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November 21, 2024

शुक्र ग्रह में इंसान की चुटकियों में हो सकती है मौत, एलियंस की संभावना, यूएफओ को लेकर सामने आया नया दावा

यूएफओ को लेकर दुनिया में पिछले 70 सालों से खूब चर्चा हो रही है। इसे लेकर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा सहित दुनियां भर के वैज्ञानिक लगातार अध्ययन कर रहे हैं। हालांकि, अभी एलियंस को लेकर ठोस सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन अक्सर वैज्ञानिकों और एक्सपर्ट के दावे सामने आते रहते हैं। अब शुक्र ग्रह को लेकर भी नई बात सामने आ रही है। सोलर सिस्टम में मौजूद शुक्र ग्रह को पृथ्वी की जुड़वा बहन कहा जाता है। इसकी वजह है कि इस ग्रह का पृथ्वी के आकार का होना है। ये ग्रह सोलर सिस्टम में रहने योग्य क्षेत्र में मौजूद है। अब शुक्र ग्रह को लेकर कुछ ऐसा दावा किया गया है, जो आपको हैरान कर देगा। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) की एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि शुक्र ग्रह पर एलियंस मौजूद हो सकते हैं। उन्होंने इसकी वजह भी बताई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

शुक्र ग्रह पर तापमान 475 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। ग्रह का वातावरण बिल्कुल जहरीला है। इस वजह से कोई ये सोच भी नहीं सकता है कि यहां जीवन मौजूद होगा। हालांकि, नासा की वैज्ञानिक डॉ मिशेल थॉलर इसके बिल्कुल उलट सोचती हैं। अमेरिका के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में काम करने वाली डॉ मिशेल ने एक नई थ्योरी बताई है। इसके तहत शुक्र ग्रह पर जीवन मौजूद होने की बात कही गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

एलियंस पर दी ये थ्योरी
सोलर सिस्टम में दूसरे नंबर पर मौजूद शुक्र ग्रह का वातावरण ऐसा है कि वहां इंसान जिंदा रह ही नहीं सकते हैं। मगर डॉ मिशेल का कहना है कि कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड वाले वातावरण में हमने जीवन के संभावित निशान देखें हैं। द सन को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि हम शुक्र ग्रह के वातावरण में जीवन के संभावित संकेत देख रहे हैं। मैंने शुक्र को लेकर कभी ऐसी उम्मीद नहीं की थी। ग्रह के वायुमंडल ऐसा दिखाई देता है, जैसे इसे किसी बैक्टीरिया के जरिए तैयार किया गया हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सोलर सिस्टम में मिल सकते हैं जीवन के सबूत
उन्होंने आगे कहा कि मुझे लगता है कि अब वो वक्त ज्यादा दूर नहीं है, जब हमें सोलर सिस्टम में जीवन के सबूत मिल जाएं। सोलर सिस्टम में मौजूद जीवन बहुत ही छोटा होगा। हो सकता है कि ये बैक्टीरिया के रूप में मौजूद हो। दरअसल, ये कहा जाता है कि अगर हमें पृथ्वी के अलावा किसी ग्रह पर जीवन के सबूत मिलेंगे भी तो हो सकता है कि वह किसी बैक्टीरिया की तरह हों। अभी वहां जीवन की बस शुरुआत ही हुई हो। शुक्र को लेकर यही बातें कही जाती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ऐसा है शुक्र ग्रह
शुक्र ग्रह का वातावरण बेहद ही खतरनाक है। अगर किसी इंसान को वहां भेजा जाए, तो उसकी चुटकियों में मौत हो जाएगी। हालांकि, कई सारी स्टडी में ये बात कही गई है कि ग्रह पर बैक्टीरिया के तौर पर जीवन मौजूद हो सकता है। सूरज से शुक्र ग्रह की दूरी 6.7 करोड़ मील है। ये सोलर सिस्टम का सबसे गर्म ग्रह है। इसके वातावरण में सल्फ्यूरिक एसिड और कार्बन डाइऑक्साइड मिला हुआ है। एक तरह से यहां के हालात किसी जहन्नुम से कम नहीं हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

