लघुकथा-दिवाली खुशियों वाली और रंगीन दीये
मालिनी दिवाली की खरीददारी के लिए बाजार निकली। घर सजाने के लिए बहुत सारी रंग बिरंगी झालर वाली लाइट लेनी हैं। बाजार मानो तारों से भरा हो, हर जगह रंग बिरंगी लाइट। चलते चलते बाजार में, गली के नुक्कड़ पर अंधेरे में बैठी मां और उसके दो बच्चे, टोकरी में मिट्टी के दीयों को बेचने के लिए बैठे।
“मेम साब ले लो न दीए”, कितने सुंदर हैं। देखो सब अलग अलग रंगों के है।” मैंने किया है इन पर रंग” तपाक से छोटी गुड़िया बोली, जो मां के आँचल से अधढकी है, हल्की ठंड के कारण।
मालनी आवाज सुन, रुक गई। कितने के दिए? दो रुपये के चार, लेकिन आप पांच ले लो। शाम का समय है। वैसे भी दीपमाला का समय होने वाला है। हमारी भी दिवाली हो जाएगी मेम साब। मालनी ने दोनों बच्चो पर नजर लगाई, तुरन्त रंगीन लाइट का विचार छोड़ पूरे सौ रुएये के दीये खरीद लिए।
दो सौ रुपये देते हुए कहा” बच्चों को मिठाई मेरी तरफ से” सुंदर रंग जो किये हैं, इन्होंने। कुम्हारिन ने खुशी से पैसे लिए और मालिनी के बच्चों को अनगिनत दुआएं दी। घर में दीये देखकर बच्चे बहुत खुश हुए, इस बार कुछ नया और मालिनी के अन्तर्मन में दो घरों की दिवाली से खुशी के दीपक प्रज्वलित हो आनन्द का प्रकाश फैला रहे।
रचनाकार
सन्नू नेगी
सहायक अध्यापिका
राजकीय कन्या जूनियर हाईस्कूल सिदोली
कर्णप्रयाग, चमोली गढ़वाल, उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।