पृथ्वी के लिए खतरा बन रही है ग्लोबल वार्मिंग, 2030 तक आर्कटिक महासागर में खत्म हो जाएगी गर्मियों में बर्फ
इन दिनों दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर बहस छिड़ी हुई है। कारण ये है कि ग्लोबल वार्मिंग हमारी पृथ्वी के लिए खतरा बनती जा रही है। भले ही इसके लिए कई ठोस कदम उठाए जा रहे हों, लेकिन परिस्थितियां कुछ और कह रही हैं। इंटरनेशनल लेवल पर उसे लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है। क्योंकि, जलवायु परिवर्तन यानी क्लाइमेट चेंज का इकोसिस्टम पर भयानक प्रभाव पड़ना शुरू हो गया है। माना जा रहा है कि आने वाले सालों में इसका असर बढ़ता चला जाएगा। एक नई साइंटिफिक स्टडी के अनुसार, आर्कटिक महासागर में ग्रीष्मकालीन समुद्री बर्फ 2030 तक पूरी तरह गायब हो सकती है। यानी 2030 तक गर्मियों के दिनों में इस महासागर में बर्फ नजर नहीं आएगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में छपी एक स्टडी में पाया गया कि पेरिस जलवायु संधि के हिसाब से ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने से भी नॉर्थ पोल की तैरती बर्फ के विशाल विस्तार को पिघलने से नहीं रोका जा सकेगा। हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञान संस्थान के एक प्रोफेसर, सह-लेखक डर्क नॉटज़ ने कहा कि आर्कटिक ग्रीष्मकालीन समुद्री बर्फ को अब एक परिदृश्य और आवास के रूप में संरक्षित करने में बहुत देर हो चुकी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
द न्यूयॉर्क टाइम्स से बातचीत में उन्होंने कहा कि हम बहुत जल्दी आर्कटिक समर सी-आइस कवर को खोने वाले हैं। मूल रूप से हम जो कर रहे हैं, उससे स्वतंत्र हैं। हमने शेष बर्फ की रक्षा के लिए जलवायु परिवर्तन को लेकर कुछ भी करने में काफी देर कर दी है। आपको बता दें कि बर्फ के गायब होने से मौसम, इंसानों और इकोसिस्टम तीनों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। न केवल उस क्षेत्र में, बल्कि पूरी दुनिया पर इसका असर दिखता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दक्षिण कोरिया में पोहांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के एक शोधकर्ता, प्रमुख लेखक सेउंग-की मिन ने कहा कि यह ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर को पिघलाकर ग्रीन हाउस गैसों से लदे पर्माफ्रॉस्ट को पिघलाकर ग्लोबल वार्मिंग को तेज कर सकता है। बता दें कि वैज्ञानिक आर्कटिक महासागर को आइस फ्री कह सकते हैं। अगर बर्फ से ढका क्षेत्र एक मिलियन वर्ग किलोमीटर से कम है या महासागर के कुल क्षेत्रफल का लगभग सात प्रतिशत है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ फरवरी में 1.92 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक गिर गई, जो रिकॉर्ड पर सबसे निचला लेवल है। 1991-2020 के औसत से लगभग एक मिलियन वर्ग किलोमीटर नीचे है।
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