सूखे से निपटने के लिए विधानसभा सत्र में सभी कार्य रोककर चर्चा करे सरकार, नहीं तो मचेगा हा हाकारः किशोर उपाध्याय
वनाधिकार आंदोलन के प्रणेता और उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड में सरकार और विपक्ष से सूखे से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की।
वनाधिकार आंदोलन के प्रणेता और उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड में सरकार और विपक्ष से सूखे से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की। उन्होंने मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, विधानसभा अध्यक्ष, पक्ष-विपक्ष से राज्य में विकट भयंकर सूखे की स्थिति से निपटने के लिए वर्तमान में ग्रीष्मकालीन राजधानी में गतिमान विधान सभा सत्र में सभी कार्य रोककर चर्चा का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि यदि ठोक कदम नहीं उठाए गए तो गर्मी में हा हाकार मच जाएगा।
किशोर उपाध्याय ने सुझाव दिया है कि पहाड़ी काश्तकार को रबी की फसल नष्ट होने पर 15000 रुपये प्रति नाली क्षति पूर्ति दी जानी चाहिये। इस संबंध में उन्होंने पक्ष व विपक्ष के विधायकों को पत्र भेजकर कहा कि महानुभाव आप इस समय भराड़ीसैंण में हैं। भराड़ीसैंण कई दिन तक हिम के मुकुट से आच्छादित रहता था। इस बार की शरद ऋतु में एक फाहा बर्फ का नहीं पड़ा है। इससे आप वहीं पर वातानुकूलित कमरे में बैठकर राज्य में सूखे की स्थिति का अन्दाजा लगा सकते हैं।
मैं अभी राज्य के ग्रामीण क्षेत्र के कई हिस्सों का भ्रमण कर आया हूँ। पर्वतीय क्षेत्र में रबी की फसल सूख गयी है। बीज रखने लायक भी पैदावार होना मुश्किल है। फल-सब्जी उत्पादन का भी यही हाल है।
पूर्व विधायक किशोर उपाध्याय ने कहा कि सबसे बड़ी परेशानी पेयजल की आने वाली है। आप तो जानते ही हैं उत्तराखंड देश की आधी से अधिक आबादी को पीने का पानी देता है। अगर वहीं पीने के पानी का अकाल पड़ जाय और सरकार को इस बात की चिन्ता न हो, तो दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। उन्होंने कहा कि पानी के 90 फीसद नैसर्गिक स्रोत सूख गये हैं, सरकार ने सर्वे करवाया होगा।
साथ ही उन्होंने चेताया कि जंगलों में आग लगने से और भी विकट स्थिति होगी। राज्य की अमूल्य वन-सम्पदा खतरे में हैं और वन्य-प्राणी बिना पानी के कैसे जिंदा रहेंगे, इस पर अभी से सटीक काम नहीं हुआ तो स्थिति भयावह होगी। वहीं, राज्य की अर्थ व्यवस्था COVID-19 से पहले ही ध्वस्त हो चुकी है। परिवहन-पर्यटन, धार्मिक पर्यटन राज्य की आर्थिकी और रोजगार देने के मुख्य आधार हैं। पीने को पानी ही न होगा तो पर्यटक भी क्यों आयेगा। चार धाम यात्रा भी आरम्भ होने वाली है।
उन्होंने पक्ष-विपक्ष व विधान सभा अध्यक्ष से आग्रह है कि कमसे-कम एक दिन की चर्चा वर्तमान में गतिमान विधान सभा सत्र में इस विकट स्थिति पर होनी चाहिए। इस राज्य में उत्पन्न हो रहे इस संकट का समाधान होना चाहिये। साथ ही सुझाव दिया कि प्रदेश के सीमान्त पहाड़ी काश्तकार किसान को 15,000 रुपये प्रति नाली रबी की फसल नष्ट होने की क्षति पूर्ति दी जानी चाहिये। ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में पेयजल का संकट न हो, अभी से व्यवस्था की जानी चाहिये।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
किशोर उपाध्याय जी की सूखे पर चर्चा की मांग उचित है, इस साल काफी कम बारीस हुई है किसानों की मदद अनिवार्य है.