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November 14, 2024

गोवर्धन पूजा आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन की विधि, पढ़िए गोवर्धन पूजा की कथा

गोवर्धन पूजा आज  है। इसे अन्नकूट पर्व के नाम से भी जानते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। गोवर्धन पूजा दीपावली के अगले दिन की जाती है, लेकिन इस बार दीपावली के अगले दिन यानि की 25 अक्टूबर को सूर्यग्रहण था। ऐसे में गोवर्धन पूजा भी एक दिन बाद की जा रही है। गोवर्धन पूजा वृंदावन, मथुरा, गोकुल, नंदगांव, बरसना में विशेष रूप से मनाई जाती है। इस पर्व में मुख्य रूप से गोवर्धन पर्वत, भगवान श्रीकृष्ण और पशुधन की पूजा की जाती है। इसके साथ ही इंद्र देव, अग्नि देव और वरूण देवता की पूजा का भी विधान है। इस दिन पूजन में विभिन्न प्रकार के अन्न भगवान को समर्पित किए जाते हैं। इसलिए इसे अन्नकूट कहा जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गोवर्धन पूजा के लिए शुभ मुहू्र्त
हिंदू पंचांग के अनुसार गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर को यानी आज मनाई जा रही है। पूजन के लिए तिथि की शुरुआत 25 अक्टूबर की शाम 4 बजकर 18 मिनट से शुरू हो चुकी है. जिसका समापन 26 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 42 मिनट पर होगा। गोवर्धन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 36 मिनट से 8 बजकर 55 मिनट तक है। ऐसे में इस समय अवधि में गोवर्धन पूजा कर लेना शुभ रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पूजन सामग्री
इस दिन भगवान को अर्पित करने के लिए पूजन सामग्री के रूप में रोली, चंदन, फूल, धूप, दीप, फल, मिठाई, अक्षत, गाय का गोबर को शामिल करना होता है। इसके अलावा भगवान को लगाने के लिए भोग, पंचामृत, शहद, दही, शक्कर इत्यादि को मिलाकर बनाया जाता है। साथ ही साथ इस दिन भगवान को 56 प्रकार के भोग लगाए जाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पूजन विधि
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गोवर्धन पूजा पर गाय के गोबर के गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है। इसके बाद उसे फूलों से सजाया जाता है। शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीकृष्ण समेत सभी इष्ट देव की पूजा की जाती है। पूजन के दौरान भगवान को धूप, दीप, फल, फूल, अक्षत, चंदन और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं। इस दिन पशुधन जैसे गाय-बैल की पूजा का भी विधान है। भगवान गोवर्धन आकृति बनाकर नाभि के स्थान पर एक दीपक रखा जाता है। इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद , बताशे इत्यादि डाले जाते हैं. पूजन के बाद इसे प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है। पूजन के बाद गोवर्धन पर्वत की 7 बार परिक्रमा की जाती है। इस दौरान लोटा में जल लेकर जौ बोते हुए परिक्रमा की जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गोवर्धन पूजा मंत्र
लक्ष्मीर्या लोक पालानाम् धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।
ये है मान्यता
मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों इंद्र के प्रकोप से बचाया था और देवराज के अहंकार को नष्ट किया था। भगवान कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी उंगली से गोवर्धन पर्वत उठाया जाता है। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा आरंभ हुई। गोवर्धन पूजा, इसे अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। दीवाली से अगले दिन मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार एक दिन के अंतराल में मनाया जा रहा है। क्योंकि दीपावली के अगले दिन सूर्यग्रहण था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा बनाकर होती है पूजा
हर साल यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होता है। जिसमें गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा बनाकर पूजा की जाती है। इस पर्व में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत ही नहीं, बल्कि गाय का चित्र बनाया जाता है व संध्याकाल में इसकी विधि विधान से शुभ मुहूर्त में पूजा की जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

क्या है अन्नकूट
भिन्न प्रकार यानी अलग-अलग तरह की सब्जियों और अन्न के समूह को अन्नकूट कहा जाता है। अपने सामर्थ्य के मुताबिक इस दिन लोग अलग-अलग प्रकार की सब्जियों को मिलाकर एक विशेष प्रकार की मिक्स सब्जी तैयार करते हैं और इसे भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ाते हैं। इसके अलावा तरह-तरह के अन्न के पकवान बनाए और श्रीकृष्ण को चढ़ाए जाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

गोवर्धन पूजा की कथा
गोवर्धन पूजा का जिक्र पुराणों में मिलता है। बात उस समय की है जब भगवान कृष्ण माता यशोदा के साथ ब्रज में रहते थे। माना जाता है कि उस वक्त अच्छी बारिश के लिए सभी लोग भगवान इंद्र का पूजन करते थे। एक वर्ष भगवान कृष्ण ने ठान लिया कि वो इंद्र का घमंड तोड़ कर रहेंगे और सभी से इंद्र के पूजन के बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा के लिए कहा। सबने कान्हा की बात मान तो ली पर डर सभी को इंद्र के कोप का डर भी था। वही हुआ भी नाराज इंद्र देव का गुस्सा तेज बारिश बन कर ब्रज पर बरसा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ब्रजवासियों की रक्षा के लिए कन्हैया ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया और सभी लोगों ने इस गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। जब तक इंद्र का क्रोध बरसता रहा भगवान मुस्कान के साथ पर्वत को अपनी उंगली पर थामे रहे और पूरा ब्रज वहीं पर शरण लेकर रहता रहा। इंद्र को अपनी गलती समझ में आ गई। उनका कोप शांत हुआ। माना जाता है उसके बाद से ही गोवर्धन पूजा का सिलसिला शुरू हुआ, जो अब तक चला आ रहा है।
नोटः यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। इसका वैज्ञानिक आधार कोई नहीं है और धार्मिक दृष्टि से लोग इसे मानते हैं। ऐसे में लोकसाक्ष्य इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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