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September 15, 2024

महान समाज सुधारक, लोकसंस्कृति प्रेमी और जीवट आंदोलनकारी थे ‘पहाड़ के गाँधी’

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यह कहावत नहीं, बल्कि सर्वविदित है कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में जनपद टिहरी को संघर्षशील एवं क्रांतिकारियों की जन्मस्थली होने का गौरव सदियों से है। 17 वीं सदी में गढ़वाल के 46 वें राजा महिपतशाह के प्रमुख सेनापति एवं मंत्री माधोसिंह भंडारी की बहादुरी, त्याग और उदारता के किस्से हों या फिर टिहरी के राजा जयकृतशाह, प्रधुम्नशाह और सुदर्शन शाह के शासन काल में प्रमुख चित्रकार व कवि राजा के पक्ष में नहीं, बल्कि जनता के पक्ष में ख्याति प्राप्त चित्रकार व कवि मोलाराम विश्व प्रसिद्ध हैं। (गढ़वाल पेंटिंग्स के नाम से संकलित आर्ट गैलरी बोस्टन म्यूजियम में मौजूद है)। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ब्रिटिश सरकार द्वारा सेना के सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित प्रथम विश्व युद्ध के योद्धा राइफल मैन गबर सिंह नेगी, स्वाधीनता संग्राम में हिस्सेदारी से लेकर गाँधी जी के नमक सत्याग्रह आंदोलन में अहम भूमिका निभाते हुए टिहरी रियासत में राजशाही के जुल्मों के खिलाफ लड़कर सामंतशाही व्यवस्था से डटकर मुकाबला करने वाले साहसी व त्यागी शहीद श्रीदेव सुमन हों। अथवा कृषक आंदोलन के उत्साही नेता एवं ओजस्वी वक्ता नागेन्द्र सकलानी, आकाशवाणी दिल्ली में गढ़वाली संगीत के संयोजक और सहायक नाट्य निर्देशक गोविंद चातक, प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा, भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले परिपूर्णानंद पैन्यूली, विद्वान संपादक सत्यप्रसाद रतूड़ी, आचार्य गोपेश्वर कोठियाल, पण्डित कृष्णकांत टोडरिया, कहानीकार विद्यासागर नौटियाल आदि के त्याग एवं पुरुषार्थ के कारण हम स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गौरव की बात है कि उत्तराखंड को ऐसे ही महान पुरुष उत्तराखंड राज्य आन्दोलन के पुरोधा पर्वतीय गान्धी पण्डित इन्द्रमणि बड़ोनी जी के त्याग व संघर्ष के कारण आज हम नये राज्य में उनके दिये गए उपहार का उपभोग कर रहे हैं। साथ ही ‘लोकसंस्कृति दिवस’ के रूप में उनका जन्मदिवस भी मना रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इंद्रमणि बडोनी का जीवन परिचय 
उत्तराखंड के गाँधी स्व. इन्द्रमणि बड़ोनी जी का जन्म 24 दिसम्बर 1925 को ग्राम अखोड़ी, पट्टी ग्यारह गाँव हिन्दाव टिहरी गढ़वाल में हुआ। इनकी माँ श्रीमती कल्दी देवी तथा पिताजी श्री सुरेशानंद थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा कक्षा 4 (लोअर मिडिल) अखोड़ी से तथा कक्षा 7 (अपर मिडिल) रोडधार प्रतापनगर टिहरी से हुई। पिताजी का जल्दी ही निधन होने से प्रारम्भ में खेतीबाड़ी का काम करने के बाद ये रोजगार के लिए बॉम्बे चले गए। उच्च शिक्षा देहरादून व मसूरी से बहुत कठिनाइयों के बाद पूर्ण की। अपने दो छोटे भाई महीधर प्रसाद औऱ मेधनिधर को उच्च शिक्षा दिलाने में पितृत्व का धर्म निर्वहन किया और स्वयं गाँव में ही अपने सामाजिक जीवन को विस्तार देना प्रारम्भ किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अपनी रूचि के अनुसार खेतों में काम करने वाले आमजन के उत्साहवर्धन व मनोबल बढ़ाने के लिए जगह-जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम करवाने लगे। कई गाँव एवं प्रदर्शनियों में वीर भड़ माधोसिंह भण्डारी नृत्य-नाटिका और रामलीला का मंचन प्रमुख हैं। हम यह कह सकते हैं कि पहाड़ के गाँधी एक अच्छे अभिनेता, निर्देशक, लेखक, गीतकार, गायक, हारमोनियम और तबले के जानकार के साथ-साथ नृतक भी थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