यूएफओ को लेकर सामने आया नया दावा
अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा (NASA) के एक्सपर्ट्स का कहना है कि यूएफओ अडवांस्ड टेक्नोलॉजी हो सकते हैं। अनआइडेंटिफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट (UFO) को लेकर कहा जाता है कि ये एलियंस की मौजूदगी के सबसे बड़े सबूत हैं, लेकिन कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि यूएफओ एलियंस के नहीं, बल्कि दुश्मन देशों के विमान भी हो सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लगता है सच में हैं यूएफओ
डेली मेल के मुताबिक, नासा के ‘साइंस मिशन डायरेक्टोरेट’ के लंबे समय तक एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर रहने वाले डॉ थॉमस जुर्बुचेन ने यूएफओ के पीछे चीन के रोल को लेकर बात की है। उन्होंने कहा है कि कई सारी रिपोर्ट्स को पढ़ने और चश्मदीदों से बात करने के बाद उन्हें लगता है कि यूएफओ सच में हैं। हालांकि, उन्होंने कहा कि सबसे जरूरी सवाल ये है कि क्या चीन के जासूसी वाले गुब्बारे तो यूएफओ के पीछे नहीं हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चीन के गुब्बारों पर शक
डॉ थॉमस जुर्बुचेन का कहना है कि जासूसी गुब्बारे की पूरी घटना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अगर हम जो देख रहे हैं, उसे ही नजरअंदाज करेंगे, तो ये हैरानी वाली बात होगी। दरअसल, चीन पर आरोप लगा कि वह गुब्बारों के जरिये अमेरिका की जासूसी कर रहा है। फरवरी में अमेरिका ने चीन के एक जासूसी गुब्बारे को मार गिराया था। हालांकि, चीन ने जासूसी के आरोपों को नकार दिया था। साथ ही इसे मौसम संबंधी जानकारी वाला अभियान बताया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

डॉ जुर्बुचेन खंगाल चुके हैं यूएफओ की ढेरों रिपोर्ट्स
वहीं, हाल ही में यूएफओ एक्सपर्ट डॉ जुर्बुचेन ने नासा की नौकरी छोड़ी है और अब वह अपने देश स्विट्जरलैंड में मौजूद ईटीएच (ETH) ज्यूरिख यूनिवर्सिटी में पढ़ाने जा रहे हैं। हालांकि, उन्होंने इससे पहले UFO को लेकर बहुत ज्यादा खोजबीन की है. डॉ जुर्बुचेन ने न्यू जर्सी में 1952 में ली गई यूएफओ की तस्वीरों का एनालिसिस किया है। इसके अलावा यूएफओ से जुड़ी ढेरों रिपोर्ट्स को खंगाला है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

यूएफओ देखने वाले लोग सच बोल रहे: डॉ जुर्बुचेन
वह कहते हैं कि मैंने न सिर्फ यूएफओ देखने वाले पायलटों से बात की है, बल्कि उन लोगों से भी चर्चा की है, जिन्होंने आसमान में उड़ने वाली अज्ञात चीजों को देखा। मैं पूरी तरह से मानता हूं कि वो लोग सच बोल रहे हैं। उनका कहना है कि चश्मदीद लोग झूठ नहीं बोल रहे हैं। वे मनगढ़ंत कहानी भी नहीं बना रहे हैं। मुझे लगता है कि उन्होंने वो चीजें बताई हैं, जिन्हें उन्होंने खुद अपनी आंखों से देखा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अभी काम करने की जरूरत
डॉ जुर्बुचेन का कहना है कि यूएफओ की मौजूदगी को साबित करना कुछ ऐसा है, जिस पर अभी हमें और काम करने की जरूरत है। अगर हम इसे अडवांस्ड टेक्नोलॉजी मानते हैं, तो ये हमारे लिए बिल्कुल भी दोस्ताना नहीं है। अगर ये टेक्नोलॉजी किसी दूसरे देश की है, तो ये ज्यादा डराने वाला है। ऐसा इसलिए, क्योंकि हमें नहीं मालूम है कि इसे किस देश ने तैयार किया है और उसका मकसद क्या है।
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