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January 5, 2025

जानिए- लॉयर, एडवोकेट, बैरिस्टर में फर्क, कैसे बनते हैं महाधिवक्ता, अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल

अक्सर आप अदालत और वकालत जुड़ी अलग अलग पदवी को एक ही मान लेते हैं। जैसे लॉयर, बैरिस्टर और एडवोकेट को भी अमूमन लोग एक ही मानकर चलते हैं। कई लोग ये सोचते होंगे कि ये तीनों शब्द एक ही हैं। इसी तरह अटॉर्नी जनरल, प्लीडर इत्यादि के बारे में सुनने को कहीं न कहीं मिल ही जाता है। अब सवाल उठता है कि क्या वाकई में लॉयर और एडवोकेट एक ही व्यक्ति होते हैं। या इनके अलग-अलग नाम हैं। क्या अटॉर्नी, सॉलिसिटर जनरल बनने के लिए लॉ (law) में डिग्री लेना आवश्यक होता है। यहां हम इस लेख के माध्यम से इन सबके बीच अंतर को आसानी से समझाने का प्रयास करेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लॉयर का मतलब
लॉयर का मतलब कानून की डिग्री हासिल करने वाला व्यक्ति है। लॉयर, कानून के क्षेत्र में प्रशिक्षित होता है और कानूनी मामलों में सलाह और सहायता देता है। लॉयर वह होता है जिसके पास लॉ (law) की डिग्री होती है, जो कानून के क्षेत्र में प्रशिक्षित होता है और कानूनी मामलों पर सलाह और सहायता प्रदान करता है। यानी विधि स्नातक, कानून का जानकार। जिसने LLB की डिग्री ले ली हो, वह लॉयर बन जाता है। इन सबके बावजूद उसके पास कोर्ट में केस को लड़ने की अनुमति नहीं होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एलएलबी के बारे में
LLB को Legum Baccalaures एक लैटिन भाषा का शब्द है। यानी Bachelor of Law भी कहते हैं। 12वीं क्लास के बाद या स्नातक करके भी कोई लॉ विकल्प को चुन सकता है। कानून से सम्बंधित ज्ञान को प्राप्त करने वालों को ही वकील या लॉयर कहा जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एडवोकेट के बारे में
एडवोकेट लाइसेंस प्राप्त वकील को कहते हैं। एडवोकेट, अदालत में किसी पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। एडवोकेट बनने के लिए वकील को बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया (BCI) से सदस्यता लेनी होती है। साथ ही उसे BCI की परीक्षा पास करनी होती है। तब वह किसी भी कोर्ट में खड़े होने के लिए अधिकृत हो जाता है। आसान शब्दों में कहें तो एडवोकेट दूसरे व्यक्ति की तरफ से दलीलों को कोर्ट में प्रस्तुत करता है। अधिवक्ता बनने के लिए कानून (Law) की पढ़ाई को पूरा करना अनिवार्य होता है। यानी पहले लॉयर बनते हैं और फिर एडवोकेट। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बैरिस्टर
यदि कोई व्यक्ति लॉ (law) की डिग्री इंग्लैंड से प्राप्त करता है तो उसे बैरिस्टर कहा जाता है। आपने पढ़ा भी होगा कि महात्मा गांधी के परिवार के लोग चाहते थे कि वह बैरिस्टर बनें। इसलिए वो 19 साल की उम्र में ही कानून की पढ़ाई करने के लिए लन्दन चले गए थे। वहीं पर उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री हासिल की थी। महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत बैरिस्टर बन कर ही तो लौटे थे। यानी इससे पता चलता है कि बैरिस्टर एक तरह वकील का ही प्रकार होता है जो कि आम कानून न्यायालय में अपनी प्रैक्टिस करता है। बैरिस्टर, मुख्य रूप से अदालत में मुकदमेबाज़ी और कानूनी बहस में माहिर होता है। बैरिस्टर बनने के लिए, विशेष ट्रेनिंग और योग्यता की ज़रूरत होती है। इंग्लैंड में बैरिस्टर बनने के लिए “इनन्स ऑफ़ कोर्ट” में से किसी एक का सदस्य बनना पड़ता है और बार परीक्षा पास करनी होती है। भारत में, बैरिस्टर को सम्मानजनक उपाधि माना जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लोक अभियोजक (Public Prosecutor)
लोक अभियोजक के पास लॉ (law) की डिग्री होती है। एडवोकेट होने की क्षमता है। जिसने BCI की परीक्षा को पास की है और अगर ये व्यक्ति राज्य सरकार की तरफ से पीड़ित का पक्ष लेता है, यानी विक्टिम की तरफ से कोर्ट में प्रस्तुत होता है, तो इसे ही हम पब्लिक प्रोसिक्यूटर या लोक अभियोजक कहते हैं। लोक अभियोजक एक ऐसा व्यक्ति है, जिसे आपराधिक मामलों में राज्य की ओर से मामलों का प्रतिनिधित्व करने के लिए केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा CrPC के प्रावधानों के तहत नियुक्त किया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लोक अभियोजक की मुख्य भूमिका जनता के हित में न्याय दिलाना होता है। सरकारी अभियोजक का काम तब शुरू होता है, जब पुलिस ने अपनी जांच समाप्त कर कोर्ट में आरोपी के खिलाफ चार्ज शीट दायर की हो। सरकारी वकील से अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्ष रूप से कार्य करे और मामले के सभी तथ्यों, दस्तावेजों, और साक्ष्य को प्रस्तुत करे। ताकि सही निर्णय पर पहुंचने में अदालत की सहायता की जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्लीडर (Pleader)
अगर एडवोकेट प्राइवेट पक्ष की तरफ से कोर्ट में आता है तो वह प्लीडर बन जाता है। इसे अभिवचन करता भी कहते हैं। प्लीडर दरअसल वह व्यक्ति होता है जो अपने मुवक्किल की ओर से कानून की अदालत में याचिका दायर करता है और उसकी पैरवी करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