लाहौर से संगीत की शिक्षा प्राप्त श्री जबर सिंह नेगी को वे संगीत में अपना गुरु मानते थे। इसी विधा के कारण 1956 में बड़ोनी जी स्थानीय कलाकारों के एक दल को लेकर गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रमों में केदार नृत्य प्रस्तुत कर अपनी लोक कला को बड़े मंच पर ले जाने में सफल रहे। बड़ोनी सामाजिक व्यक्तित्व के साथ साथ बॉलीबाल के कुशल खिलाड़ी भी रहे। पहाड़ की शिक्षा के प्रति वे बहुत चिंतनशील रहते थे। उनके द्वारा जगह-जगह स्कूल खोलना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

राजनीतिक सफर 
गाँव के प्रधान के रूप में उन्होंने अपना पहला कदम रखा।
– 1956 में जखोली विकासखंड के प्रमुख बने।
– 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विजयी घोषित होकर पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे।
– 1969 में अखिलभारतीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में दूसरी बार विधायक बने।
– 1977 में तीसरी बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में निर्वाचित होकर लखनऊ विधानसभा पहुंचे। श्री बड़ोनी पर्वतीय विकास परिषद के उपाध्यक्ष भी रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड आंदोलन और बडोनी
1979 से ही पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए वे सक्रिय हो गए। 1994 में उन्होंने पृथक उत्तराखंड राज्य के लिए आमरण अनशन शुरू किया, तभी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें मुज्जफरनगर जेल में डाल दिया गया। उसके बाद 02 सितम्बर और 02 अक्टूबर का काला इतिहास घटित हुआ। उत्तराखंड आंदोलन के कई मोड़ आये, पूरे आन्दोलन में वे केन्द्रीय भूमिका में रहे। बहुत ज्यादा धड़ों और खेमों में बंटे आंदोलनकारियों का उन्होंने सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। एक अहिंसक आन्दोलन में उमड़े जन सैलाव की उनके प्रति अटूट आस्था और विश्वास रहा। इसी करिश्माई पर सरल व सहज व्यक्तित्व के कारण वाशिंगटन पोस्ट ने उन्हें “पर्वतीय गाँधी” की संज्ञा दी। 18 अगस्त 1999 में विट्ठल आश्रम ऋषिकेश में उन्होंने अन्तिम साँस ली। उत्तराखंड आन्दोलन के पुरोधा, पहाड़ के गाँधी चिरकाल तक याद रहेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
लोकसंस्कृति दिवस के रूप में मनाया जाता है स्व बड़ोनी जी का जन्मदिवस
उत्तराखंड, भारत का 27वाँ उत्तरीय एवं हिमालयी क्षेत्र का 11वाँ राज्य, गढ़वाल व कुमायूँ मंडल जो देवभूमि नाम से प्रसिद्ध है। 62 वर्षों की लम्बी यात्रा 9 नवंबर 2000 को पूरी हो पाई। 1938 में तत्कालीन व्रिटिश शासन में गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने व अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के आंदोलन का समर्थन किया। तत्पश्चात 1940 हल्द्वानी सम्मेलन, 1954 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोविंदबल्लभ पंत से पर्वतीय क्षेत्र के लिए पृथक विकास योजना का आग्रह, 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टी टी कृष्णमाचारी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान हेतु विशेष ध्यान देने का सुझाव, 1970 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान, राज्य व केन्द्र सरकार का दायित्व होने की घोषणा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

