फिर छलका हरीश रावत का दर्द, उठाए कई सवाल, लिखी लंबी चौड़ी पोस्ट
उत्तराखंड में चुनाव में बुरी तरह हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का दर्द बार बार छलक रहा है। वह हार के कारणों पर मनन कर रहे हैं। खुद पर हार की जिम्मेदारी तो ले रहे हैं, साथ ही इशारों ही इशारों में दूसरे को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
उत्तराखंड चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष एवं पूर्व सीएम हरीश रावत ने सोशल मीडिया में डाली गई पोस्ट में ये भी बताने का प्रयास किया कि उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें किच्छा से चुनाव लड़ाया गया, जबकि वह तैयारी रामनगर सीट से कर रहे थे। उन्होंने लिखा कि मैं सभी उम्मीदवारों की हार का उत्तरदायित्व अपने सर पर ले चुका हूं और सभी को मुझ पर गुस्सा निकालने, खरी खोटी सुनाने का हक है। प्रीतम सिंह जी ने एक बहुत सटीक बात कही कि आप जब तक किसी क्षेत्र में 5 साल काम नहीं करेंगे तो आपको वहां चुनाव लड़ने नहीं पहुंचना चाहिए। फसल कोई बोये और काटने कोई और पहुंच जाए, यह उचित नहीं है।
उन्होंने आगे लिखा कि-मैं बार-बार यह कह रहा था कि मैं सभी क्षेत्रों में चुनाव प्रचार करूंगा। स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में राय दी गई कि मुझे चुनाव लड़ना चाहिए, अन्यथा गलत संदेश जाएगा। इस सुझाव के बाद मैंने रामनगर से चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की। रामनगर मेरे लिए नया क्षेत्र नहीं था। मैं 2017 में वहीं से चुनाव लड़ना चाहता था। मेरे तत्कालिक सलाहकार द्वारा यह कहे जाने पर कि वो केवल रामनगर से चुनाव लड़ेंगे, सल्ट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते, तो मैंने रामनगर के बजाय किच्छा से चुनाव लड़ने का फैसला किया।
हरीश रावत ने कहा कि इस बार भी पार्टी ने जब रामनगर से मुझे चुनाव लड़ाने का फैसला किया तो रामनगर से उम्मीदवारी कर रहे व्यक्ति को सल्ट से उम्मीदवार घोषित किया और सल्ट उनका स्वाभाविक क्षेत्र था और पार्टी की सरकारों ने वहां ढेर सारे विकास के कार्य करवाए थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि- मुझे रामनगर से चुनाव लड़ाने का फैसला भी पार्टी का था और मुझे रामनगर के बजाय लालकुआं विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाने का फैसला भी पार्टी का ही था। मैं रामनगर से ही चुनाव लड़ना चाहता था। मैंने रामनगर में कार्यालय चयनित कर लिया था और मुहूर्त निकाल कर नामांकन का समय व तिथि घोषित कर दी थी और मैं रामनगर को प्रस्थान कर चुका था।
उन्होंने कहा कि मुझे सूचना मिली कि मैं लालकुआं से चुनाव लड़ूं, यह भी पार्टी का सामूहिक फैसला था। मैंने न चाहते हुए भी फैसले को स्वीकार किया और मैं रामनगर के बजाय लालकुआं पहुंच गया। मुझे यह भी बताया गया कि मुझे लालकुआं से चुनाव लड़ाने में सभी लोग सहमत हैं। लालकुआं पहुंचने पर मुझे लगा कि स्थिति ऐसी नहीं है। मैंने अपने लोगों से परामर्श कर दूसरे दिन अर्थात 27 तारीख को नामांकन न करने का फैसला किया और पार्टी प्रभारी महोदय को इसकी सूचना दी। उन्होंने कहा कि यदि मैं ऐसा करता हूं तो उससे पार्टी की स्थिति बहुत खराब हो जाएगी, मैं ऐसा न करूं। 27 तारीख को न चाहते हुए भी मैंने नामांकन किया और मैंने अपने आपसे कहा कि हरीश रावत तुम्हें पार्टी हित में यदि आसन्न हार को गले लगाना है तो तुम उससे भाग नहीं सकते हो।
हरीश रावत के मुताबिक, मैं केवल इतना भर कहना चाहता हूं कि श्री प्रीतम सिंह जी की बात से सहमत होते हुए भी मुझे किन परिस्थितियों में रामनगर और फिर लालकुआं से चुनाव लड़ना पड़ा। यदि उस पर सार्वजनिक बहस के बजाय पार्टी के अंदर विचार मंथन कर लिया जाए तो मुझे अच्छा लगेगा।
पार्टी में भी उठाए सवाल, उठाई जांच की मांग
हरीश रावत ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने को घोषणापत्र में शामिल करने पर भी सवाल उठाए। उन्होंने लिखा कि- मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तथाकथित मांग करने वाले व्यक्ति को पदाधिकारी बनाने का फैसला किसका था। इसकी जांच होनी चाहिए। न उस व्यक्ति के नामांकन से मेरा दूर-दूर तक कोई वास्ता था, क्योंकि वह व्यक्ति कभी भी राजनीतिक रूप से मेरे नजदीक नहीं रहा था। उस व्यक्ति को राजनीतिक रूप से उपकृत करने वालों को भी सब लोग जानते हैं। उसे किसने सचिव बनाया, फिर महासचिव बनाया और उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में उसे किसका समर्थन हासिल था। यह तथ्य सबको ज्ञात है। उस व्यक्ति के विवादास्पद मूर्खतापूर्ण बयान के बाद मचे हल्ले-गुल्ले के दौरान उसे हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा का प्रभारी बनाने में किसका हाथ रहा है, यह अपने आप में जांच का विषय है।
इससे पहले भी लिखी थी पोस्ट
इससे पहले भी हरीश रावत ने एक पोस्ट लिखी थी और पार्टी को जीत न दिला पाने की पीड़ा जाहीर की थी। कांग्रेस महासचिव और उत्तराखंड में पार्टी चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने रविवार को विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत न दिला पाने पर पीड़ा जाहिर की। रावत ने लिखा- वो कांग्रेस नेतृत्व की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए जिन्होंने उन पर भरोसा जताया था। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भाग लेने के लिए दिल्ली रवाना होने से पहले अपनी फेसबुक पोस्ट में रावत ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि वो पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी का सामना कैसे करेंगे।
उत्तराखंड में कांग्रेस 70 में से केवल 19 सीट तक सिमट गई। हरीश रावत खुद लालकुआं क्षेत्र से पराजित हो गए।
उत्तराखंड में बीजेपी 47 सीट पर विजय प्राप्त कर लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज हुई है। 73 साल के रावत ने लिखा, दिल्ली जाने की कल्पना मात्र से मेरे पांव मन-मन भर भारी हो जाएं, कैसे सोनिया जी की चेहरे की तरफ देखूंगा। कितना विश्वास था उनका मुझ पर। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी कुछ कमियां रही होंगी, जो वह उनके इतने बड़े विश्वास को कायम नहीं रख पाए। अब वास्तविकता यह है कि हम हारे ही नहीं हैं, बल्कि हमारी हार और कई चिंताजनक संकेत दे रही है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।