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November 18, 2024

उत्तराखंड में बोर्ड की बालिका परीक्षार्थियों की कंकड़ पत्थर पर चलने की परीक्षा, उतरवाए जूते, सोशल मीडिया में तीखी निंदा

उत्तराखंड में जो भी हो जाए वही कम है। एक तरफ सरकारी नौकरियों में भर्ती परीक्षाओं को लेकर घोटाले उजागर हो रहे हैं और बार बार परीक्षाएं रद्द करनी पड़ रही हैं। वहीं, बोर्ड परीक्षा में नकल रोकने को एक नया प्रयोग सामाने आया है। उत्तराखंड सचिवालय से सटे राजकीय बालिका इंटर कॉलेज राजपुर रोड देहरादून में बोर्ड परीक्षा देने गईं सभी छात्राओं के जूते और चप्पलों को उतरवा दिया गया। उन्हें नंगे पैर परीक्षा देने के लिए कहा गया है। यही नहीं, कई छात्राओं को पथरीली जमीन पर ही नंगे पैर चलकर अपने परीक्षा कक्ष तक पहुंचना पड़ा। इस तुगलकी फरमान की सोशल मीडिया में हर तरफ निंदा हो रही है। वहीं, सरकार को बात बात पर अपनी पीठ थपथपाने से फुर्सत नहीं है। ऐसे में सचिवालय यानि सरकार की दीवार से सटे स्कूल में क्या हो रहा है, इसका किसी को पता नहीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन (UBSE) ने 16 मार्च 2023 से इंटरमीडिएट यानि कि 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं शुरू कर दी हैं। 10वीं की परीक्षा आज 17 मार्च से शुरू हुई। इन परीक्षाओं को लेकर सोशल मीडिया में ऐसी तस्वीरें सामने आईं, जिसे देखकर हर कोई चौंक जाएगा। देहरादून में राजकीय बालिका इंटर कालेज राजपुर रोड में परीक्षा के पहले दिन छात्राओं से जूते तक उतरवा लिए गए। अब इसे क्या कहा जाएगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वरिष्ठ पत्रकार एवं उत्तरांचल प्रेस क्लब ने इसी तुगलकी फरमान को लेकर सोशल मीडिया फेसबुक में पोस्ट डाली है। इस पोस्ट में तीन फोटो भी हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि फोटो अमित शर्मा के सौजन्य से मिली हैं। जितेंद्र अंथवाल लिखते हैं कि- यह दृश्य किसी मंदिर के द्वार या परिसर का नहीं है। यह दृश्य है देहरादून में सचिवालय से सटे राजकीय बालिका इंटर कॉलेज, राजपुर रोड का। कल से उत्तराखंड बोर्ड की इंटरमीडिएट व हाईस्कूल परीक्षा शुरू हुई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

जीजीआईसी राजपुर रोड परीक्षा केंद्र है। यहां परीक्षा कक्ष में जाने से पूर्व सभी छात्राओं के जूते बाहर उतरवा दिए गए। ऐसा परीक्षा में नकल रोकने के नाम पर किया गया। बोर्ड की सचिव का कहना है कि जूते कक्ष से बाहर उतरवाने और नंगे पैर परीक्षा दिलवाने जैसा कोई भी निर्देश बोर्ड की ओर से जारी नहीं किया गया है। ऐसे में सवाल यह कि फिर ऐसा तुगलकी फरमान किसका है? क्या स्कूल प्रशासन ने खुद यह उटपटांग निर्णय लिया है? स्कूल में एक ओर सीमेंटेड रास्ता है, जबकि दूसरी ओर का हिस्सा पथरीला है। बालिकाओं को कंकड़ पत्थर के ऊपर से नंगे पैर गुजरना पड़ा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जितेंद्र अंथवाल आगे लिखते हैं कि राज्य में बदनाम हो चुकी भर्ती परीक्षाओं में भी नकल रोकने के नाम पर परीक्षा कक्ष के बाहर जूते नहीं उतरवाए जाते। फिर बोर्ड परीक्षा केंद्र में क्यों? इस मामले में ‘तुगलकी सनक’ वालों पर करवाई तो होनी ही चाहिए। साथ ही उन्होंने अपनी पोस्ट से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से संज्ञान लेने का अनुरोध किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

आ रही हैं  कड़ी प्रतिक्रियाएं
इस पोस्ट पर कड़ी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिनेश चंद्र कुकरेती लिखते हैं कि देहरादून में तो सरकार भी रहती है, वह भी इस कालेज के पडो़स में। क्या उसे कुछ मालूम नहीं है। अगर नहीं, तो इससे ज्यादा शर्मनाक स्थिति कोई और नहीं हो सकती। ऐसा दुस्साहस करने वाले कृपापात्र ही होते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

समाजसेवी सुरेश भाई ने टिप्पणी की कि बहुत चिंताजनक बात है।राज्य में शायद व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। नंगे पैर बच्चे कमरे में कैसे परीक्षा देंगे। इसको देखने वाला भी कोई नहीं। राजकुमार अग्रवाल लिखते हैं कि मास्टर मास्टरनी मोबाइल ले जा सकते है, कक्ष में बात कर सकते है।उनके लिए कोई कानून नहीं और बच्चो के लिए इस तरह का कानून। प्रतियोगी परीक्षाओं में तो जोर चलता नही, इन nikkme अधिकारियों का। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रदीप कुकरेती लिखते हैं कि अपनी जिम्मेदारी पर विश्वास नहीं होगा तो ऐसे करके फ्लाइंग पर ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। राजन बडौला ने लिखा-पोस्ट को देखकर यह लग रहा है कि राज्य सरकार का अपने किसी भी कर्मचारी पर नियंत्रण नहीं है, जिसके मन में जो आ रहा है वह वैसे ही नियम लागू करने पर तुला है यही असफल सरकार का उदाहरण है। सत्येंद्र डंडरियाल लिखते हैं कि उत्तर प्रदेश के जमाने में जब कल्याण सिंह सरकार ने बोर्ड परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए नकल अध्यादेश लागू करवाया था, तब भी हमारे जूते नहीं उतरवाए गए थे।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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