जानिए भाई दूज पर तिलक का शुभ मुहूर्त, तिलक की विधि, इस त्योहार का महत्व और मान्यताएं
कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यम द्वितीया या भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे यमराज से मुक्ति का पर्व माना जाता है। पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत कल दो नवंबर, 2024 को रात 08 बजकर 21 मिनट पर हो चुकी है। वहीं, इस तिथि का समापन 03 नवंबर, 2024 को हो रहा है। पंचांग के आधार पर इस साल भाई दूज का त्योहार तीन नवंबर 2024, दिन रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 10 मिनट से लेकर दोपहर 03 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तिलक करने का महत्व
तिलक हिंदू धर्म में शुभता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। तिलक माथे पर लगाया जाता है, जो हमारे शरीर का महत्वपूर्ण स्थान है, इसे आज्ञा चक्र भी कहते हैं। इसे दिव्य ऊर्जा का केंद्र माना जाता है, जो व्यक्ति की मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है। यम द्वितीया पर तिलक लगाने से भाई को नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है और उसकी आयु में वृद्धि होती है।
तिलक करने के नियम
-भाई दूज का तिलक शुभ मुहूर्त में करना चाहिए। आमतौर पर यह तिलक सुबह या दोपहर के समय किया जाता है। शुभ मुहूर्त का चयन कर भाई को तिलक करने से इसका प्रभाव और बढ़ जाता है।
-तिलक के लिए हल्दी, चंदन, कुमकुम और अक्षत (चावल) का प्रयोग किया जाता है। चंदन शांति और मानसिक संतुलन का प्रतीक है, हल्दी शुभता और स्वास्थ्य का प्रतीक मानी जाती है, जबकि अक्षत अखंडता और संपूर्णता का प्रतीक होता है।
-तिलक करने के बाद बहनें भाई की आरती उतारती हैं और भगवान से उसकी रक्षा और दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं। आरती के लिए दीपक, कपूर, और फूलों का उपयोग किया जाता है। आरती के समय बहनें भाई के चारों ओर घुमाकर उसे बुरी नजर से बचाने का प्रयास करती हैं।
-तिलक और आरती के बाद बहनें भाई को मिठाई खिलाती हैं और भोजन करवाती हैं। यह भी यमराज के वरदान का हिस्सा है। बहन द्वारा दिए गए भोजन को ग्रहण करने से भाई के जीवन में सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य बना रहता है।
-तिलक के दौरान भगवान यमराज और यमुनाजी का ध्यान करें और उनसे भाई की रक्षा की कामना करें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तिलक करने की विधि
-कहा जाता है कि भाई दूज के दिन यम अपनी बहन यमुना के घर भोजन करने गए थे। ऐसे में भाईयों को अपनी बहन के ससुराल जाना चाहिए।
-वहीं कुंवारी लड़कियां घर पर ही भाई का तिलक करें।
-भाई दूज के दिन सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करते हुए पूजा करें।
-वहीं भाई का तिलक करने के लिए पहले थाली तैयार करें उसमें रोली, अक्षत और गोला रखें।
-तत्पश्चात भाई का तिलक करें और नारियल का गोला भाई को दें।
-फिर प्रेमपूर्वक भाई को मनपसंद का भोजन करवाएं।
-उसके बाद भाई अपनी बहन से आशीर्वाद लें और उन्हें भेंट स्वरूप कुछ उपहार जरूर दें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भाई दूज का महत्व
भाई दूज के पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि यह पर्व भाइयों और बहनों के बीच के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। भाई दूज पर बहनें अपने भाई के माथे पर हल्दी और रोली का तिलक लगाती हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि भाई बहन यमुना नदी के किनारे बैठकर भोजन करते हैं तो जीवन में समृद्धि आती है। इस दिन भाई को तिलक करने से उंहें अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तिलक करते समय ध्यान रखें ये बातें
भाई दूज के दिन बहनें तिलक करते समय भाई का मुंह उत्तर या उत्तर-पश्चिम में से किसी एक दिशा में होना चाहिए और बहन का मुख उत्तर-पूर्व या पूर्व में होना चाहिए।
नोटः यह समाचार धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भाई दूज के दिन भूलकर भी भाई-बहन न करें ये काम
-भाई दूज के दिन किसी भी समय तिलक न करें। इस दिन शुभ मुहूर्त का ध्यान अवश्य रखें।
-इस दिन भाई और बहन दोनों ही काले रंग के वस्त्र न पहनें।
-भाई को तिलक करने तक बहनों को कुछ खाना-पीना नहीं चाहिए।
-भाई दूज के दिन भाई-बहन को एक-दूसरे से झूठ नहीं बोलना चाहिए।
-इस दिन मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से यम के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भाई दूर है तो बहनें ऐसे करें पूजा
-अगर भाई दूज के दिन भाई-बहन दूर हैं तो बहनें सूर्योदय से पहले स्नान कर लें।
-आपके जितने भी भाई आपसे दूर हैं उतनी संख्या में नारियल के गोले लेकर आएं।
-फिर चौकी पर पीले रंग के वस्त्र को चढ़ाकर वहां पर उन गोलों को स्थापित कर दें। फूल के ऊपर चावल रखकर उस पर गोले को रख दें।
-बाद में गोले को गंगाजल से स्नान कराकर रोली व चावल से तिलक करें।
-पूजा के बाद मिठाई का भोग लगाएं। बाद में उन नारियल के गोलों की आरती उतारें।
-आरती के बाद उन्हें पीले रंग के कपड़े से ढक कर शाम तक छोड़ दें।
-पूजा के बाद अपने भाई की लंबी आयु और कष्टों से मुक्ति के लिए यमराज से प्रार्थना करें।
-अगले दिन नारियल के उन गोलों को पूजा स्थल से उठाकर अपने पास सुरक्षित रख लें।
-अगर संभव हो तो गोलों को भाई के पास भेज दें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भाई दूज की कथा
सूर्य भगवान की पत्नी का नाम संध्या देवी था, इनकी दो संतानें, पुत्र यमराज था कन्या यमुना थी। संज्ञा रानी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बनकर रहने लगी। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से अश्विनी कुमारों का भी जन्म बताया जाता है जो देवताओं के वैद्य (भेषज) माने जाते हैं। इधर छाया का यम तथा यमुना से व्यवहार खराब होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी बसाई। यमपुरी में पापियों को दण्ड देने का काम संपादित करते भाई को देखकर यमुनाजी गौ लोक चली आई तो उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना को बहुत खोजवाया, मगर मिल न सकीं। फिर स्वयं ही गोलोक गए जहां विश्राम घाट पर यमुनाजी से भेंट हुई। भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष विभोर हो स्वागत सत्कार के साथ भोजन करवाया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इससे प्रसन्न हो यम ने वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा- ‘हे भैया! मैं आपसे यह वरदान मांगना चाहती हूं कि मेरे जल में स्नान करने वाले नर-नारी यमपुरी न जाएं? प्रश्न बड़ा कठिन था यम के ऐसा वर देने से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त जाता अतः भाई को असमंजस में देखकर यमुना बोली- आप चिन्ता न करें मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करें वह तुम्हारे लोक न जाएं।’ इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया इस तिथि को जो सज्जन बहन के घर भोजन नहीं करेंगे उन्हें मैं बांधकर यमपुरी को ले जाऊंगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग प्राप्त होगा। तभी से भाई-बहन के रिश्ते का यह त्योहार मनाया जाने लगा।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।