महाधिवक्ता (Advocate General)
एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास लॉ (law) की डिग्री है, जिसके पास एडवोकेट होने की क्षमता है और अगर वह राज्य सरकार की तरफ से उनका पक्ष रखने के लिए कोर्ट में आता है तो उसे महाधिवक्ता Advocate General कहा जाता है। भारत में एक एडवोकेट जनरल एक राज्य सरकार का कानूनी सलाहकार होता है। इस पद को भारत के संविधान द्वारा बनाया गया है। प्रत्येक राज्य का राज्यपाल एक ऐसे व्यक्ति को महाधिवक्ता नियुक्त करता है, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए योग्य हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

महान्यायवादी (Attorney General)
अगर कोई व्यक्ति जिसके पास लॉ की डिग्री है, एडवोकेट होने की क्षमता है और अगर वह केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में उनका पक्ष रखने के लिए प्रस्तुत होता है तो वह महान्यायवादी या अटॉर्नी जनरल (Attorney General) बन जाता है। वह देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। उसमें उन योग्यताओं का होना आवश्यक है, जो उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दूसरे शब्दों में कहे तो, उसके लिए आवश्यक है कि वह भारत का नागरिक हो, उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में काम करने का पांच वर्षों का अनुभव हो या किसी उच्च न्यायालय में वकालत का 10 वर्षों का अनुभव हो या राष्ट्रपति के मत अनुसार वह न्यायिक मामलों का योग्य व्यक्ति हो। यहीं आपको बता दें कि महान्यायवादी के कार्यकाल को संविधान द्वारा निशिचत नहीं किया गया है। इसके अलावा संविधान में उसको हटाने को लेकर भी कोई मूल व्यवस्था नहीं दी गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सॉलिसिटर जनरल (Solicitor General)
अगर यही व्यक्ति जिसके पास लॉ की डिग्री है, एडवोकेट होने की क्षमता है और अटॉर्नी जनरल का असिस्टेंट बन जाता है तो उसे सॉलिसिटर जनरल कहा जाता है। वह देश का दूसरा कानूनी अधिकारी होता है। वह अटॉर्नी जनरल की सहायता करता है और सॉलिसिटर जनरल को चार अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल की ओर से सहायता प्रदान की जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

भारत में अटॉर्नी जनरल की तरह, सॉलिसिटर जनरल और विधि अधिकारियों (नियम और शर्तें) नियम, 1972 के संदर्भ में भारत में सॉलिसिटर जनरल सरकार को सलाह देते हैं और उनकी ओर से पेश होते हैं। हालांकि, अटॉर्नी जनरल के पद के विपरीत, जो कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 76 के तहत एक संवैधानिक पद है, सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के पद केवल वैधानिक (statutory) हैं। अपॉइंटमेंट कैबिनेट समिति सॉलिसिटर जनरल की नियुक्ति करती है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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