इन दो जिलों में दिखा किसान आंदोलन का असर, भाजपा पिछड़ी और कांग्रेस ने बनाई बढ़त, धामी और हरीश के करीबी भी हारे
पिछले एक साल चले किसान आंदोलन के चलते उत्तराखंड में भी बीजेपी को नुकसान उठना पड़ा। उत्तराखंड में किसान आंदोलन का ज्यादा असर हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिले के साथ ही देहरादून में हल्का फुल्का देखा गया था। इनमें उधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले में कहें तो एक तरह से जनता ने बीजेपी को नकार दिया।

किसान आंदोलन की बात करें तो सबसे ज्यादा गतिविधियां उधम सिंह नगर और हरिद्वार जिले में ही देखी गई। किसान नेता राकेश टिकैत हो अक्सर उधमसिंह नगर आते रहे। हरिद्वार जिले में भी किसान पंचायतें होती रहीं। इसका असर मतदाताओं पर भी पड़ा। उधमसिंह नगर में वर्ष 2017 में सीएम धामी के गृह जनपद ऊधमसिंह नगर की नौ विस सीटों में भाजपा ने आठ पर जीत दर्ज की थी। इस बार 2022 के चुनाव में इस जिले में बीजेपी को पांच सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। नौ सीट में से पांच में कांग्रेस और चार सीटों में भाजपा विजयी रही। ऐसे में इस जिले में बीजेपी को चार सीटों का नुकसान उठाना पड़ा।
उधमसिंह नगर जिले में विजयी प्रत्याशी
जसपुर- कांग्रेस- आदेश सिंह चौहान
काशीपुर- बीजेपी- त्रिलोक सिंह चीमा
बाजपुर- कांग्रेस- यशपाल आर्य
गदरपुर- भाजपा- अरविंद पांडेय
रुद्रपुर- भाजपा- शिव अरोरा
किच्छा- कांग्रेस- तिलक राज बेहड़
सितारगंज- भाजपा- सौरभ बहुगुणा
खटीमा- कांग्रेस- भुवन चंद्र कापड़ी
नानकमत्ता- कांग्रेस- गोपाल सिंह राणा
हरिद्वार में बीजेपी को लगा बड़ा झटका
हरिद्वार जिले में भी किसान आंदोलन चरम पर था। यहां भी कई बार किसान पंचायतें आयोजित होती रही। इसका असर भाजपा को नुकसान के रूप में उठाना पड़ा। हालांकि उधमसिंह नगर में बीजेपी की झोली से छिटकी सीटों को पूरी तरह से कांग्रेस कब्जाने में कामयाब नहीं रही और बीएसपी के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी एवं दबंग पत्रकार उमेश शर्मा भी चुनाव जीतने में सफल रहे। हरिद्वार जिले की 11 सीटों में से बीजेपी को आठ में हार का मुंह देखना पड़ा। बीजेपी सिर्फ तीन सीटें जीती। कांग्रेस पांच सीटों पर और बीएसपी दो सीटों पर और एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी उमेश कुमार जीते। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में हरिद्वार जिले की 11 सीटों में से बीजेपी ने आठ सीटों पर जीत हासिल की थी।
हरिद्वार की 11 सीटों के चुनाव परिणाम
भेल रानीपुर- बीजेपी- आदेश चौहान
भगवानपुर- कांग्रेस- ममता राकेश
पिरान कलियर- कांग्रेस- फुरकान अहमद
हरिद्वार ग्रामीण- कांग्रेस- अनुपमा रावत
हरिद्वार शहर- बीजेपी- मदन कौशिक
ज्वालापुर- कांग्रेस- रवि बहादुर
रुड़की-बीजेपी- प्रदीप बत्रा
खानपुर- निर्दलीय- उमेश कुमार
लक्सर- बसपा- शहजाद
मंगलौर- बसपा- शरवत करीम अंसारी
झबरेड़ा- कांग्रेस- वीरेंद्र कुमार
धामी और हरीश रावत के करीबी भी हारे
