ग्राफिक एरा ने खोजी एक और क्रांतिकारी तकनीक, उद्योगों के पानी से अलग होंगे जहरीले रंग
देहरादून, 1 जुलाई। उत्तराखंड में शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणीय संस्थान ग्राफिक एरा के वैज्ञानिकों ने गंगा और यमुना के जल को उद्योगों के जहरीले रंगों से बचाने की तकनीक खोज निकाली। इन वैज्ञानिकों ने नैनो सलूलोज से ऐसी छिल्ली बनाई है जो उद्योगों से निकलने वाले पानी से रंगों को अलग कर सकती है। केंद्र सरकार ने ये नई खोज पेटेंट के रूप में ग्राफिक एरा के नाम से दर्ज कर ली है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी और ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के शिक्षकों ने जल प्रदूषण से निजात दिलाने वाला यह आविष्कार किया है। खास बात यह है कि प्रदूषण रोकने में क्रांतिकारी भूमिका निभाने वाली छिल्ली बनाने का यह काम गन्ने की खोई से किया गया है, जिसकी कीमत ना के बराबर है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के रसायन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अभिलाषा मिश्रा व मैकेनिकल इंजीनियरिंग के शिक्षक डॉ ब्रिजेश प्रसाद और ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विज्ञान विभाग की शिक्षिका रेखा गोस्वामी की टीम ने यह क्रांतिकारी आविष्कार किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ. अभिलाषा मिश्रा ने बताया कि दो साल के लगातार प्रयासों के बाद टेनरी, टैक्सटाइल इंडस्ट्री आदि से निकलने वाले पानी में मौजूद खतरनाक रंगों को पानी से अलग करने की यह तकनीक खोजने में कामयाबी मिली है। इसके लिए वैज्ञानिकों के इस दल ने उद्योगों से निकलने वाले खतरनाक रासायनिक रंगों के दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के साथ उन्हें पानी से अलग करने के लिए तमाम प्रयोग करने के बाद पाया कि एक विशेष तरह की छिल्ली (नैनो कम्पोजिट) में रंगों को सोखने की क्षमता है। गन्ने का रस निकालने के बाद बचने वाली खोई से तैयार की गई ऐसी नैनो कम्पोजिट को कई तरह के प्रयोगों और सुधारों के बाद इस दल ने उससे खतरनाक रंगों को पानी अलग करने की तकनीक विकसित कर ली। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वैज्ञानिक रेखा गोस्वामी ने बताया कि इस नैनो कम्पोजिट के जरिये पानी से खतरनाक रंगों को ना सिर्फ अलग किया जा सकता है, बल्कि उन्हें दुबारा इस्तेमाल में भी लाया जा सकता है। इस तरह जहां एक ओर पानी को साफ किया जा सकेगा, वहीं रंगों को भी बार बार उपयोग में लाया जा सकेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. कमल घनशाला ने इसे जल प्रदूषण रोकने की दिशा में एक बड़ी कामयाबी बताया। उन्होंने कहा कि टेनरी और टेक्सटाइल उद्योग से निकलने वाले जहरीले रंग कई राज्यों और औद्योगिक शहरों की एक बड़ी समस्या बन गए हैं। इस आविष्कार के जरिये कई दशकों से लगातार गहराती इस समस्या का निराकरण हो सकता है। उन्होंने इसके आविष्कारों को बधाई दी। केंद्र सरकार ने इस खोज का पेटेंट ग्राफिक एरा के नाम दर्ज कर लिया है।
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