जॉली एलएलबी के जज सौरभ शुक्ला बाइक पर बैठकर घूमते आए नजर, तलाश की फिल्म शूटिंग की लोकेशन

शूटिंग के लिए वह चंद्र राजाओं के महल कलेक्ट्रेट यानि मल्ला महल को भी देखने गए। शनिवार को यहां पहुंचे सौरभ ने यह बात कही है। यही नहीं अल्मोड़ा के अंग्रेजों को जमाने के राइंका व डायट तथा पुराने बाजार को भी शूटिंग में शामिल किया जाएगा।
अल्मोड़ा फोर्ट ट्रस्ट के सदस्य जयमित्र बिष्ट ने बताया कि सौरभ शुक्ला अपने साथियों के साथ पहाड़ में लोकेशन की तलाश में पहुंचे हैं। उन्होंने इसके लिए जानकारी चाही थी। इसको देखते हुए उनको ऐतिहासिक मल्ला महल का दौरा करवाया गया। जहां जिलाधिकारी नितिन भदौरिया से भी उनकी मुलाकात हुई। सौरभ को लोकेशन पसंद आई है।
इस दौरान स्थानीय वरिष्ठ छायाकार जयमित्र बिष्ट के साथ बाइक से उन्होंने कई स्थानों पर फिल्म शूटिंग के लिए लोकेशन देखी। दौरा करने के बाद वह अपनी टीम के साथ रानीखेत रवाना हुए। विक्रम बिष्ट समेत कैमरामैन और टीम के अन्य सदस्यों के साथ वह अल्मोड़ा से रानीखेत के लिए निकले। डीएम से मुलाकात कर उन्होंने शूटिंग करने की बात रखी। इस पर जिलाधिकारी ने प्रशासन की ओर से पूरा सहयोग करने का आश्वासन दिया।
बता दें कि कलाकार सौरभ शुक्ल पीके, जॉली एलएलबी, सत्या, बर्फी, किक जैसी मशहूर फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं। कई फिल्मों में बेहतरीन कलाकारी का अभियान करने पर उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
उन्होंने कहा कि इससे खूबसूरत स्थल और कहीं नहीं है। सौरभ अल्मोड़ा नगर में अपनी फिल्म के दृश्य फिल्माने के लिए सितंबर में आएंगे। उनका यह दौरा इसी सिलसिले में रहा। उन्होंने कलक्ट्रेट स्थित मल्ला महल के साथ ही मुख्य बाजार में लोकेशन तलाशी। बाद में वह धार्मिक पर्यटन के मशहूर कसारदेवी भी पहुंचे। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की नैसर्गिक खूबसूरती देख यहां फिल्मांकन के लिए तमाम फिल्म निर्माता मन बना रहे हैं।
बचपन से था फिल्मों का शौक, माह में देखते थे आठ फिल्में
फिल्मों में आने की बात पर सौरभ बताते हैं सिनेमा का शौक हमें बचपन से ही लग गया था। पिता जी शत्रुघ्न शुक्ला आगरा घराने के मशहूर गायक और मां जोगमाया शुक्ला तबला वादक थीं। दोनों को फिल्म देखने का बड़ा शौक था। हम चार लोग, मैं, मेरा बड़ा भाई, मां और बाबा, हर संडे को सुबह मॉर्निंग शो में अंग्रेजी फिल्म जरूर देखते थे। फिर घर आकर खाना वगैरह खाकर शाम को छह बजे एक हिंदी फिल्म का शो भी जरूर देखते थे। ये हमारा तय साप्ताहिक कार्यक्रम था। महीने में आठ फिल्में तो हम देखते ही देखते थे। फिल्में देखते ही देखते अभिनय का शुरूर चढ़ गया।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।