जानिए बागेश्वर जिले के दर्शनीय और पर्यटन स्थलों के बारे में, जहां प्रकृति की गोद में खुद को भूल जाएंगे आप

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बागेश्वर जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल 2246 वर्ग किलोमीटर है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 2,59,898 है। अल्मोड़ा जिले से विभक्त कर बागेश्वर को अलग जिले का स्वरूप सन 1996 में दिया गया। यह अल्मोड़ा से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पूर्व में कत्यूर परगने के अन्तर्गत आता था। यहां आपको बागेश्वर जिले के दर्शनीय और पर्यटन स्थलों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
इसलिए पड़ा था बागेश्वर नाम
बागेश्वर नाम का प्राचीन शिव मंदिर कत्यूर राजाओं ने बनवाया था। पुराने लोग तो कहते हैं बागेश्वर स्वयम्भू देवता है, अर्थात् स्वयं प्रकट हुए। किसी के द्वारा स्थापित नहीं किये गये। इस मंदिर के द्वार पर एक पत्थर है, जिसमें कत्यूरी राजाओं की आठ पीढ़ी की वंशावली खुदी हुई हैं। चंडीश ने शिव के रहने के लिए यहाँ पर वाराणसी क्षेत्र बनाया। ज्यों ही महादेव व पार्वती यहाँ आये, आकाशवाणी में शिव की प्रशंसा हुई। इसलिए यह स्थान बागेश्वर (वाक्-ईश्वर = बागेश्वर) कहलाया।
दर्शनीय स्थल सोमेश्वर
कौसानी से 19 किलोमीटर की दूरी पर सोमेश्वर है। यहां राजा सोमचन्द द्वारा निर्मित शिव का भव्य मंदिर है। मंदिर कत्यूरी कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
कौसानी
अल्मोड़ा से 52 किलोमीटर की दूरी पर एक शान्त एवं प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर स्थली है। यहाँ फलों के वृक्ष बहुतायत में हैं। मोटर मार्ग के ऊपरी ओर तथा निचले ढाल पर चीड़ के गगनचुम्बी वृक्ष आकाश को थामे हुए से दिखते हैं। 6200 फीट की ऊँचाई पर स्थित कौसानी हिमाच्छाछित पर्वतों के नयनाभिराम दृश्यों का अवलोकन करने के लिए एक उपयुक्त स्थान है।
कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मभूमि
कौसानी हिन्दी के सुविख्यात कवि सुमित्रानन्दन पंत की जन्म भूमि है। स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस तथा पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। कौसानी के समीपस्थ पर्वत पर अनाशक्ति आश्रम हैं, जहाँ 1929 में महात्मा गाँधी आकर ठहरे थे। यह आश्रम समूचे क्षेत्र का दर्शनीय स्थल है। कौसानी के बातावरण से महात्मा गाँधी में एक ऐसी आत्मशक्ति का विकास हुआ कि उन्होंने भगवद्गीता के उपदेशों में अपने विचारों को मिश्रित कर लिपिबद्ध कर डाला। सूर्योदय का दृश्य कल्पना लोक में खो जाने का सदैव से आमंत्रण देता आ रहा है। अंग्रेज आयुक्त सर रामसे ने यहाँ चाय के बाग विकसित किये। अंग्रेज ने प्रथम विश्व युद्ध में शौर्य प्रर्दशन करने वालों को यहाँ बसाया था। कोसानी को भारत का मिनी स्विटजरलैंड भी कहा जाता है।
कपकोट
यह सरयू नदी के किनारे स्थित है। पिण्डारी ग्लेशियर जाने वाले पर्यटकों के लिए यह एक उत्तर विश्राम स्थल है।
बैजनाथ
