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March 12, 2025

गिरिजा शंकर त्रिवेदी ने साहित्य के साथ ही हिन्दी पत्रकारिता को राष्ट्रीय स्तर पर दिया सकारात्मक स्वर (पुण्यतिथि पर विशेष)

सरस्वती के वरद् पुत्र गिरिजा शंकर त्रिवेदी ऐसे ही विशिष्ट व्यक्ति थे, जो एक साथ सहदय साहित्यकार, अद्भुत वक्ता, संवेदनशील समाज सेवी, प्रगतिशील विचारक, दूरदर्शी मनीधि थे।

कभी-कभी किसी-किसी पर ईश्वर इतना कृपालु हो जाता है कि उसे सर्वगुण सम्पन्न बना देता है। सरस्वती के वरद् पुत्र गिरिजा शंकर त्रिवेदी ऐसे ही विशिष्ट व्यक्ति थे, जो एक साथ सहदय साहित्यकार, अद्भुत वक्ता, संवेदनशील समाज सेवी, प्रगतिशील विचारक, दूरदर्शी मनीधि थे। हिमालय की शत शत धाराओं की तरह इनकी बहुमुखी प्रतिभा, न जाने कितने-कितने रंग रूपों में निखरी हुयी थी।

जीवन परिचय 
साहित्यिक वातावरण निर्माण में गिरिजा शंकर त्रिवेदी का समर्पण तथा अप्रतिम योगदान स्तवन योग्य ही नहीं, प्रणम्य भी है। इनका जन्म 11 मई सन 1939 में जनपद कानपुर स्थित विल्हौर तहसील के अन्तर्गत गाँव में हुआ था। जीविकोपार्जन के क्रम में डीएवी महाविद्यालय देहरादून के संस्कृत प्राध्यापक के रूप में देहरादून आये थे, परन्तु देहरादून का परिवेश इन्हें इतना भाया कि वे स्थायी रूप से यहीं के हो गये। बाद में वह देहरादून के इंद्र रोड पर आवास बनाकर रहने लगे।
हिंदी साहित्य और संस्कृत का बेजोड़ संगम
संस्कृत और हिन्दी में स्नातकोत्तर डा. त्रिवेदी दोनों भाषा और साहित्य के तो निष्णात थे ही, देश की अन्य भाषाओं के भी ज्ञाता थे। त्रिवेदी जी का रचना संसार विस्तृत और बहुआयामी था। उनके गीतों में उत्तर छायावादी काल का वैभव परिलक्षित होता है। इन्द्रालय’ और ‘ज्योतिरथ’ के गीतों में अपने समकालीन महाकवियों के समान स्वर उभरा है।
साहित्य जगत में ईश्वर की अनुपम भेंट
बाल्मीकि और कालिदास की रचनाओं का निरन्तर गहन अध्ययन करने के कारण त्रिवेदी जी की कवितायें भारतीय संस्कृति और भारतीय मानस से निकली अजस स्त्रोतस्विनी हैं। इनकी छन्दमुक्त कवितायें वर्तमान जीवन के यथार्थ को पूर्ण शक्ति से उभारती हैं। इनके द्वारा वनों और वृक्षों पर लिखे ग्रन्थ हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। डा. त्रिवेदी
जैसी महान प्रतिभा साहित्य जगत में ईश्वर की अनुपम भेंट थे, जो अपने मौलिक लेखन और काव्य कौशल से साहित्य में नवीनता का संचार करने में पूर्ण सक्षम और समर्थ थे।
पत्रकारिता से दून को दी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
सामाजिक प्रश्नों के प्रति अतिशय जागरूकता के कारण ही श्री त्रिवेदी ने अध्ययन-अध्यापन से समय निकालकर पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी गति को प्रवाहमय बनाया। देहरादून में हिन्दी पत्रकारिता को राष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक स्वर दिया। संवाददाता के रूप में त्रिवेदी जी द्वारा ‘नवभारत टाइम्स’, ‘हिन्दुस्तान’ और ‘आकाशवाणी’ को प्रेषित समाचारों ने हिन्दी पत्रकारिता के सकारात्मक रूप को उजागर किया। एक सजग पत्रकार के रूप में उन्होंने
जनसाधारण की चिन्ताओं को तो स्वर दिया ही, साहित्य, संगीत और कला से सम्बन्धित समाचारों को भी प्रमुखता दी।
लेखनी और वाणी में गंगा यमुना की निर्मलता
त्रिवेदी जी की लेखनी एवं वाणी पर गंगा यमुना की निर्मलता, अलकनन्दा का अखण्ड सौन्दर्य और भगीरथी की गौरव गरिमा स्पष्टतया दृष्टिगोचर होती थी। उनकी विनम्रता विलक्षण थी, वे सदैव नयी पीढ़ी को सम्मान देते थे। उन्हीं विषयों के कारण आज दून घाटी का युवा पीढ़ी में सक्रियता और विश्वास का एक नूतन संचार दृष्टिगत होता है।
साहित्यकारों की श्रृंखला की अटूट कड़ी
उनके शोध प्रबन्ध, विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख, ग्रन्थबद्ध रचनायें तथा अविस्मरणीय काव्य समारोह, साहित्यकारों की श्रृंखला की अटूट कड़ी है। त्रिवेदी का कृतित्व आने वाली पीढ़ी के लिए सांस्कृतिक धरोहर होगा। हिन्दी साहित्य के जिन मूर्धन्य विद्वानों के सान्निध्य में त्रिवेदी जी के रचना संसार ने प्रतिष्ठा पायी, उनमें मुख्य-राष्ट्रकवि दिनकर, सोहन लाल द्विवेदी, डा. भगवत शरण उपाध्याय, नीरज, डा. रामकुमार वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, बाबू भगवती चरण वर्मा, डा. शिव मंगल सिंह ‘सुमन’, भवानी प्रसाद मिश्र, आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी तथा डॉ. विजयेंद्र स्नातक। इन मूर्धन्य विद्वानों के स्नेह तथा प्रोत्साहक आशीर्वचनों ने डा.त्रिवेदी को साहित्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
उत्तराखंड में संस्कृति एवं साहित्य को दिया मुकाम
डॉ. गिरिजा शंकर त्रिवेदी ने भू लोक से स्वर्ग की राह पकड़ने से पूर्व बारह से अधिक पुस्तकें लिखकर उत्तराखंड संस्कृति एवं साहित्य को एक ऐसा स्वरूप प्रदान किया जो जाज्वल्यमान नक्षत्र की तरह सदैव प्रकाशमान रहा। 15 अप्रैल 2008 को इस महान साहित्यकार, कवि, पत्रकार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।


लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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