इस बार के चुनाव में जनता ने पूर्व सीएम हरीश रावत और वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी दोनों को ही नकार दिया। धामी को खटीमा से और हरीश रावत को लालकुआं से सीट से खुद भी चुनाव हार गए। हरीश रावत जहां कांग्रेस चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष थे, वहीं धामी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा गया था। इन दोनों के साथ ही उनके करीबी भी चुनाव हार गए। या यूं कहें कि इनकी लॉबी को भी तगड़ा झटका लगा है। धामी की मौजूदगी के बीच उनके गृह जिले ऊधमसिंह नगर में भाजपा को पांच सीटों का नुकसान हुआ, वहीं हरीश रावत के इशारे पर टिकट पाने वाले एक दर्जन से ज्यादा उनके करीबी प्रत्याशियों की हार ने कांग्रेस की सत्ता में वापसी का सपना तोड़ दिया।
कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंड में पूर्व सीएम हरीश रावत को चुनाव संचालन समिति का अध्यक्ष बनाने के बाद साफ कर दिया था कि अहम फैसले रावत के ही मान्य होंगे। इसके बाद पार्टी के भीतर तमाम विरोध गतिरोध के बावजूद रावत लॉबी के चहेतों के सबसे ज्यादा टिकट फाइनल हुए। बात रामनगर से रणजीत रावत को सल्ट भेजने की हो। चाहे यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य की कांग्रेस में वापसी कराकर टिकट दिलाने की बात हो। या फिर अपना टिकट रामनगर में फाइनल कराने के बाद ऐन मौके पर लालकुआं से चुनाव लड़ने के फैसला। हर बार हरीश रावत की इच्छा को ही तरजीह मिली।
जब चुनाव परिणाम सामने आए तो स्थिति एकदम उलट हो गई। हरीश रावत के गुट के एक दर्जन से अधिक प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह नतीजे कांग्रेस हाईकमान को भी नए नेतृत्व पर नए सिरे से सोचने पर जरूर मजबूर करेंगे। हरीश रावत के करीबियों में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल (श्रीनगर), गोविंद सिंह कुंजवाल (जागेश्वर), करन माहरा (रानीखेत), हेमेश खर्कवाल (चम्पावत), प्रदीप पाल (डीडीहाट), महेश शर्मा (कालाढूंगी), संजीव आर्य (नैनीताल), अनुकृति गुंसाई रावत (लैंसडीन), सतपाल ब्रह्मचारी (हरिद्वार) से चुनाव हार गए।
वहीं, सीएम पुष्कर सिंह रावत के करीबियों में यतीश्वरानंद भी हरिद्वार ग्रामीण सीट से चुनाव हार गए। किच्छा से राजेश शुक्ला, नानकमत्ता से प्रेम सिंह राणा भी भी चुनाव हार गए। अपने गृह जनपद उधमसिंह नगर की नौ सीटों में से पांच सीट धामी भी गंवा बैठे। बीजेपी को यहां से मात्र चार सीटें मिली थी। वहीं, पिछली बार बीजेपी को यहां से आठ सीटें मिली थी। ऐसे में इस जिले में बीजेपी को चार सीटों का नुकसान हुआ। वहीं, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक भी अपने गृह जनपद हरिद्वार में अपनी सीट को तो बचा गए, लेकिन जिले के 11 सीटों में बीजेपी को आठ में हार का मुंह देखना पड़ा। वहीं, पिछले चुनाव में हरिद्वार जिले में बीजेपी ने आठ सीटों पर जीत हासिल की थी। यानी इस बार हरिद्वार में बीजेपी को पांच सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। इससे साफ है कि दोनों ही दलों के बड़े नेता अपने गृह जनपदों में अपना करिश्मा नहीं दिखा पाए।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।