यह अल्मोड़ा से 69 किलोमीटर और गरूड़ से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक रमणीक स्थान है। यहाँ पर विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर हैं। पत्थर पर तराशी गयी मूर्तियाँ, मूर्ति कला के विकसित स्वरूप को उजागर करती हैं।
पिण्डारी ग्लेशियर
यह ग्लेशियर 12606 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह बागेश्वर जिले के दानपुर क्षेत्र में स्थित है। इसके पार्श्व में नन्दादेवी पर्वत है। हर बार पर्यटकों को एक नये अनुभव और अनिवर्चनीय आनन्द की अनुभूति कराने वाले इस ग्लेशियर में प्रथम बार पर्यटक जिन आनन्दमय क्षणों की स्मृति लेकर लौटता है, वही विचार उसे पुन: इस ग्लेशियर तक आने के लिए उद्वेलित करते रहते हैं।
पिण्डारी ग्लेशियर की यात्रा के लिए ग्रीष्म में मई-जून व शीतकाल में सितम्बर-अक्टूबर का महीना उत्तम माना गया है। सितम्बर-अक्टूबर के माह में जहाँ सर्दियाँ अपने शैशव काल में होती हैं वहीं आकाश साफ रहता है। इससे प्राकृतिक दृश्यावलोकन का पूरा पूरा आनन्द उठाया जा सकता है।
सत्रहवीं शताब्दी का है शिव मंदिर
मई-जून के माह में अकस्मात वर्षा की संभावना बनी रहती है। इल कारण यात्रा में व्यवधान पैदा हो सकता है। बागेश्वर, पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा का प्रथम कैम्प है। जहाँ कुमाऊँ मण्डल विकास निगम के सौजन्य से यात्रा का सभी आवश्यक समान उपलब्ध कराया जाता है। सरयू तथा गोमती नदी के संगम पर बसा यह जिला कुमाऊँ के चन्द राजाओं द्वारा सत्रहवीं शताब्दी में निर्मित शिवमंदिर के कारण विख्यात है।
रमणीक दिखता है यहां से नजारा
बागेश्वर से यात्रा सम्बन्धी समस्त औपचारिकतायें पूरी कर, दिन में सौंग के लिए प्रस्थान करने पर सांयकाल तक मोटर मार्ग द्वारा साँग पहुँचा जा सकता है। यह मोटर मार्ग का अन्तिम स्टेशन है। बागेश्वर से साँग की दूरी लगभग चालीस किलोमीटर है, परन्तु मार्ग कच्चा होने से समय अधिक लगता है। सौंग से तीन किलोमीटर की दूरी
लोहारखेत में ही रात्रि विश्राम का स्थान है। 5775 फीट की ऊँचाई पर स्थित लोहारखेत डाकबंगले से गाँव आस-पास का दृश्य अति सुन्दर एवं रमणीक दिखता है। दूर नीचे बहती हुई सरयू नदी व दूसरे सिरे पर विशालकाय पहाड़ दृष्टिगोचर होते हैं।
आगे है कठिन डगर
लोहारखेत से प्रात: ही प्रस्थान कर सांयकाल तक 19 किलोमीटर की दूरी तय कर खाती पहुंचा जा सकता है। इस मार्ग पर धाकुड़ी तक का मार्ग, जो लोहारखेत से ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर है, एकदम चढ़ाई वाला है तथा यात्रा का सबसे कठिन हिस्सा भी है। थाकुड़ी-विनायकधार से हिमालय के विराट स्वरूप के दर्शन होते हैं। इसके पूर्व
में है नन्दाकोट व पश्चिम में मैकतोली चोटियाँ। धाकुड़ी की ऊँचाई 8910 फीट है, यहीं पर सार्वजनिक निर्माण विभाग का डाकबंगला व कुमाऊँ मण्डल विकास निगम का आवास गृह भी है। दिन का भोजन व विश्राम कर खाती के लिए प्रस्थान करना ही उचित रहता है।
पिंडारी मार्ग का अंतिम गांव है खाती
धाकुड़ी से खाती की दूरी आठ किलोमीटर है तथा रास्ता लगभग ढलानपूर्ण है। सांयकाल खाती जो कि 7239 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, रात्रि भोजन व विश्राम का समुचित प्रबन्ध संजोये हुए है। यह पिण्डारी के मार्ग का अन्तिम गाँव है। यहीं से सुन्दरहूंगा हिमनद हेतु रास्ता विभक्त हो जाता है। खाती से प्रात:काल प्रस्थान करते ही यात्रा मार्ग घने जंगलों में प्रवेश करता है।
