शबरी के कैसे बेर हैं मीठे रस बारे, राम ने बाली का किया बध, हनुमान ने जलाई लंका
उनकी वास्तविकता जानने के लिए सुग्रीव के मंत्री हनुमान को भेजा। वह ब्राह्मण का वेश धारण कर वनवासी राम और लक्ष्मण के पास गये। लक्ष्मण ने अपना परिचय ब्राह्मण वेश धारी हनुमान जी को दिया। श्री राम का परिचय मिलते ही हनुमान अपनी सुध-बुध खो बैठे। वह राम के चरणों में गिर कर लिपट गये। कहने लगे प्रभु आज मेरी जन्मो की प्यास आपके दर्शन पाकर पूर्ण हुई। इस प्रकार भक्त और भगवान का मिलन देखकर दर्शक भावविभोर हो गये।
हनुमान के अनुरोध पर श्रीराम ने सुग्रीव की व्यथा सुन सुग्रीव से मित्रता की। राम ने सुग्रीव को बाली से युद्ध करने के भेजा। बाली बड़ा ही शक्तिशाली था। उसने सुग्रीव को मारपीट कर घायल कर दिया। बड़ी मुश्किल से सुग्रीव अपनी जान बचाकर राम के पास वापस लौटा। राम ने कहा कि तुम दोनो भाइयों की सूरत एक जैसी होने के कारण मैं तुम्हें पहचान नहीं सका। इसलिए अबकी बार तुम मेरी निशानी के रूप में ये माला पहनकर जाओ और बाली को युद्ध के लिए ललकारो। इस प्रकार सुग्रीव की ओर से बाली को पुनः ललकारने पर घनघोर युद्ध हुआ। इसी घनघोर युद्ध में छिपकर राम ने बाली को एक ही बाण से मार दिया।
अंत समय में बाली ने राम को पहचान कर अपने पुत्र अंगद को भी अपनी शरण में लेने की प्रार्थना की। बाली वध के बाद राम के निर्देश पर लक्ष्मण ने सुग्रीव को किष्किंधा के राजा पद पर राज्याभिषेक किया। राजकाज में व्यस्त होने पर सुग्रीव राम काज माता सीता की खोज कार्य भूल गये। लक्ष्मण के क्रोधित होने पर सुग्रीव ने हनुमान जी सहित अपनी समस्त सेना को सीता की खोज में भेजा। बानर सेना चारों दिशाओं में माता सीता की खोज करने लगे।
बहुत बड़ा समुद्र देखकर बानर सेना चिंतित हो गयी। तभी बानर सेना में साथ आते वरिष्ठ जामवंत ने हनुमान जी को उनकी ऊर्जा और शक्ति से स्मरण करवाकर समुद्र लांघने हेतु प्रेरित किया। इस प्रकार हनुमान जी अपनी शक्ति संजोकर समुद्र लांघ कर लंका पहुंचे गये। जहां भक्ति में लीन विभीषण से हनुमानजी की भेंट हुई और दोनों ही प्रभु के भक्त होने के कारण मित्र बन गये। लंका में रावण सीता को अशोक वाटिका में रखता है। वहां वह जाकर सीता को भयभीत करता है। कहता है उसकी पटरानी बनना स्वीकार कर ले। सीता उसे दुत्कारती हैं।
लंका को कोना कोना छानने के बाद अशोक वाटिका में अशोक वृक्ष के नीचे बैठी रोती विलाप करती एक स्त्री को ही सीता के रूप में हनुमानजी ने माता जी प्रणाम कह कर श्री राम कथा और श्री राम व्यथा संगीत सुनाई। इसे सुनकर सीताजी भाव विभोर हो हनुमान जी को पहचान गयी। अशोक वाटिका में लगे फल देखकर हनुमानजी ने माता सीता से आज्ञा लेकर फल खाकर वृक्षों को उखाड़ फेंका। इससे लंका के माली और रक्षक चित्कार कर भाग गये और सारा वृत्तांत लंकेश को सुनाया। लंकेश ने अपने बलशाली पुत्र अक्षय कुमार को भेजा। अंहकार के वशीभूत होकर अक्षय कुमार भी हनुमान के हाथों मारा गया।
इस दुःखद समाचार से व्यथित हो कर रावण ने अपने ज्येष्ठ पुत्र मेघनाथ को हनुमान के पास भेजा। मायावी मेघनाथ ने बातों के भ्रम जाल में हनुमानजी को उलझाकर ब्रह्म फांस से हनुमानजी को बंदी बना लिया। हनुमानजी को लंकेश के दरबार में पेश किया। जहां हनुमान जी ने बिना किसी भय के अपना पराक्रम दिखाया। इस पर क्रोधित होकर रावण हनुमान को मृत्यु दण्ड सुनाने लगा। तभी विभीषण के परामर्श दिया कि दूत को मारना पाप है। इस पर रावण ने हनुमान की पूंछ पर आग लगाने का दंड सुनाया। इस प्रकार हनुमान ने आग से जलती अपनी पूंछ से रावण की सोने की लंका जला दी। इससे चारों ओर चित्कार और हाहाकार मच गया।
लंका जला कर खाक करने के बाद हनुमान जी ने माता सीता से निशानी स्वरुप चूड़ामणि तथा माता सीता की आज्ञा लेकर रामादल की ओर प्रस्थान किया। रात नौ बजे से देर रात आज की लीला में प्रभु श्रीराम के दरबार में अतिथि के रुप आर्यसमाज के विद्वान इं. प्रेम प्रकाश शर्मा, समाजसेवी मोती दीवान, महावीर प्रसाद गुप्ता, मंयक शर्मा का स्वागत सम्मान श्री आदर्श रामलीला सभा राजपुर के संरक्षक जयभगवान साहू, प्रधान योगेश अग्रवाल, उप प्रधान संजीव कुमार गर्ग, शिवदत्त अग्रवाल, मंत्री अजय गोयल, कोषाध्यक्ष नरेंद्र अग्रवाल, प्रचार मंत्री प्रवीण जैन,आडीटर ब्रह्म प्रकाश वेदवाल ने पटका और स्मृति चिह्न प्रदान कर किया।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।