डॉ. पुष्पा खण्डूरी की गज़ल- तेरी वज्म में चले आये थे जो
तेरी वज्म में चले आये थे जो
कितने ही अनजान चेहरे ।
हम दूर खड़े हो कर भी पहचान रहे थे॥
जान कर भी अनजान न बन तू !
समझता जरुर है कि हम सब जान रहे थे॥
वो शख्स जो कल तक तेरी राहों में मुन्तिज़र था।
वो आज बेख़ुदी की पनाह में दिखा॥
जो कल तक था तेरा दीवाना।
आज तू ही उसका बीमार दिखा॥
बेरुखी और बेबफाई शौके अदा
बन गई जिसकी।
उसके लिए तो अब आशिकी भी
तिज़ारत का ही सबब था॥
अदब और तहजीब दोनों भुला दी जिसने।
वो खुद लोगों से दुआ, सलाम
ज़ुहार की उम्मीद में था॥
अकड़ तो देखिए उस शख़्स की !
तार – तार करके मुझे वो
रफू करने की चाह में था॥
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।