अच्छे समय की प्रतीक्षा से अच्छा है कि समय को अनुकूल बनाने का प्रयास करें, स्वरचित आलेख- डॉ. पुष्पा खण्डूरी
अंग्रेजी में कहावत Never wait for a perfect Moment, just take a moment and Make it perfect. महाराज हरिश्चन्द्र का उदाहरण है कि उन्होंने अपने जीवन में विपरीत परिस्थितियां आने पर चाण्डाल का काम भी स्वीकार किया तथा अपने पुत्र के शवदाह पर अपनी पत्नी से भी कर वसूल करने में हिचकिचाए नहीं। तभी आज भी हम सत्यवादियों में महाराज हरिश्चन्द्र का नाम सबसे पहले लेते हैं। इसी प्रकार भगवान श्री रामचन्द्र जी ने कैकयी द्वारा दिए गए वनवास को स्वीकार कर दानव दलों का समूल नाश किया। लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)तात्पर्य यह है कि परिस्थतियाँ चाहें कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों हमें अपने जीवन में बनाए गए उसूलों और नियमों के अनुरूप उनका मुकाबला करना चाहिए ना कि परिस्थितियों का दास बन कर रहना चाहिए। हमें स्थितप्रज्ञ बन कर अपने मन को स्थिर करना होगा क्योंकि मन जीते जग जीत है। क्योंकि यदि मन ही कमजोर पड़ जाता है तो परिस्थतियाँ समस्या बन जाती है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)
जब मन स्थिर होता है तो परिस्थितियां चुनौती बन जाती है किन्तु यदि मन मजबूत होता है तो परिस्थितियाँ अवसर बन जाती है। संकल्प की दृढ़ता मरुस्थलों में भी उपवन खिला दिया करती हैं। यदि मन ही विवश है तो फिर परिस्थितियां कैसे नियन्त्रण में रह सकती हैं। बैचेन मन सोचता बहुत है तर्क बितर्क के जंजाल में वो फंसता सा चला जाता है और निरन्तर जीता है अतीत में। अपनी परिस्थितियों और दशा का करता रहता है विचार। आकलन। तरस खाता है बस अपनी विवशता और दशा पर। रोता है जार जार, कोसता हुआ अपनी परिस्थितियों को। अपने प्रति सहानुभूति रखने की आकांक्षा से मानों पाना चाहता हो सबका समर्थन। अन्यथा-
सभी पर क्रोध करता है।
बेवश सा छटपटाता है और
तोड़ना चाहता है उस कारा को
जो उसके विचारों की मकड़ी ने स्वयं ही उसके चारों और बुनी थी उसकी निराशा और अकर्मण्यता के मजबूत धागों से ।तब बहुत देर हो चुकी होती है। परिस्थितियाँ चट्टान बन कर उसके सपनों के मार्ग का अवरोध बन चुकी होती हैं । सफलता और असफलता के बीच खाई और भी गहरी हो चुकी होती है ।जिसको पाटना मुश्किल ही नहींअब नामुमकिन सा ही दिखता है। (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसी लिए हमें परिस्थितियों का दास बन कर नहीं रहना हैअपितु परिस्थितियों को अपना दास बना ना होगा तभी भविष्य फिर हमारा ही होगा। अपने आलेख के अन्त में मैं एक स्वरचित कविता प्रस्तुत कर रही हूँ जो मेरे आलेख की पुष्टि कर रही है – (लेख जारी, अगले पैरे में देखिए)
मन जीते जग जीत
मन जो हारे तो जग हार
मन से जीत नहीं आसां
क्योंकि मन के तर्क हजार
मन वश तो फिर जग वश में है
हर परिस्थिति जैसी भी हो ,
वह सुन्दर अवसर हो जाए ।
मन ही अपराधी
मन ही साक्षी
मन ही कचहरी
मन ही मुकदमा
मन ही निर्णय
मन ही निर्णायक
मन ही आत्मा
मन ही ईश्वर भी
मन ही पापी भी,
मन हीपरमेश्वर भी
मन की पहुँच में चाँद सितारे
मीठी नदियाँ,सागर खारे
मन जिसके बस जग उस के बस
जितेन्द्रिय है जिसका भी मन
वही कृष्ण तो बुद्ध वही है
वह ईसा है शुद्ध वही है
गुरु उसी को जग ने माना
मन बस जिसके सही वही है
मन ही आत्मा का दर्पण है
आत्मा कभी भी गलत न होती ।
जो मन आत्मा की सुनता है
इन्द्रियां उसके वश में होती
इन्द्रियां जिनके वश में होती
जग में फतह उन्हीं की होती
जो मन आत्मा का अनुयायी
उस का सारा जग अनुयायी
वही मौहम्मद, वही ईसा है
वही कृष्ण है और गौतम भी
वही कुरान, वही बाइबिल
वही रामायण और गीता भी
जिसने जग में मन जीता है
उसने ही सचमुच जग जीता ॥
स्वरचित आलेख
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।

Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।