मानो देवलोक में कर गए प्रवेश
इस जंगल में कई दुर्लभ प्रजाति की वनस्पतियाँ देखने को मिलती हैं। जंगल से गुजरते हुए प्रतीत होता है मानो किसी देवलोक में विचरण कर रहे हैं। नीचे पिण्डर का आवेग बरबस ही ध्यान खींचता रहता है। मार्ग में छोटे बड़े झरने भी दिख पड़ते हैं, जो पिण्डर नदी में मिलने को व्याकुल रहते हैं। उचित चाल से चलने पर प्रात: दस बजे तक द्वाली पहुंचा जा सकता है। हाली, खाती से ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर तथा 7425 फीट ऊँचाई पर हैं। यहाँ विश्राम के लिए डाक बंगला भी है। द्वाली से कफनी ग्लेशियर को भी रास्ता अलग हो जाता है, जो वहाँ से बारह किलोमीटर की दूरी पर है। इस ग्लेशियर से निकलने वाली नदी द्वाली जाकर पिण्डर में मिल जाती है। द्वाली में दिन का भोजन कर फरकिया के लिए प्रस्थान करना बुद्धिमता है।
हरियाली के नाम पर मखमली घास, आक्सीजन की कमी
द्वाली व फुरकिया के मध्य की दूरी पाँच किलोमीटर है और उसकी ऊँचाई 10725 फीट हैं। सांयकाल फुरकिया पहुँचने पर रात्रि भोजन व विश्राम कर प्रात:काल की प्रथम बेला में ही चांदनी रात का आनन्द लेते हुए जीरो प्वाइन्ट की ओर अग्रसर होना उचित रहता है। फुरकिया व जीरो प्वाइन्ट की दूरी सात किलोमीटर की है। जीरो प्वाइन्ट की ओर जैसे-जैसे कदम बढ़ते हैं वनस्पति लुप्त होती दिखती है। अगर हरियाली के नाम पर कुछ शेष रह जाता है तो पैरों तले मखमली घास। आक्सीजन की कमी को भी शरीर महसूस करने लगता है।
मतौली गुफाएं, जहां यात्री करते हैं रात्रि विश्राम
जीरो प्वाइन्ट पहुँचने से पूर्व समय समय पर आये पर्यटकों द्वारा निर्मित गुफायें भी मिलती हैं, जिसे मतौली गुफायें कहते हैं। प्रायः पर्यटक रात्रि विश्राम इन्हीं गुफाओं में कर प्रकृति के अधिकाधिक सामीप्य का आनन्द उठाते हैं। सूर्योदय तक जीरो प्वाइन्ट पहुँचने पर ग्लेशियर का मनोरम दृश्य स्पष्ट रूप से दिख पड़ता है। जीरो प्वाइन्ट की
ऊँचाई 12606 फीट है।
यहां प्रकृति का दिखता है अद्भुत नजारा
ग्लेशियर के दृश्यावलोकन का यही उत्तम व अन्तिम स्थान है। इसके मुहाने से पिण्डर नदी निकलती हुई दिखती है। यहाँ पर नदी का उद्गम छोटा सा है। इसके ठीक ऊपर ट्रेल पास इसमें बेतरतीब बिखरी हुई ताजा बर्फ एक चादर बिछायी सी लगती है। ट्रेलपास के ठीक दायीं और छांगछू चोटी व बायीं ओर नन्दाखाट है। नन्दाखाट का आकार अपने नाम के अनुरूप एक पलंग की तरह है तथा ऐसी मान्यता है कि आराध्य देवी नन्दा यहाँ विश्राम करती है। नन्दाखाट के साथ संलग्न हैं, प्यालीद्वार व वल्जूरी चोटियाँ। यहाँ पहुँचकर यह आभास भी होता है। कि जो प्रकृति के इन मनोरम दृश्यों का अवलोकन नहीं कर पाते, वे कितने विवश हैं।
लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
सभी फोटोः साभार सोशल मीडिया
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत ही अद्भुत जानकारी दी है आपने मन ललक गया इन स्थानों के दर्शन करने को आपका बहुत-बहुत धन्यवाद