कॉलेजों की संबद्धता के लिए कोर्ट जाना विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्नः डॉ. सुनील अग्रवाल

एसोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनेंसड इंस्टीट्यूटस उत्तराखंड के अध्यक्ष और अखिल भारतीय अनऐडेड विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल ने कहा की संबद्धता के प्रकरण पर कॉलेजों को कोर्ट जाने पर विवश होना विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक बयान में उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की निरीक्षण टीम जिस सत्र के लिए किसी कॉलेज का निरीक्षण करती है, उसी सत्र में उसकी संबद्धता मिल जानी चाहिए। वहीं, उत्तराखंड में विश्वविद्यालय की संबद्धता कई कॉलेजों की दो दो वर्षों से पेंडिंग है। ऐसी स्थिति में अभी तो छात्रों का डाटा समर्थ पोर्टल में अपलोड करने में समस्या आई थी। अब छात्रवृत्ति के समय भी समाज कल्याण विभाग द्वारा संबद्धता का पत्र मांगा जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि इस संबंध में पूर्व में भी कई बार यह मामला उठा, लेकिन अभी तक इसका कोई संतोषजनक समाधान किसी भी स्तर पर नहीं हो पाया। जब कॉलेज इस संबंध में विश्वविद्यालय से संपर्क करते हैं तो विश्वविद्यालय के अधिकारी कहते हैं कि फाइल राज भवन में अटकी है। जब राज भवन में संपर्क करते हैं, तो वहां उन्हें बताया जाता है कि अभी फाइल में विश्वविद्यालय से स्पष्टीकरण मांगा गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में जब कॉलेज के संचालक किसी भी नए कोर्स को शुरू करने के लिए आधारभूत सुविधाएं मुहैया करवा लेते हैं, जिसमें उनका काफी धन खर्च होता है। वह विश्वविद्यालय और राज भवन के बीच में पेंडुलम की स्थिति में हो जाते हैं। एक बार विश्वविद्यालय की निरीक्षण टीम द्वारा संस्तुति करने के बाद लंबे समय तक संबद्धता प्रकरण का लटकना निरीक्षण टीम की कार्य क्षमता पर भी प्रश्न चिह्न है। अगर संबद्धता की फाइल अधिकारी स्तर पर ही निस्तारित होनी है तो कॉलेज के लिए निरीक्षण टीम भेजने का क्या औचित्य है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसके विपरीत अगर निराकरण न्यायालय द्वारा ही किया जाना है तो कॉलेज व्यर्थ ही विश्वविद्यालय का चक्कर लगाते हैं और अधिकारियों की चाटुकारिता करते हैं। ऐसा लगता है की अधिकांश लोग काम करने के बजाय काम रोकने की प्रवृत्ति ज्यादा रखते हैं। ऐसे में जब कॉलेजों के संसाधनों का उपयोग नए-नए कोर्स बढ़ाने और छात्रों को सुविधाएं देने पर होना चाहिए, कॉलेज खोलने वाले यह विचार करने पर विवश हो जाते हैं कि उन्होंने कॉलेज खोलकर शायद कोई गुनाह किया है। इसके लिए अनावश्यक रूप से बाधाएं खड़ी की जाती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि अगर कोई कॉलेज सुचारु रूप से संचालित नहीं होता है तो निरीक्षण टीम को निरीक्षण के समय ही उसको रोक देना चाहिए। उसकी संबद्धता की संस्तुति नहीं करनी चाहिए। एक बार संबद्धता की संस्तुति होने के बाद अनावश्यक रूप से संबद्धता प्रकरण लंबित नहीं होने चाहिए। इससे प्रदेश के विकास में योगदान देने वाले निवेशक हतोत्साहित होते हैं।
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Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।