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December 16, 2024

कभी नहीं नहाते हैं जैन साधु और साध्वियां, फिर भी रहते हैं साफ, सोते हैं जमीन पर, नोच डालते हैं बाल और दाढ़ी, जानिए कठिन जीवन

जैन धर्म आचरण और आहार की शुद्धता का सख्ती से पालन करता है। इस धर्म के साधु-साध्वी तपस्वी जीवन जीते हैं। साथ ही उनकी दिनचर्चा बहुत कठिन होती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि साधु और साध्वियां दीक्षा लेने के बाद वह कभी स्नान नहीं करते। यही नहीं, वे जमीन पर ही सोते हैं। ना ही वे किसी सुविधाजनक संसाधनों का उपयोग करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जैन धर्म में हैं दो संप्रदाय
जैन धर्म में दो संप्रदाय हैं। श्वेतांबर और दिगंबर। दोनों संप्रदायों के साधु और साध्वी दीक्षा के बाद एक तपस्वी जीवन जीते हैं। वे बिना किसी सामग्री और सुविधाजनक संसाधनों का उपयोग किए वास्तव में एक गरिमापूर्ण और अनुशासित जीवन जीते हैं। श्वेतांबर साधु और साध्वी अपने शरीर पर पतले सूती कपड़े ही पहनते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दिगंबर संत नहीं पहनते हैं वस्त्र
दिगंबर संत वस्त्र भी नहीं पहनते हैं। इस जैन संप्रदाय की साध्वियां सफेद वस्त्रों को साड़ी के रूप में पहनती हैं। कड़ाके की ठंड में वे ऐसे ही कपड़े पहनती हैं। दिव्य संत कड़ाके की ठंड में भी कोई वस्त्र नहीं पहनते। वहीं, श्वेतांबर साधु और साध्वी अपने साथ ले जाने वाली 14 चीजों में से एक कंबल रखते हैं। जो बहुत पतला होता है, इसे वे सोते समय ही पहनते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मौसम की परवाह बगैर सोते हैं जमीन पर
ये सभी साधु और साध्वियां मौसम की परवाह किए बिना जमीन पर सोते हैं। यह जमीन नंगी या लकड़ी की हो सकती है। वे मैट पर भी सो सकते हैं। वे सोने के लिए सूखी घास का भी इस्तेमाल करते हैं। हालाँकि, ये भिक्षु और साध्वियां बहुत कम सोते हैं। कहा जाता है कि दिगंबर साधु करवट छोड़कर बहुत कम सोते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कभी नहीं करते स्नान
यह बात आपको अचंभित कर सकती है, लेकिन यह सच है कि दीक्षा के बाद जैन मुनि और साध्वियां कभी स्नान नहीं करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर वह नहाएंगे तो वे सूक्ष्मजीव के जीवन को खतरे में डाल देंगे। इसी वजह से वे नहाते नहीं हैं। हमेशा अपने मुंह पर कपड़ा बांध लेते हैं। ताकि कोई भी कीटाणु उनके मुंह से उनके शरीर में प्रवेश न कर सकें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बताए गए दो तरह से स्नान
कहा जाता है कि स्नान मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। बाह्य और आंतरिक। सामान्य लोग आमतौर पर पानी से नहाते हैं। इसे वाह्या स्नान कहते हैं। वहीं, जैन ऋषि और साध्वी आंतरिक स्नान यानी मन और विचारों की शुद्धि को अपनाते हैं। ऐसा स्नान ध्यान में बैठकर करते हैं। उनके स्नान का अर्थ है आत्मा की शुद्धि। वह जीवन भर इसका पालन करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गीले कपड़े से पोंछ लेते हैं शरीर को
हाँ, भिक्षु और भिक्षुणियाँ एक गीला कपड़ा अवश्य लेते हैं। कुछ दिनों के अंतराल के बाद उससे अपने शरीर को पोंछ लेते हैं। इस वजह से उनका शरीर हमेशा तरोताजा और पवित्र महसूस होता है। जैन मुनि सभी प्रकार के भौतिक साधनों का त्याग कर अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करते हैं। विदेशों में रहने वाले जैन मुनि और साध्वी भी इसी तरह का कठिन जीवन जीते हैं। उन्हें जैन समुदाय द्वारा आश्रय और भोजन प्रदान किया जाता है। या जैन धर्म से जुड़े मंदिरों से जुड़े मठों में रहते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सभी दिगम्बर जैन संत फॉलो करते हैं ये रुटीन
– दिगम्बर जैन संत के रुटीन को करीब से देखने वाले नई दिल्ली के जैन स्कॉलर ने बताया कि जैन संत नहाते नहीं हैं।
– दातून, टूथपेस्ट, लाल दंत मंजन और गुलमंजन भी नहीं करते।
– जमीन पर सोते हैं।
– दिन में सिर्फ एक बार खाना खाते हैं। खड़े-खड़े पानी पीते हैं। खाने के दौरान ही पानी भी पी लेते हैं। 32 निवाले में खाना खत्म कर देते हैं।
– चलते वक्त अगला पैर उठाने से पहले चार हाथ जमीन देखते हैं। जिससे कहीं कोई जीव पैर के नीचे न आ जाए।
– अपने साथ कमंडल, लोटा, शुद्धि के लिए रखते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सख्त होती है दीक्षा
जैन समुदाय में मुनि बनने की दीक्षा काफी सख्‍त होती है। उन्हें मुनि बनने से पहले और बाद में जीवन को काफी कठोरता के साथ बिताना होता है। जहां कड़ाके की सर्दी में आम व्‍यक्ति गर्म कपड़े, मोजे और जूते पहनकर रहते हैं, वहीं जैन मुनि बिना कपड़ों के ही आराम से रहते हैं। वे भीषण और सर्दी में भी नंगे पैर ही घूमते हैं। यही नहीं, वे हमेशा जमीन पर ही सोते हैं। जहां आम लोग अपने बालों को छोटा रखने के लिए कैंची से कटवाते हैं। इसके उलट जैन मुनि हर दो महीने या चार महीने में अपने बालों को हाथों से उखड़वाते हैं। इसमें कई बार खून भी निकलने लगता है। इसे केशलोंच कहा जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

