बथुआ के खेत में जाओ या दून के ऐतिहासिक पल्टन बाजार में, दोनों में क्या है समानता, पढ़िए रोचक कहानियां
देहरादून का सबसे पुराना बाजार अब अपनी ऐतिहासिकता या कहें पुरानी पहचान को खोता जा रहा है। ये पहचान है बाजार की विविधता। अलग अलग रंग में सजी दुकानें। अब ये स्वरूप बदला जा रहा है। स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत पूरे बाजार को एकरूप में रंगने की तैयारी चल रही है। कई दुकानों को भगवा यानी की ऑरेंज कलर में रंग दिया गया है। मार्केट की दुकानों के बोर्ड और दुकानों के ऊपर लगने वाले शेड भगवा रंग में नजर आने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि इस तरह के प्रयोग सिर्फ उत्तराखंड में ही हो रहे हैं। अन्य राज्यों में भी कई मोहल्ले, स्कूल, बाजार आदि भगवा रंग में रंग दिए गए हैं। वहीं, विरोध कर रही कांग्रेस का कहना है कि एक ही पार्टी के झंडे को लेकर चलना दुर्भाग्यपूर्ण है, बाजार को उत्तराखंड के रीति रिवाजों से संबंधित रंग दिया जाना चाहिए। वहीं, हमने खबर की हैडिंग में बथुआ के खेत का जिक्र किया। ऐसे में बाजार को रंगने और इसकी तैयारी से पहले हम आपको दो कहानी सुनाना चाहते हैं। पहली कहानी बथुआ को लेकर है। दूसरी कहानी फिल्म कलाकारों की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पढ़िए पहली कहानी बथुआ की
दामाद जी अपने ससुराल कई साल बाद पहुचते हैं। सास को पता चलता है कि दामाद को बधुआ बेहद पसंद है। सास पहले दामाद का स्वागत चाय पकौड़ी खिलाकर करती है। पकौड़ी बथुए की होती है। इसके बाद रात को खाने में बथुए की सब्जी बनाई जाती है। सुबह बथुए के परांठे नाश्ते में दिए जाते हैं। दामादजी की हालत ऐसी हो जाती हैं कि मन खूब उल्टियां करने का होने लगता है। वह अपने कपड़े लत्ते समेट कर वापस जाने को तैयार हो जाते हैं। सास उन्हें बथुए से बनाई गई कुछ आयटम घर ले जाने को देती है। फिर दामाद से पूछती है कि सेवा में कोई कमी तो नहीं रही। इस पर दामाद सिर्फ इतना कहता है कि मुझे ये बता दो कि बथुए के खेत कहां है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब पढ़िए दूसरी कहानी
एक फिल्म निर्देशक के पास तीन युवक पहुंचते हैं और उन्हें अपनी फिल्म में काम करने का मौका देने को कहते हैं। निर्देशक साहब उन्हें एक्टिंग का नमूना देने को कहते हैं। एक छोटा भाई बनता है। दूसरा बड़ा भाई और एक चिकित्सक। रोल समझाया जाता है। छोटा भाई करता है भैया मेरे पेट में दर्द हो रहा है। जोर से दर्द हो रहा है। वह कहता है डाक्टर को बुलाता हूं। फिर वह डाक्टर को फोन करता है। डाक्टर उसका परीक्षण करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब इस डायलॉग को सपाट स्वर में बोलने पर डायरेक्टर चिढ़ जाते हैं। कहते हैं कि इमोशन लाइए। इसके बाद छोटा भाई रो रोकर दर्द बयां करता है। बड़ा भाई भी रोते हुए डाक्टर को बुलाता है। डाक्टर भी रोता हुआ उसे देखने पहुंचता है। निर्देशक फिर टोकते हैं कि कहते हैं कि क्या सारे रोओगे। पहले क्या करते थे। तीनों कहते हैं वे एनसीसी में थे। इस पर वह कहते हैं कि आवाज में दम लाइए। तब छोटा भाई परेड को नियंत्रण करने की आवाज में लंबी आवाज में कहता है-मेरे पेट में दर्द हो रहा है। उसका भाई भी उसी आवाज में डाक्टर से फोन पर बात करता है। इसी तरह डाक्टर भी उसी अंदाज में बोलता है। अब इस कहानी से क्या समझ आ रहा है। बात सिर्फ ये है कि यदि एक पक्ष ही सारी जगह नजर आएगा तो बेड़ागर्क होना तय है। विविधता में ही खूबसूरती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब बात करें पलटन बाजार की
बता दें कि स्मार्ट सिटी की बैठक में तय हुआ था कि बाजार की दुकानों के साइन बोर्ड और दुकानों के ऊपर लगने वाले शेड ऑरेंज कलर के होंगे। स्मार्ट सिटी परियोजना के अंतर्गत एक बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में देहरादून के मेयर सुनील उनियाल गामा, डीएम देहरादून, विधायक और व्यापारी इस बैठक में मौजूद थे। बैठक में देहरादून का पलटन मार्केट और उसके साथ अन्य छोटे मार्केट का क्या कलर होना चाहिए उस पर चर्चा की गई। अंत में भगवा कलर यानी ऑरेंज कलर पर हामी भरी गई और एडवाइजरी कमेटी की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि साइन बोर्ड और शेड का ऑरेंज कलर होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भगवा रंग को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी पर साधा निशाना
