 में इसे अंग्रेज व्यावसायी हाक्सन को बेच दिया।

हाक्सन के ऊपर हिमालय बैंक की देनदारी थी। इसलिए उसने 1873 में यह सम्पत्ति मात्र 10 हजार रुपयों में हिमालया बैंक के पास गिरवी रख दी। हिमालया बैंक ने पैसा वसूल करने के उद्देश्य से 1875 में इसे राय बहादुर उग्रसेन को बेच दिया। राय बहादुर उग्रसेन ने 1936 में इसे व्यवसायिक और आवासीय प्रतिष्ठान में परिवर्तित कर खरीददारों को आमंत्रित किया। परिणामस्वरूप विभिन व्यावसायिक केन्द्रों की यहां स्थापना हुई। धीर-धीरे यह नगर का प्रमुख व्यापारिक केंद्र बना।


यहां उस समय विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित प्रमुख व्यासाय इस प्रकार थे- दवा दारू के लिये प्रमुख आर.वी. हेमर एण्ड कम्पनी, शमशेर सिंह एण्ड सन्स एवं जैकल एण्ड कम्पनी। एस जेन्सन एण्ड कम्पनी वाच मेकर व इलेक्ट्रो प्लेटर्स, डे एण्ड कम्पनी टेलरिंग शाप, सिल्वर ग्रिल रेस्टोरेंट जो बाद में नेपोली के रूप में प्रसिद्ध रहा।

मिलिट्री यूनिफार्ग सिलाई के लिये हैल्कान बदर्स, रायल कैफे, मदन कैफे, जैम डायर्स एण्ड डाईक्लीनर्स, कैमल्स रेडियो रिपेयर्स, ऑटो लिंकर्स मोटर एंड जनरल फाइनेंसर्स, इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया, ओरियंट सिनेमा व रायसाहब माघोराम का पेट्रोल पंप। समय से साथ मॉल अब यह क्षेत्र भी काफी बदला नजर आने लगा है। यहां अत्याधुनिक शो रूम बन गए हैं। पुराने व्यावसायिक केंद्रों में कुछ ही रह गए हैं। नए रूप व रंग में दुकानें बन गई हैं। ब्रांडेड कंपनी के शो रूम यहां देखने को मिलेंगे। साथ ही आधुनिकता का असर भी यहां देखा जा सकता है।


लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “बार बार बिकता रहा दून के एस्लेहॉल का भूखंड, फिर बना व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र, जानिए रोचक इतिहास

  1. बहुत सुंदर, जानकारी हेतु धन्यवाद

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