करवाचौथ आज, सरकार का महिलाओं को तोहफा, जानिए कब होगा चांद का दीदार, त्योहार का महत्व, पूजा विधि, व्रत कथाएं
पति की लंबी उम्र की कामना को लेकर करवा चौथ का व्रत सुहागन महिलाएं करती हैं। करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस बार करवा चौथ का व्रत आज बुधवार एक नवंबर को रखा जारहा है। इस दिन महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना कर अपनी पति की लंबी आयु का वरदान मांगती है। इस बार करवा चौथ पर बहुत ही शुभ योग बन रहा है। ऐसे में शुभ मुहूर्त में पूजा करने से उत्तम फल की प्राप्ति होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उत्तराखंड सरकार ने दिया तोहफा
उत्तराखंड में करवाचौथ के मौके पर सरकार ने महिलाओं को तोहफा दिया है। सचिव विनोद कुमार सुमन की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, राज्यपाल ने राज्य के अधीन शासकीय, अशासकीय कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, शासकीय प्रतिष्ठानों में कार्यरत महिला कार्मकों को प्रदेश भर में करवाचौथ पर्व के लिए एक नवंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की स्वीकृति प्रदान की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चतुर्थी तिथि का आरंभ 31 अक्टूबर तो रात में 9 बजकर 31 मिनट पर होगा और 1 नवंबर को रात में 9 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। उदय तिथि में चतुर्थी 1 नवंबर को है इसलिए करवा चौथ का व्रत बुधवार 1 नवंबर को ही रखा जाएगा। इस दिन शिव योग, सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। करवा चौथ पर पूजा के लिए तीन शुभ मुहूर्त हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तीन समय होती है पूजा
बता दें कि करवाचौथ पर तीन समय की पूजा की जाती है। सुबह के पूजन के लिए 1 नवंबर को शुभ मुहूर्त 7 बजकर 55 मिनट से लेकर 9 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। इस दौरान आप अमृत चौघड़िया में सुबह की पूजा कर सकते हैं। इसके बाद 10 बजकर 41 मिनट से लेकर 12 बजकर 4 मिनट तक शुभ चौघड़िया में पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा। शाम के लिए पूजा के लिए लााभ चौघड़िया 4 बजकर 13 मिनट से शाम में 5 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। इस दौरान पूजन करना लाभप्रद रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
करवा चौथ पर चांद निकलने का समय
करवा चौथ पर महिलाओं को चांद का दीदार करने के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है। सभी शहरों में अलग अलग समय पर चांद दिखाई देता है। इस बाद चंद्रोदय का समय 8 बजकर 15 मिनट पर होगा। दिल्ली में इस समय चांद दिखाई देगा। जबकि बाकी शहरों में अलग अलग समय पर चांद निकलेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
करवा चौथ का महत्व
पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने भी करवाचौथ का व्रत शिवजी के लिए किया था। इसके अलावा महाभारत काल में द्रौपदी ने भी पांडवों को संकट से बचाने के लिए करवा चौथ का व्रत किया था। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति पत्नी का राशित् मजबूत होता है दोनों के बीच प्रेम बढ़ता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
करवा चौथ की ऐसे करें पूजा
करवा चौथ वाले दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि कर सास या जेठानी के जरिए दी सरगी का सेवन करें। सूर्योदय से पूर्व ही सरगी का सेवन किया जाता है इसलिए समय का ध्यान रखें। फिर निर्जल व्रत का संकल्प लें। दिनभर में पूजा की पूरी तैयारी कर लें। शाम को सोलह श्रृंगार कर शुभ मुहूर्त में पूरे विधि विधान से शिव परिवार और करवा माता की पूजा करें फिर व्रत की कथा सुनें। चंद्रोदय के समय उत्तर पश्चिम दिशा में मुख कर चंद्रमा की पूजा करें। करवे से अर्घ्य दें और फिर छलनी से चांद को देखने के बाद पति को देखें। अब दूसरे करवे से पहले पति को पानी पिलाएं और फिर पति के हाथ से उसी करवे से जल पीएं। इस तरह करवा चौथ की पूजा पूर्ण होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
करवा चौथ व्रत में होती है इनकी पूजा
करवा चौथ व्रत में मां पार्वती, गणेश और चंद्र देव की पूजा की जाती है। व्रती इस देवी-देवताओं की पूजा कर उनसे पति की दीर्घायु की प्रर्थना करती हैं। साथ ही वैवाहिक जीवन में खुशहाली की भी प्रार्थना करती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भूलकर भी दंपती ना करें ये दो काम
धर्म शास्त्र के जानकारों की मानें तो करवा चौथ व्रत के दिन पति-पत्नी को शारीरिक संबंध नहीं बनना चाहिए। इस दिन मन में ऐसे विचारों को आने से भी व्रत भंग हो जाता है। परिणामस्वरूप करवा चौथ के निर्जला व्रत का कोई फल नहीं मिलता है। इसके अलावा इस दिन किसी के प्रति बुरे विचार भी नहीं लाने चाहिए। इस मन में गलत विचार लाने से व्रत की पवित्रता खत्म हो जाती है। ऐसे में हर करवा चौथ के व्रती को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मान्यता है कि व्रत के दौरान अगर दंपती शारीरिक संबंध बानते हैं तो वे पाप के भागीदार बनते है। इसके अलावा उन्हें व्रत का पुण्य फल प्राप्त नहीं होता है। इसी वजह से धर्म शास्त्रों के जानकार किसी भी व्रत के दौरान पति-पत्नी को इस कार्य से दूरी बनाने की सलाह देते हैं। साथ ही करवा चौथ व्रत में दिन में सोना वर्जित है। ऐसे में अपना पूरा समय भगवान की भक्ति में लगाएं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे शुरू हुई करवा चौथ व्रत की परंपरा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच युद्ध शुरू हो गया। जंग के मैदान में दानव देवताओं पर हावी हो गए थे। युद्ध में सभी देवताओं को संकट में देख उनकी पत्नियां विचलित होने लगीं। पति के प्राणों की रक्षा के उपाय हेतु सभी स्त्रियां ब्रह्मदेव के पास पहुंची। ब्रह्मा जी ने देवताओं की पत्नियों से करवा चौथ व्रत करने को कहा। ब्रह्मदेव बोले कि इस व्रत के प्रभाव से देवताओं पर कोई आंच नहीं आएगी और युद्ध में वह जीत प्राप्त करेंगे। ब्रह्मा जी की बात सुनकर सभी ने कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया, जिसके परिणाम स्वरूप करवा माता ने देवताओं के प्राणों की रक्षा की और वह युद्घ में विजय हुए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
महाभारत काल में करवा चौथ व्रत
महाभारत काल में भी इस व्रत का महत्व मिलता है। एक प्रसंग के अनुसार जब पांडवों पर संकट के बादल मंडराए थे तो द्रोपदी ने श्रीकृष्ण द्वारा बताए करवा चौथ व्रत की पूजा की थी। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को संकटों से छुटकारा मिला था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पढ़िए व्रत की प्रथम कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
द्वितीय कथा
इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया। परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तृतीय कथा
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहाँ एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चौथी कथा
एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए। इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं। उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की। कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था। पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है। पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया। इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया। एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी। तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने भोजन ग्रहण किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहाँ से रानी इंद्राणी निकल रही थीं। उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।