उत्तराखंड में हरेला पर्व शुरू, सीएम धामी ने किया पौधरोपण

उत्तराखंड में हरेला पर्व आज यानि कि 16 जुलाई से शुरू हो गया है। हालांकि, सरकारी कार्यालयों, स्कूलों और बैंक में कल सार्वजिक अवकाश है। कुछ लोग हरेला पर्व 17 जुलाई को मना रहे हैं। हरेला उत्तराखंड से जुड़ा लोकपर्व है। यह पर्व उत्तराखंड में मनाए जाने वाले त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। हरेला उत्तराखंड का लोक पर्व ही नहीं, बल्कि हरियाली का प्रतीक भी है। उत्तराखंड में हरेला से ही सावन की शुरुआत मानी जाती है। इसके उपलक्ष्य में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री आवास परिसर में पौधरोपण किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर सीएम ने आम की पूषा श्रेष्ठ प्रजाति का पौधा लगाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेला प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन का पर्व है। हरेला पर्व के उपलक्ष्य में प्रदेश में सामाजिक संगठनों, संस्थाओं एवं विभागों के माध्यम से व्यापक स्तर से वृक्षारोपण किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा जल संरक्षण एवं जल धाराओं के पुनर्जीवन की दिशा में राज्य में अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश में जल संरक्षण और संवर्द्धन के लिए सभी को आगे आने का अहवाहन किया गया है। राज्य में इस दिशा में तेजी से कार्य हो रहे हैं। राज्य में 1200 से अधिक अमृत सरोवर बनाए गए हैं। इस दिशा में आगे भी लगातार कार्य होंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हरेला पर्व के अवसर पर गीता पुष्कर धामी एवं कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने भी पौधरोपण किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री आवास में विभिन्न प्रजातियों के 51 पौधे लगाए गए। इस अवसर पर अपर सचिव रणवीर सिंह चौहान, मुख्य वन संरक्षक वन पंचायत डॉ. पराग मधुकर धकाते, मुख्य उद्यान अधिकारी डॉ. मीनाक्षी जोशी, उद्यान प्रभारी श्री दीपक पुरोहित उपस्थित थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
साल में तीन बार मनाया जाता है हरेला
हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में। हरेला का मतलब है हरियाली। उत्तराखंड में गर्मियों के बाद जब सावन शुरू होता है। तब चारों तरफ हरियाली नजर आने लगती है। उसी वक्त हरेला पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है। यह पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है। जिसे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हरेला लोकपर्व जुलाई के महीने में मनाया जाता है। जिससे 9 दिन पहले मक्का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट जैसे 7 तरह के बीज बोए जाते हैं और इसमें पानी दिया जाता है। कुछ दिनों में ही इसमें अंकुरित होकर पौधे उग जाते हैं, उन्हें ही हरेला कहते हैं। इस हरियाली (पौधों) को देवताओं को अर्पित किया जाता है। घर के बुजुर्ग इसे काटते हैं और छोटे लोगों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उत्तराखंड की संस्कृति से युवाओं जोड़ने के लिए होता है ये काम
अगर परिवार का बेटा या बेटी घर से बाहर होते हैं, तो कुछ लोग उनके पास यह हरेला डाक के माध्यम से भी भेजते हैं। उत्तराखंड की संस्कृति में युवाओं और बुजुर्गों को जोड़ने वाला हरेला पर्व संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठन और समाजसेवी इस त्योहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। पौधरोपण करने और पेड़-पौधों को सुरक्षित बड़ा करने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया जाता है।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।