1979 को पृथक राज्य के गठन के लिए मसूरी में इंद्रमणि बडोनी ने उत्तराखंड क्रान्ति दल की स्थापना की। 1987 में कर्णप्रयाग के सर्वदलीय सम्मेलन में उत्तराखंड के गठन के लिए संघर्ष का आह्वान के बाद वर्ष 1994 में राज्य बनने के लिए सबसे बड़ा संघर्ष किया गया। उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के तत्वावधान में 02 अक्टूबर 1994 को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में भाग लेने के लिए उत्तराखंड से हजारों लोगों की भागीदारी हुई। आंदोलनकारियों को मुज्जफरनगर में बहुत प्रताड़ित किया गया, उन पर पुलिस ने गोलीबारी व लाठियां बरसाई, महिलाओं के साथ दुराचार और अभद्रता की। इसमें अनेक लोग हताहत और घायल हुए, इस घटना ने उत्तराखंड आंदोलन की आग में घी का काम किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये हुए थे गोलीकांड
-एक सितंबर 1994- खटीमा गोली कांड: 7 लोग अमर शहीद।
– दो सितंबर 1994- मसूरी गोलीकांड: 6 लोग अमर शहीद।
– दो अक्टूबर 1994-मुज्जफरनगर गोलीकांड: 07 लोग अमर शहीद।
इसके बाद
– देहरादून गोलीकांड: 03 लोग अमर शहीद।
– कोटद्वार गोलीकांड: 02 लोग अमर शहीद।
– नैनीताल गोलीकांड: 01 अमर शहीद।
– श्रीयंत्र टापू श्रीनगर गढ़वाल में 02 लोग अमर शहीद।
इस प्रकार की इन उग्र घटनाओं के बाद 27 अक्टूबर 1994 को देश के तत्कालीन गृहमंत्री राजेश पायलट की आंदोलनकारियों से वार्ता हुई और 15 अगस्त 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य की घोषणा लाल किले से की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

1998 में भाजपा गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तर प्रदेश विधानसभा को उत्तरांचल विधेयक भेजा, उत्तर प्रदेश सरकार ने 26 संशोधन के साथ उत्तरांचल विधेयक विधानसभा में पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्र सरकार ने 27 जुलाई 2000 को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 को लोकसभा में प्रस्तुत किया जो 01 अगस्त 2000 लोकसभा तथा 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा में पारित हो गया। भारत के राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को 28 अगस्त 2000 को अपनी स्वीकृति दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

समाज के हर वर्ग की हिस्सेदारी रही आंदोलन में
उत्तराखंड राज्य बनने में जनांदोलन के रूप में प्रत्येक वय-वर्ग की हस्सेदारी रही। बच्चे-युवा-बुजुर्ग के साथ कर्मचारियों और विशेष तौर पर महिलाओं ने बढ़चढ़कर आन्दोलन में भागीदारी सुनिश्चित की।
लोकसंस्कृति दिवस
स्व, बडोनी स्मृति मंच के संस्थापक संस्कृति प्रेमी रमेश उनियाल की पहल पर उत्तराखंड राज्य आंदोलन के प्रणेता पर्वतीय गाँधी स्व. इन्द्रमणि बड़ोनी जी का जन्मदिवस प्रदेश में वर्ष 2016 से प्रतिवर्ष 24 दिसम्बर को “लोकसंस्कृति दिवस” के रूप में मनाया जाता है। रमेश उनियाल का मानना है कि हम बहुआयामी व्यक्तित्व और विविध संस्कृति से भरपूर देश में हैं। अपनी पुरातन संस्कृति को संजोए रखना हमारा कर्त्तव्य है। प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी से अपने अनुरोध पत्र में उन्होंने इस दिवस को ‘अखिलभारतीय लोकसंस्कृति दिवस’ के रूप में मनाए जाने का आग्रह किया। ताकि सभी राज्य अपनी-अपनी लोकसंस्कृति के कार्यक्रम इस विशेष दिवस के रूप में आयोजित कर अपनी पहचान बनायें रखें। पर्वतीय गाँधी आदरणीय बड़ोनी जी के जन्मदिन पर एक बार फिर जनांदोलन में अमर शहीदों को सादर प्रणाम। विनम्र श्रद्धांजलि एवं शत शत नमन।

लेखक का परिचय
कमलेश्वर प्रसाद भट्ट
प्रवक्ता अर्थशास्त्र
राजकीय इंटर कॉलेज बुरांखंडा, रायपुर देहरादून उत्तराखंड
मो०- 9412138258
email- kamleshwarb@gmail.com

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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