हरीश रावत ने इंदिरा को दिया जवाब, पिछली हार से न लिपटें, ऊपर उठें और चेहरा घोषित करें
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत इन दिनों आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस में सीएम का चेहरा घोषित करने की मांग को लेकर मुखर हैं। वहीं, उनकी इस मांग पर नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने आपत्ति उठाई। इंदिरा हृदयेश ने तो यहां तक कह दिया कि पिछले चुनाव में चेहरा हरीश रावत थे और कांग्रेस 11 सीटों पर सिमट गई। वहीं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि इस पर निर्णय आलाकमान को ही करना है।
हरीश रावत को इन दिनों सोशल मीडिया में अपनी ज्यादातर पोस्ट चेहरा घोषित करने को लेकर डाल रहे हैं। एक पोस्ट में तो उन्होंने ये तक कह दिया कि चेहरा चाहे प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का हो या फिर नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश का। यदि चेहरा घोषित हो जाता है तो हम सब उसके पीछे खड़े होकर चुनाव की तैयारी करेंगे। ऐसे में गुटबाजी पर भी अंकुश लगेगा। फिर हरीश रावत की इस मांग को खारिज करने के पीछे की कहानी तो यही बता रही है कि कोई भी नेता आगे आकर अपने नेतृत्व में चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। सब हवा का रुख देख रहे हैं। यदि जीत गए तो दावेदार बन जाएंगे। हार गए तो ठीकरा प्रदेश अध्यक्ष या गुटबाजी पर फोड़ देंगे।
वहीं, हरीश रावत की इस मांग पर उन पर ही हमले करने से कांग्रेसी नहीं चूक रहे। रोजगार, सरकारी भर्तियां, महंगाई आदि के मुद्दों से भले ही उन्हें कोई सरोकार नहीं हो, लेकिन हरीश रावत के बयानों पर टिप्पणी करके पार्टी में गुटबाजी को जगजाहिर करने से पीछे कोई नहीं रह रहा है। वहीं, हरीश रावत हर दिन इस मामले को हवा दे रहे हैं। यानी कांग्रेस में भीतर ही भीतर कुछ अलग पक रहा है। स्थिति तो यही बयां कर रही हैं कि कुछ भी ठीक नहीं है।
अब फिर हरीश रावत ने इंदिरा हृदयेश के उस बयान पर फिर से जवाब दिया जिस पर उन्होंने कहा था कि चेहरा घोषित करके हम 2017 का चुनाव हार गए थे। हरीश रावत ने सोशल मीडिया में अपनी पोस्ट में कहा कि-
2017 की चुनावी हार का मुद्दा भी बार-बार उभर करके मुझे डराने के लिये खड़ा हो जाता है। मैं 2017 की चुनावी हार का सारा दायित्व ले चुका हूँ। मैंने पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल पर और आपस में इस बात को लेकर विवाद, हमें और कमजोर न करे इसलिये अपने ऊपर दायित्व लिया। मैंने कोई बहाना नहीं बनाया, जबकि बहाने बहुत बनाये जा सकते थे।
उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि- मगर एक तथ्य हम सबको समझना चाहिये कि हमें 2017 की हार से लिपटे नहीं रहना है, उससे ऊपर उठना है और 2017 की हार के समसम्यक चुनावों के परिणामों को भी अपने सामने रखना है। उत्तर प्रदेश में हमारा महागठबंधन था, मगर उत्तर प्रदेश की धरती में जाति और सामाजिक समीकरण ध्वस्त हो गये और श्मशानघाट व कब्रिस्तान के नारे ने मानस बदल दिया।
उन्होंने आगे लिखा कि- उस समय के भाजपा के प्रचारक योगी आदित्यनाथ ने उत्तराखंड में आकर जिस तरीके से चुनावों को पोलोराइज किया तो हिंदू, उसमें भी उच्च वर्णीय हिंदुओं के बाहुल्य वाले राज्य में उन सबका प्रभाव पड़ा। मैं आभारी हूं उत्तराखंड की जनता का कि इतने सघन धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिशों के बावजूद भी हमारे कांग्रेस के वोटों का प्रतिशत नहीं गिरा।
हरीश रावत ने आगे कहा कि-आप 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्राप्त वोटों का प्रतिशत देख लीजिये। यहां तक की वोटों में जो वृद्धि हुई, उस वृद्धि को देखते हुये प्रतिशत में तो हम 2012 में कांग्रेस को पड़े वोटों के बराबर रहे और वोटों में जो वृद्धि हुई, उसके अनुसार हमारे वोटों में कुल वोटों की संख्या में 2012 की तुलना में करीब पौने दो लाख की वृद्धि हुई।
उन्होंने आगे कहा कि- कितना अथक परिश्रम किया होगा कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने। एक बड़ी टूट और विशेष तौर पर ठीक चुनाव के वक्त में एक पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष का चला जाना, कोई सामान्य बात नहीं थी। मगर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से कांग्रेस अपने 2012 के जिस समय हम जीते थे, उस वोट बैंक को कायम रखने में सक्षम रहे। करीब 12 सीटें ऐसी हैं, जिनमें हमारी हार का मार्जन बहुत कम है। यहां तक की सल्ट में अन्तिम क्षणों में हमने श्रीमती गंगा पंचोली जी को टिकट दिया, तो वहां भी हम 2900 वोटों से पीछे रहे। मतलब 1500 वोट और यदि गंगा पंचोली को मिल जाते तो वो विधानसभा की सदस्य होती। तो ये जो अंकगणित है, यह हमको शक्ति देता है।
हरीश रावत ने कहा कि- 2022 की रणनीति बनाने के लिये हमें 4-5 प्रतिशत और वोट अपने बढ़ाने हैं। वो बढ़ोतरी बसपा, यूकेडी और दूसरे दलों के जो वोट समूचे तौर पर #जपा को स्थानांतरित हो गये थे, उनको कैसे हम अपने पास ला सकें। मैंने इसी रणनीतिक आवश्यकता को लेकर के स्थानीय बनाम स्थानीय नेतृत्व, ताकि चुनावी परिदृश्य में भाजपा मोदी जी को लाने का प्रयास करें तो मोदी जी के बजाय स्थानीय मुद्दे और स्थानीय नेताओं के चेहरों पर चुनाव हो।
उन्होंने फिर अपनी बात को तर्कसंगत बताते हुए कहा कि- इसीलिये मैंने 2022 के चुनाव के लिये मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की बात कही, एक सुझाव दिया। लोकतांत्रिक पार्टी में चर्चाएं होती हैं और मैंने एक असमंजस हटाने के लिए अपने आपको पीछे कर लिया ताकि लोगों को यह न लगे कि हरीश रावत केवल अपने लिए इस बात को कह रहा है। तो मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं, जब मैंने उस दावेदारी से, उस चाहत से अपने को हटा लिया तो फिर यह #दनादन क्यों?
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।