अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर दृष्टि दिव्यांग डॉ. सुभाष रुपेला की गजल- नारी है परी-जैसी
नारी है परी-जैसी, स्त्री प्रेम की धारा है।
सेहरा-से जीवन में, नारी ही सहारा है।।
आलम में अँधेरा है, भटकाव भरा पथ है।
हर राह होती रोशन, गर नारी सितारा है।।
मुस्कान खिली रुख़ पर, हर लेती थकन सारी।
दिन होता सफल फिर तो, ये देखा नज़ारा है।।
संसार तो नीरस है, नारी है सरस सरिता।
प्रेमी की वो मदिरा है, अमृत-सी वो दारा है।।
स्त्री प्रेरणा है नर की, नर बनता बड़ा उससे।
कवि तुलसी बना कैसे, रत्ना का इशारा है।।
घर घरनी से बनता है, नारी है धुरी घर की।
परिवार चला उसने, इस जग को सँवारा है।।
बीमार हुआ जब घर, स्त्री सेवा में हाज़िर है।
दम लेती है चंगा कर, सुख देती वो न्यारा है।।
रोते हुए बच्चों को, चुप माँ ही कराती है।
माँ दौड़ पड़ी फौरन, जब सुत ने पुकारा है।।
बेटी है रौनक घर की, ममता की वो छाया है।
खुदगर्ज नहीं बेटी, दो कुन्बों का तारा है।।
दफ्तर हो चाहे हो घर, सब उसके हवाले हैं।
हर काम करे मन से, कब करती किनारा है।।
अपमान नारी का कर, जी उसका दुखाना मत।
नारी ने रुपेला को, हर दुख से उबारा है।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
भौत सुंदर गज़ल नारी के ऊपर