केशलोंच के पीछे दिया जाने वाला तर्क
जैन मुनि एक केशलोंच के बाद कम से कम दो महीने और ज्‍यादा से ज्‍यादा चार महीने में दूसरा केशलोंच करते हैं। ये उनकी तपस्‍या का अहम हिस्‍सा है। जैन मुनि शरीर की सुंदरता को नष्‍ट करने और अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए केशलोंच करते हैं। वे बालों को उखाड़ते समय यह भावना रखते हैं कि इस कष्‍ट के साथ उनके पाप कर्म भी निकल रहे हैं। इससे संयम की परीक्षा और पालन भी होता है। जैन मुनि केशलोंच वाले दिन उपवास रखते हैं। उनका मानना है कि केशों के लुंचन से बालों में होने वाले जीवों को हुए नुकसान और उनके कष्‍ट का प्रायश्चित हो सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसलिए वस्त्र नहीं पहनते जैन मुनि
दिगंबर जैन मुनि बिना वस्त्र के रहते हैं। जैन मुनियों का मानना होता है कि जब हम बिना कपड़ों के जन्‍मे हैं, तो बाकी जीवन हमें वस्‍त्रों की आवश्‍यकता क्‍यों है। वस्त्र लोगों के विकारों को ढंकने के लिए पहने जाते हैं। जैन मुनियों को विकारों से परे माना जाता है। इसलिए माना जाता है कि उन्‍हें वस्‍त्र धारण करने की जरूरत ही नहीं है। नवजात शिशु की ही तरह जैन मुनि भी विकारों से परे होते हैं। इसलिए उन्हें भी वस्त्र पहनने की कोई जरूरत नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वस्त्र से साधना में आती है रुकावट
दूसरा बड़ा कारण यह भी बताया जाता है कि वस्त्र पहनने से जैन मुनियों की साधना में रुकावटें आती हैं। दरअसल, वस्‍त्र पहनने के लिए उन्‍हें किसी से मांगने होंगे। फिर पहनने पर उन्‍हें साफ भी करना पड़ेगा। साफ करने पर जीव हिंसा हो सकती है। इससे अहिंसा का पालन करने की उनकी तपस्या भंग होगी। यही नहीं, वस्‍त्रों के प्रति उनका मोह बढ़ेगा और उनके परिग्रह त्‍याग में बाधा पैदा होगी। सूक्ष्‍म जीवों की हिंसा से बचने के लिए ही जैन मुनि स्‍नान भी नहीं करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसलिए नहीं पहनते जूते-चप्‍पल
जैन मुनि भीषण गर्मी हो या सर्दी, कपड़ों के अलावा जूते या चप्‍पल भी नहीं पहनते हैं। जैन मुनियों का मानना है कि पहले तो जूते या चप्‍पल बनाने के लिए जीव हिंसा होगी। फिर उनको पहनकर चलने पर भी जीव हिंसा की आशंका बनी रहती है। इससे उनके अहिंसा व्रत के कठोर पालन में बाधा पैदा होगी। साथ ही जूते चप्‍पलों को पहनने के बाद छोड़ने में कष्‍ट होगा। इससे उनके परिग्रह त्‍याग में दिक्‍कत होगी। इसलिए मई जून की भीषण गर्मी में जब नंगे पैर सड़क पर पैर रखने में भी आम आदमी को जलन का कष्‍ट होता है, तब जैन मुनि बिना उफ किए बिना जूते-चप्‍पलों के लंबी लंबी यात्राएं पैदल कर लेते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मुंह-नाक को ढकते का कारण
कई जैन मुनि अपने मुंह और नाक को हमेशा कपड़े से ढंककर रखते हैं। इसका कारण बताया जाता है कि खुले मुंह और नाक से कई तरह के कीटाणु उनके शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। कपड़ा बांधकर रखने से इन कीटाणुओं को जैन मुनियों के शरीर में प्रवेश करने का रास्‍ता नहीं मिलता है। इससे वे कई तरह के शारीरिक विकारों से बचे रहते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सख्त हैं भोजन का नियम
वहीं, शाम होने से पहले ही भोजन करने के नियम का भी जैन मुनि सख्‍ती से पालन करते हैं। जैन मुनियों का मानना है कि सूर्यास्‍त के बाद भोजन करने से शरीर में कई तरह के विकार पैदा हो जाते हैं। इसलिए शाम होने से पहले पहले ही भोजन करना सबसे उत्‍तम होता है। ज्‍यादातर जैन मुनि एक बार ही भोजन ग्रहण करते हैं. इसमें भी उन्‍हें खड़े होकर ही भोजन करना होता है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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