जानकारी के मुताबिक दुकानों के ऊपर लगने वाले इस कलर के शेड को स्मार्ट सिटी के खर्चे से किया जाएगा, लेकिन कांग्रेस नेता इसका विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि ये दुर्भाग्यपूर्ण है। ये राजनीतिक ध्रुवीकरण है। बाजार पर एक ऐसा कलर होना चाहिए जो उत्तराखंड से जुड़ा हुआ हो। कांग्रेस का आरोप है कि एक ही पार्टी के झंडे को लेकर बीजेपी चलना चाहती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पलटन बाजार का इतिहास
दून के जिस मार्केट को हम आज पलटन बाजार के रूप में जानते हैं और जो आज दून का मुख्य बाजार के रूप में पहचान बना चुका है, पहले वह राजपुर रोड का हिस्सा था। सहारनपुर रोड का निर्माण अंग्रेजों ने 1822 में करवाया था। इसके लिए मोहंड के पास टनल बनाई गई। टनल से यह रोड दून में पहुंचती थी। यहां दर्शनी गेट से इसका नाम राजपुर रोड था। धामावाला गांव होते हुए राजपुर रोड मौजूदा क्लॉकटावर से होकर राजपुर तक जाती थी। यानी जो आज पल्टन बाजार है, वह 1862 तक राजपुर रोड था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
1864 में बना छावनी
1864 में अंग्रेजों ने इस रोड के पास ओल्ड सिरमौर बटालियन की छावनी बना दी। सैन्य छावनी के अलावा इस क्षेत्र के सैन्य अधिकारियों के आवास और घुड़साल भी बनाये गये। उधर परेड ग्राउंड में पहले से गोरखा बटालियन मौजूद थी। फौज के अलावा नाई, धोबी और अन्य काम करने वाले सिविलियन के लिए फालतू लाइन में जगह दी गई। दोनों बटालियनों के सैनिकों के लिए घंटाघर का हनुमान मंदिर, सब्जी मंडी की मस्जिद, फालतू लाइन में गुरुद्वारा और कचहरी में चर्च भी बनाये गये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
1874 में प्रशासन के हवाले
बाद में तंग जगह होने के कारण सेना ने पलटन बाजार खाली कर दिया और गढ़ी डाकरा में नई छावनी बना दी गई। 1874 में सेना ने इस प्रॉपर्टी को प्रशासनिक मुखिया सुपरटेंडेंट ऑफ दून एचजी रॉस को सौंप दिया। शर्त यह थी कि इस प्रॉपर्टी का नजराना सेना के खाते में जमा किया जाता रहेगा। रॉस ने इस प्रॉपर्टी के देखरेख की जिम्मेदारी नगर पालिका को सौंप दी। बताया जाता है कि नगर पालिका लंबे समय सेना के खाते में पलटन बाजार का नजराना जमा करवाती रही। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
1923 के बाद बना बाजार
1923 तक आते-आते स्वतंता संग्राम जोर पकडऩे लगा था। यह उम्मीद की जाने लगी थी कि अंग्रेजों को देश छोडऩा पड़ेगा। ऐसे समय में राय बहादुन उग्रसेन ने नगर पालिका अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली। उन्होंने पलटन बाजार की जमीन को खुर्द-बुर्द करना शुरू किया। काफी जमीन अपने नाम कर दी और बाकी नजून भूमि नियमावली के बावजूद औने-पौने दामों पर व्यापारियों के बेच दी। व्यापारियों ने पलटन के भवनों को अपनी तरह से तोड़-मरोड़ कर दुकानें बनानी शुरू कर दी और देखते ही देखते पलटन बाजार एक बड़ा व्यावसायिक केंद्र बन गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब एकरूपता देने की कवायद
हाल के वर्षों में पलटन बाजार को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत नये सिरे से सजाने संवारने की कवायद चल रही है। इस प्रोजेक्ट के तहत कुछ काम भी हुआ है। मुख्य रूप से सीवर लाइन, पेयजल लाइन और नालियां बनाने का काम किया गया। रोड पर टाइल्स भी लगाई गई हैं। इसके अलावा एकरूपता देने के लिए सभी दुकानों के साइनबोर्ड और छज्जों को एक रंग में रंगने का प्रयास किया जा रहा है। जन विज्ञान के विजय भट्ट कहते हैं कि पुराने छज्जों को तोड़कर एकरूपता के नाम पर पलटन बाजार को बदसूरत बनाया जा रहा है। बाजारों में दुकानों के अलग अलग रंग के रूप में विविधता ही इनकी खूबसूरती होती है।
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