अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस आज, वर्तमान में इसकी प्रासांगिताः लेखराज
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) आज एक मई को मई दिवस यानी अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मना रही है। वर्तमान समय में इसकी कितनी प्रासंगिकता है, इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रख कर इस बार 137 वां मई दिवस को मनाया जा रहा है। क्योंकि जिन मुद्दों को लेकर 137 साल पहले आंदोलन हुआ था। वो परिस्थितियां आज भारत में फिर से पैदा की जा रही हैं। केंद्र की मोदी सरकार और कॉरपोरेट जगत के गठजोड़ से गठजोड़ से ऐसा हो रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
शिकागो से हुआ था आंदोलन का जन्म
आज से 137 वर्ष पूर्व 1886 में शिकागो शहर में मजदूरों ने अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन किया। इनमे काम के घंटे तय करने की मांग प्रमुख मांग थी। इसे लेकर मजदूरों ने हड़ताल की, आंदोलन किया और प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए निहत्थे मजदूरों पर गोलियां बरसा दी। इससे कई मजदूर मारे गए व बड़ी संख्या में घायल हुए। कई मजदूरों को पकड़ कर जेलों में डाल दिया गया। उन पर संगीन मुकदमे चलाये गए और पूर्वाग्रह से ग्रषित न्यायाधीशो ने कई मजदूरों व उनके नेताओ को सार्वजनिक रूप से फाँसी देने की सजा सुनाई। कई मजदूर नेताओं को सार्वजनिक रूप से चौराहों पर फांसी दे दी गई । यह कृत्य इसलिए किया गया कि आगे कोई भी आंदोलन न हो और मजदूरों के अंदर डर पैदा हो। बाद में न्यायाधीशों द्वारा इस तरह की सजा देने पर न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठे और न्यायाधीशों ने अपनी गलती स्वीकार की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हर साल विश्व के मजदूर मनाते हैं मई दिवस
1886 में हुये इस महत्वपूर्ण घटना को पूरा विश्व मजदूर दिवस के रूप में मनाता है और अपनी मांगों को सरकार के सामने रखकर अपनी एकता को प्रदर्शित करता है। उस समय मजदूरों के काम के घंटे बंधे हए नही थे और वह 14-14 घंटे काम करते थे। इससे मजदूरों को आराम नहीं मिलता था। वे अपने परिवार के बच्चो से भी नही मिल पाते थे। क्योकि जब वे काम से घर वापस आते थे, तो बच्चे सो जाया करते थे। इससे मजदूरों के स्वस्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता था। वे कम उम्र में ही गम्भीर बीमारियों से पीड़ित हो जाया करते थे। इससे उनकी असमय मृत्यु होना व कार्यकरने की क्षमता कम हो जाती थी। वे दूसरे दिन काम पर जाने पर उतनी ऊर्जा से कार्य नही कर पाते थे, जिससे पूंजीपतियों को भी नुकसान होता था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आठ घंटे तय किए गए काम के घंटे
इससे सबक लेकर काम के घंटे 8 माने गए। ताकि मजदूरों की काम करने की क्षमता, स्वास्थ्य लंबे समय तक बना रहे। इन काम के घण्टो का बंटवारा किया गया कि 8 घण्टे काम, उसके बाद वह बाकी समय मे अपने बच्चो के साथ रहे। वह कुछ घंटे वह समाज समाज को भी दे। बाकी समय मे आराम करें व मनोरंजन भी करे। इससे उसकी मानसिक स्थिति भी ठीक रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वही परिस्थितियां की गईं फिर से पैदा
आज जब हम 137 वां मई दिवस मना रहे है। हमारे देश भारत सहित कई पूंजीवादी व साम्राज्यवादी देश काम के घण्टे बढ़ा कर 12 घण्टे कर रहे हैं। या कर दिये गए हैं, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान में काम के घण्टे 6 व सप्ताह 6 दिन का होना चाहिए। ताकि मजदूरों में बढ़ रहे तनाव को कम किया जा सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
29 श्रम कानूनों को समाप्त कर चार श्रम संहिताएं घातक
हमारे देश की वर्तमान मोदी सरकार की ओर से सन 2020 में 44 श्रम कानूनों में से 29 प्रभावशाली श्रम कानूनों को समाप्त कर उनके स्थान पर 4 श्रम संहितायें बनाई गई हैं। इन्हें कोरोनाकाल के समय संसद में पास कर दिया गया। इससे पता चलता है कि मोदी सरकार ने करोना की आपदा को अवसर में बदलने का काम किया। ताकि मजदूर विरोध भी न कर सके और सड़कों पर नहीं उतर सकें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
घरों से ही किया श्रमिकों ने विरोध
सीटू ने देश के मजदूरों का सरकार के इस कृत्य का विरोध करने का आह्वान किया और मजदूरों ने आपने – आपने घरों में रहकर भी सरकार का विरोध किया। इसके बावजूद मोदी सरकार ने मजदूरो के भारी विरोध को नजरअंदाज कर दिया। इन श्रम कानूनों को समाप्त करने का काम तो किया, किन्तु आज भी सरकार भारत के मजदूरों के विरोध के चलते इन श्रम संहिताओं को प्रत्यक्ष रूप से लागू नही कर पाई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पूंजीपतियों को मजदूरों के शोषण की खुली छूट
इन श्रम संहिताओं का मकसद पूंजीपतियों को मजदूरों के शोषण की खुली छूट देना है। इससे देश व विदेशी पूंजीपति हमारे देश मे मजदूरों का शोषण व्यापक रूप से कर सके। जिन श्रम कानूनों को हमारे पूर्वजों ने भारी बलिदान दे कर हासिल किये थे, उन्हें मजदूर ऐसे ही नही समाप्त होने देगा। आज जिस तरह से किसानों ने सरकार की ओर से तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर सरकार को उन्हें वापस लेने के लिए मजबूर किया, उसी प्रकार मजदूर भी श्रम कानूनों को वापस बहाल कराने के साथ ही उन्हें ओर मजबूत बनाने के लिए सरकार को विवश करेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सीटू ने तय किया है कि वे इस मजदूर दिवस पर आम मजदूरों के बीच जाकर मजदूर दिवस की आज के दौर में प्रासंगिकता को बताएंगे। उन्हें उनके अधिकारों को बचाने के लिए आंदोलन के लिए प्रेरित करेंगे। ताकि वे मोदी सरकार व आरएसएस के सम्पदायिकता के एजेंडे के आधार पर मजदूरों की एकता तोड़ने के के प्रयासों को सफल नही हो सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आज 1 मई को सभी मजदूर यूनियनें अपने कार्यालयों व कार्य स्थलों पर झंडा रोहण कर शिकागो के शाहिद मजदूरों को श्रद्धांजलि देते हुए मई दिवस के इतिहास के विषय मे बताएंगीं कि आज भी मजदूर दिवस कितना प्रासंगिक है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सांय 5:30 बजे गांधी पार्क देहरादून से मई दिवस का जलूस निकलेगा। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से सीटू, एटक से जुड़ी यूनियने, लाल झंडे की यूनियने, बैंक, बीमा, रक्षा क्षेत्र की यूनियनें आदि हिस्सेदारी करेंगी।
लेखक का परिचय
लेखराज उत्तराखंड सीटू के राज्य और जिला सचिव हैं। वह देहरादून में रहते हैं। लेखराज देहरादून में डीएवी महाविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रह चुके हैं। साथ ही वह श्रमिकों के अधिकारों के लिए सदैव सक्रिय रहते हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।